विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय

वैज्ञानिकों ने कम लागत से मैगनोमीटर विकसित किया, जो भरोसेमंद है और रियल टाइम में चुम्बकीय क्षेत्र का मापन कर सकता है

Posted On: 17 MAY 2021 5:49PM by PIB Delhi

शोधकर्ताओं ने कम लागत के डिजिटल सिस्टम का प्रदर्शन किया, जो प्रभावी रूप से अज्ञात चुंबकीय क्षेत्र का मापन कर सकता है।

Image by Dan-Cristian Pădureț via Unsplash

डिजिटल सिगनल, संचार प्रणाली के लिए रीड की हड्डी की तरह होते हैं जो डिजिटल रिसीवर सिस्टम यानी डीआरएस की सहायता से हार्डवेयर सिस्टम के द्वारा प्रेषित और प्राप्त किए जाते हैं। मैग्नेटिक मैटर द्वारा सिग्नल उत्पन्न करने और डीआरएस द्वारा उनका विश्लेषण करने पर वैज्ञानिक चुम्बकीय क्षेत्र पर अध्ययन कर रहे हैं। सिगनल्स की प्रापर्टी का विश्लेषण किया जा सकता है, उदाहरण के तौर पर इनमें अंतर कैसे आ सकता है। वैज्ञानिक चुम्बकीय क्षेत्र का मापन कर सकते हैं और उनके छोटे उतार चढ़ाव पर अध्ययन कर सकते हैं।

भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत बंगलुरु स्थित स्वायत्त संस्था रमन शोध संस्थान (आरआरआई) के वैज्ञानिकों ने एक नए अध्ययन में एक नए और अधिक प्रभावी, तेज़ और कम कीमत का डिजिटल रिसीवर सिस्टम का आविष्कार किया है जो और चुम्बकीय क्षेत्र का सटीक मापन कर सकता है। इस अध्ययन को भारत के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग और इलेक्ट्रोनिक और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (एमईआईटीवाई) से सहायता प्राप्त हुई। इस शोध को आईईईई ट्रांजैकशन ऑन इन्स्टृमेंटेशन एंड मेजरमेंट जर्नल में प्रकाशित किया गया है। इस सिस्टम की लागत सभी सिलिकॉन आधारित हार्डवेयर और इससे संबंधित सॉफ्टवेयर के लिए 350 डॉलर से भी कम होगी।

डिजिटल रिसीवर सिस्टम का हार्डवेयर सिलिकॉन आधारित मेमोरी डिवाइसेस से बना होता है। इन यंत्रों को कंप्यूटर कोड द्वारा गणितीय प्रचालन के योग्य बनाया गया है। इससे यह सिस्टम 'स्पिन' जैसे मैटर का बुनियादी मापन कर सकता है। इलेक्ट्रोन्स का स्पिन ही हमारे आसपास के सभी ओब्जेक्ट्स के चुम्बकीय गुण का पता लगाता है।

इलेक्ट्रॉन का स्पिन कमरे के तापमान पर स्थिर नहीं रहता। आरआरआई में एसोसिएट प्रोफेसर और इस शोध के सह लेखक सप्तर्षी चौधरी ने इस पर कहा कि वह ऊपर नीचे होते रहते हैं। स्पिन के इस उतार-चढ़ाव के कारणों को वैज्ञानिक स्पिन नोइज़ कहते हैं। चुंबकीय क्षेत्र में इन छोटे-छोटे उतार-चढ़ावों के मापन के माध्यम से शोधकर्ता स्पिन नॉइज़ को और अधिक सटीकता से व्याख्यायित कर सकते हैं।

यह कार्य पीआरआई के शोधकर्ताओं (पीएचडी करने वाले) महेश्वर स्वार और सुभजीत भर के अध्ययन (थीसिस) का विस्तार है। शोधकर्ताओं ने रूबीडियम अणुओं को 100 से 200 डिग्री सेल्सियस तापमान पर गर्म किया जिससे स्पिन में उतार-चढ़ाव आने लगा। उसके बाद उन्होंने इन अणुओं को एक लेजर से विस्फोट कराया, जिसकी अपनी प्रॉपर्टी है ‘चुंबक बनाने की क्रिया’। स्पिन में उतार चढ़ाव के कारण लेजर के चुंबक बनाने की क्रिया में भी उतार-चढ़ाव देखा गया, जिसे शोधकर्ताओं ने प्रकाश संसूचक से मापा। चुंबक बनने की क्रिया में अंतर डिजिटल रिसीवर सिस्टम के लिए संकेतक है। उसके बाद उन्होंने इस सिस्टम को दो अलग-अलग मोड में कार्य करने के लिए डिजाइन किया।

डीआरएस डिवाइस का उपयोग करके चुंबकीय क्षेत्र को मापते हुए चित्र

[Image Credit: Raman Research Institute]

