विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय
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वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) के राष्ट्रीय विज्ञान संवाद और नीति अनुसंधान संस्थान (एनआईएससीपीआर) ने एक राष्ट्रीय सम्मेलन  का आयोजन किया

Posted On: 16 AUG 2021 7:19PM by PIB Delhi

वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) के अंतर्गत आने वाला राष्ट्रीय विज्ञान संवाद और नीति अनुसंधान संस्थान (एनआईएससीपीआर) आजादी का अमृत महोत्सव के समारोह के लिए एक तीन दिवसीय (आभासी) राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन कर रहा है।

 

आज इस सम्मेलन का पहला दिन था। सीएसआईआर-एनआईएससीपीआर, नई दिल्ली की निदेशक प्रो.रंजना अग्रवाल ने सभी गणमान्य व्यक्तियों और दर्शकों का स्वागत किया। अपने स्वागत भाषण में उन्होंने सम्मेलन के महत्व के बारे में बताते हुए कहा कि विज्ञान के ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य का अध्ययन करना इसलिए भी बहुत जरूरी है क्योंकि हमें अपने अतीत से भी सीखना है। भारत में विज्ञान और प्रौद्योगिकी जैसे कारकों, बुनियादी ढांचे के विकास, भारत की नई शिक्षा नीति और ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में ऐसे सभी मुद्दे भारत के माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी की परिकल्पना के अनुसार आगे बढ़ने और काम करने के लिए आवश्यक हैं। यह सब माननीय प्रधानमंत्री के आज़ादी का अमृत महोत्सव के आह्वान के अंतर्गत आते हैं। उन्होंने अपने सम्बोधन के अंत में कहा कि इस तीन दिवसीय सम्मेलन में देश की बेहतरी के लिए एक कार्ययोजना बनाई जाएगी।

इसके तत्काल बाद पद्मविभूषण डॉ. आर.ए. माशेलकर ने डॉ. शेखर सी. मंडे और श्री जयंत सहस्त्रबुद्धे की उपस्थिति में राष्ट्रीय विज्ञान संवाद और नीति अनुसंधान संस्थान (एनआईएससीपीआर) का प्रतीक चिन्ह (लोगो) भी जारी किया I

डॉ. माशेलकर द्वारा राष्ट्रीय विज्ञान संवाद और नीति अनुसंधान संस्थान (एनआईएससीपीआर) का जारी किया गया प्रतीक चिन्ह

विज्ञान भारती के राष्ट्रीय आयोजन सचिव श्री जयंत सहस्त्रबुद्धे ने विशिष्ट समानित अतिथि के रूप में सम्मेलन को सम्बोधित किया। अपने व्याख्यान में श्री सहस्रबुद्धे ने कहा कि भारत में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के अध्ययन के लिए इसकी ऐतिहासिक समीक्षा और आत्मनिरीक्षण महत्वपूर्ण है। भारतीय वैज्ञानिक जैसे आचार्य जे.सी. बोस, डॉ. आशुतोष मुखर्जी, आचार्य प्रफुल्ल चंद्र रॉय, श्री एस.एन. बोस, सर चंद्रशेखर वेंकट रमन और डॉ मेघनाद साहा ने भारत की वैज्ञानिक स्थिति के उत्थान को मजबूत करने के लिए अथक प्रयास किया। उनके योगदान ने हमें भारत में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विकास के लिए एक मजबूत मंच प्रदान किया। उन्होंने आगे कहा कि भारतीय वैज्ञानिकों के आत्मविश्वास से भारतीय विज्ञान को अंतरराष्ट्रीय मान्यता और पहचान मिली है। उन्होंने यह भी कहा कि हमें अपने वैज्ञानिकों के विश्वास को महत्व देते हुए देश को आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास करना चाहिए और अपने आप को आत्म-विश्वासी बनाना चाहिए। उन्होंने अपने भाषण का समापन यह कहते हुए किया कि इस सम्मेलन के ये तीन दिन भारत के छात्रों और वैज्ञानिकों के बीच आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता के विकास में मदद करेंगे।