 

इनमें से एक का गणितीय फलन के लिए व्यापक रूप में इस्तेमाल किया जाता है, जिसे सिग्नल का ‘फ्यूरियर ट्रान्स्फ़ोर्म’ कहा जाता है। यह नाम इसके आविष्कारक जोसेफ फ्यूरियर के नाम पर रखा गया है। सिग्नल का ‘फ्यूरियर ट्रान्स्फ़ोर्म’ रूबीडियम अणु की ऊर्जा में बदलाव की गणना करने देता है, जिससे वे सीधे चुम्बकीय क्षेत्र के बारे में निष्कर्ष निकाल सकते हैं। चुम्बकीय क्षेत्र को मापने के लिए प्रचलित व्यवस्था से सिग्नल की छोटी फ्रिक्वेंसी रेंज के सिग्नल का विश्लेषण किया जाता है। शोधकर्ताओं ने यह दिखाया कि उनका मेथड परंपरागत गणना प्रक्रिया के मुक़ाबले गणना को तेज़ कर देगा।

कभी-कभी चुम्बकीय क्षेत्र के मापन के समय डीआरएस मात्र कुछ समय के लिए सिग्नल प्राप्त कर सकता है। ऐसे परिदृश्य में यह महत्वपूर्ण हो जाता है कि गणना तब की जाए जब यह सृजित हुआ वह भी बिना किसी व्यवधान के। शोधकर्ताओं ने यह क्षमता मानक हार्डवेयर और कंप्यूटर कोड की मदद से सफलतापूर्वक क्रियान्वित की। उन्होंने 800 माइक्रोगेस के चुम्बकीय क्षेत्र को मापा, जो मोटे तौर पर पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र से हज़ार गुना छोटा है। यह प्रक्रिया 1 सेकंड के दसवें हिस्से में की गई।

हालांकि इसमें एक समस्या भी सामने आई– डीआरएस द्वारा प्राप्त किए जाने वाले सिग्नल में विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र का हस्तक्षेप। इस शोध के एक अन्य सह लेखक ने बताया कि यह हस्तक्षेप संभवतः डिजिटल रिसीवर के ऊर्जा श्रोत के कारण अथवा आसपास के कंप्यूटर, फोन, लेज़र और प्रयोगशाला के अन्य उपकरण से निकलने वाले रेडियो फ्रिक्वेंसि के कारण हो रहा है। इसका पता लगाने के लिए शोधकर्ताओं ने डीआरएस के हार्डवेयर को ऊर्जा देने के लिए बैटरी बैंक का उपयोग किया और इसे किसी भी बाहरी व्यवधान से बचाने के लिए 5 मिलीमीटर मोटे स्टील की शीट से कवर किया। उन्होंने कहा कि बाकी के हस्तक्षेप यानि व्यवधान को खत्म करने के लिए हमें उच्च क्षमता का डाटा प्रसंस्करण अल्गोरिद्म भी विकसित किया है।

शोधकर्ताओं ने गर्म रुबीडियम के चारों ओर एक बाहरी चुम्बकीय क्षेत्र लगाया। उन्होंने दिखाया कि चुम्बकीय क्षेत्र की गणना उनके माप में स्थिर रही, जिसकी वे अपेक्षा कर रहे थे। अतः उन्होंने प्रदर्शित किया कि 2 कम्पोनेंट वाला डिजिटल रिसीवर सिस्टम एक आण्विक मैगनोमीटर की तरह काम करता है। श्री सप्तऋषि ने कहा कि हमारा मैगनोमीटर अज्ञात चुम्बकीय क्षेत्रों को मापने के लिए लगाया जा सकता है।

आण्विक चुम्बकीय क्षेत्रों की सटीक गणना के लिए डिजिटल रिसीवर सिस्टम की कार्यप्रणाली का प्रदर्शन करते हुए शोधकर्ताओं ने कहा कि वे इस उपकरण के बड़े पैमाने पर उत्पादन या इसके व्यावसायिक उपयोग के लिए तैयार हैं। ऐसे में अब आवश्यकता है इस परियोजना में उद्योग जगत के रुचि की। श्री सप्तर्षि ने रेखांकित किया कि हमारे इस उपकरण के बड़े स्तर पर उत्पादन में किसी प्रकार का कोई व्यवधान नहीं है।

शोध इस लिंक पर उपलब्ध है: https://doi.org/10.1109/TIM.2020.3026843

और अधिक विवरण के लिए वी. मुगूंधन (mugundhan@rri.res.in); महेस्वर स्वर (mswar@rri.res.in); सुभाजित भर (subhajit@rri.res.in), और सप्तर्षि चौधरी (srishic@rri.res.in) से संपर्क किया जा सकता है।

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एमजी /एएम/ डीटी/एसएस

 



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