उद्घाटन सत्र: डॉ. माशेलकर शीर्ष पंक्ति के मध्य में हैं, प्रो. रंजना अग्रवाल शीर्ष पंक्ति में सबसे दाईं ओर हैं और श्री जयंत सहस्रबुद्धे नीचे की पंक्ति में सबसे बाईं ओर हैं

 

उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि पद्म विभूषण डॉ. आर.ए. माशेलकर ने "भारतीय विज्ञान और सीएसआईआर द्वारा अतीत का अवलोकन और भविष्य की आशाएं विषय पर एक विचारपूर्ण  व्याख्यान दिया। उन्होंने यह कहकर शुरू किया कि हमें आत्मविश्वासी और आत्मनिर्भर भारत बनाने की आकांक्षा रखनी चाहिए। उन्होंने दर्शकों को 20वीं सदी की शीर्ष 10 उपलब्धियों के बारे में बताया। उन्होंने आकांक्षी, लचीले, समावेशी, आश्वस्त और हर मोर्चे पर हमेशा अग्रणी रहकर नए भारत के लिए एक नए वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) के लिए अपने विचार व्यक्त किए। डॉ. माशेलकर ने कहा कि भारत सैकड़ों अनुसंधान एवं विकास केंद्रों, हजारों वैज्ञानिकों और इंजीनियरों के साथ एक वैश्विक अनुसंधान एवं विकास मंच के रूप में उभरा है। उन्होंने एसएआरएस–सीओवी-2 महामारी को कम करने में अद्भुत अनुकूलन क्षमता और तेजी दिखाने के लिए वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) को बधाई भी दी। महामारी के इस समय में सीएसआईआर ने बड़े पैमाने पर जनता को सहायता प्रदान करने के लिए अपनी ओर से विभिन्न प्रकार की पहल की हैं।

 

वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) के महानिदेशक और वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसन्धान विभाग, भारत सरकार के सचिव डॉ शेखर सी. मंडे ने उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता की। उन्होंने डॉ. माशेलकर श्री जयंत सहस्रबुद्धे को धन्यवाद दिया। उन्होंने बताया कि सीएसआईआर ने राष्ट्रीय महत्व की समस्याओं का समाधान अत्यंत आवश्यक दक्षता और तेजी से करना शुरू कर दिया है। कल प्रधानमंत्री द्वारा स्वतंत्रता दिवस पर सम्बोधन के बाद उन्होंने भारत के माननीय प्रधानमंत्री द्वारा बताई गई हाइड्रोजन पहल पर चर्चा करने के लिए सीएसआईआर के प्रयोगशाला निदेशकों के साथ एक बैठक आयोजित की।

 

सीएसआईआर-एनआईएससीपीआर के मुख्य वैज्ञानिक डॉ. मोहम्मद रईस ने गणमान्य व्यक्तियों का परिचय दिया और डॉ. नरेश कुमार, मुख्य वैज्ञानिक, सीएसआईआर-एनआईएससीपीआर ने धन्यवाद प्रस्ताव दिया। उन्होंने उद्घाटन सत्र के सभी गणमान्य व्यक्तियों और दर्शकों को अपना समय देने के लिए धन्यवाद दिया।

 

राष्ट्रीय सम्मेलन का पहला सत्र "विज्ञान के बुनियादी ढांचे का निर्माण: अतीत से सीखना" पर केंद्रित था। सत्र की अध्यक्षता श्री विश्वकर्मा कौशल विश्वविद्यालय, हरियाणा के कुलपति श्री राज नेहरू ने विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार के क्षेत्र में प्राचीन भारत की उपलब्धियों को याद करते हुए चर्चा की शुरुआत की। वह बहु-विषयक दृष्टिकोण अपनाकर कौशल और पिछली सीखने की प्रक्रिया को आधुनिक वैज्ञानिक दुनिया के साथ जोड़ना चाहते थे। सत्र के सह-अध्यक्ष सीएसआईआर-एनआईएसटीएडीएस में मुख्य वैज्ञानिक डॉ. सुजीत भट्टाचार्य निस्टैड्स ने दर्शकों को सत्र के विषय के बारे में बताया।

 

प्रोफेसर फेलो, न्यू साउथ वेल्स विश्वविद्यालय, सिडनी ऑस्ट्रेलिया में प्रोफेसर फेलो प्रो. वी.वी. कृष्णा ने समावेशी नवाचार की ऐतिहासिक जड़ों और समकालीन परिदृश्य पर अपने विचार साझा किए। उन्होंने गांधी और टैगोर द्वारा की गई उन पहलों पर चर्चा की, जिससे भारतीय गांवों में छोटे उद्योगों के विकेंद्रीकरण में मदद मिली और जो भारत में औद्योगीकरण के उत्प्रेरकों में से एक बन गए। डॉ कृष्णा ने श्वेत क्रांति का भी उल्लेख किया और उदाहरण दिया कि कैसे अमूल ने समावेशी नवाचार का नेतृत्व किया है।

 

बीरबल साहनी पुराविज्ञान संस्था (बीएसआईपी), लखनऊ में पूर्व वैज्ञानिक और भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी (आईएनएसए), नई दिल्ली में सलाहकार (विज्ञान संचार) डॉ. चंद्र मोहन नौटियाल ने प्रायोगिक अनुसंधान के लिए बुनियादी ढांचे को बढ़ावा देने पर अपना व्याख्यान दिया। उन्होंने भारत में उच्च शिक्षा और विज्ञान और प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देने के लिए वैज्ञानिक संस्थानों के सुधारों के माध्यम से स्वतंत्रता के बाद के विज्ञान की क्रांति पर चर्चा की। उन्होंने अनुसंधान एवं विकास सहायता के लिए कुछ उन प्रमुख योजनाओं की शोधकर्ताओं को जानकारी दी जो आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्यों को पूरा कर रहे हैं।

 

पहले सत्र के वक्ता

 

सम्मेलन के दूसरे सत्र का विषय "भारतीय विज्ञान प्रौद्योगिकी एवं नवाचार (एसटीआई) में महत्वपूर्ण बदलाव: बीते 100 वर्ष" था। होमीभाभा सेंटर फॉर साइंस एजुकेशन (टीआईएफआर), मुंबई के प्रोफेसर पी.के. जोशी ने सत्र की अध्यक्षता की। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार के वरिष्ठ सलाहकार डॉ.अखिलेश गुप्ता ने "भारत में विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार: 2030 के लिए प्रगति और दृष्टि" पर अपने विचार रखे। उन्होंने जोर दिया कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी अनुसंधान बजट को बढ़ाया जाना चाहिए और राष्ट्रीय डेटा साझाकरण नीति में मुक्त पहुंच नीति को मजबूत किया जाना चाहिए। उन्होंने विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार नीति के साथ नई शिक्षा नीति को जोड़ने की आवश्यकता पर भी जोर दिया।

 

सीएसआईआर-राष्ट्रीय विज्ञान प्रौद्योगिकी और विकास संगठन (निस्टैड्स) के पूर्व निदेशक डॉ. अशोक जैन ने भारत में बदलते विज्ञान प्रौद्योगिकी समाज विन्यास पर अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि भारत को सामाजिक और आर्थिक लाभ के लिए विज्ञान की जरूरत है। हम दुनिया में एकमात्र देश हैं जिसने संविधान में विज्ञान के विकास को शामिल किया है और बाद में यह संगठित क्षेत्र का हिस्सा बन गया है।

 

श्रोताओं द्वारा कई प्रश्‍न पूछे गए इन प्रश्‍नों का जवाब सम्मेलन के विशेषज्ञों ने दिया। सीएसआईआर-एनआईएससीपीआर में वैज्ञानिक डॉ. मेहर वान और अकादमी ऑफ़ साइंटिफिक एंड इनोवेटिव, (एसीएसआईआर) के शोध विद्वान श्री मनोज वर्गीज ने सम्मेलन के पहले और दूसरे सत्र का संचालन किया।

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