कॉरपोरेट कार्य मंत्रालय

कॉरपोरेट कार्य मंत्रालय ने सीमित दायित्‍व अधिनियम, 2008 के तहत अपराध को फौजदारी श्रेणी से हटाने की प्रकिया शुरू की

Posted On: 03 FEB 2021 6:14PM by PIB Delhi

हमारे युवाओं की उद्यमशीलता को उजागर करने और उनके सामान्‍य व्यापारिक लेनदेन के दौरान मामूली एवं प्रक्रियात्मक चूक के लिए फौजदारी मुकदमों की आशंका को दूर करने के उद्देश्‍य से भारत सरकार के कॉरपोरेट कार्य मंत्रालय (एमसीए) ने सीमित दायित्‍व भागीदारी (एलएलपी) अधिनियम, 2008 के तहत सामान्‍य अपराधों को फौजदारी श्रेणी से अलग करने की प्रक्रिया शुरू करने का निर्णय लिया है ताकि कानून का अनुपालन करने वाले एलएलपी के लिए बेहतर कारोबारी सुगमता सुनिश्चित हो सके।

सरकार मानती है कि ईमानदार एवं नैतिक कॉरपोरेट उद्यमी संपत्ति सृजित करने वाले और राष्ट्र का निर्माण करने वाले होते हैं। फौजदारी श्रेणी से अगल करने की कवायद का उद्देश्य कारोबारी कानूनों के तहत उल्‍लंधन के उन मामलों को फौजदारी श्रेणी से अलग करना है जहां कोई गलत इरादा न हो। इसी उद्देश्य के साथ सीमित दायित्‍व भागीदारी अधिनियम के उन प्रावधानों की पहचान करने के लिए एक कवायद शुरू की गई जिनके उल्लंघन के कारण आम लोगों के हितों को नुकसान नहीं पहुंचता है लेकिन कानून के वर्तमान प्रावधान के तहत उन्‍हें जुर्माने के साथ-साथ फौजदारी अपराध की श्रेणी में रखा गया है।

 सामान्‍य अपराधों को फौजदारी श्रेणी से अलग करने के लिए अपनाए गए सिद्धांत:

 

क. सिद्धांत 1: ऐसे अपराध जो मामूली/ कम गंभीर अनुपालन मुद्दों से संबंधित होते हैं और जिनमें मुख्य रूप से उद्देश्य निर्धारण शामिल होते हैं, को फौजदारी अपराध मानने के बजाय इन-हाउस एडजुडिकेशन मैकेनिज्म (आईएएम) ढांचे के तहत स्थानांतरित किया जाना प्रस्तावित है।

ख. सिद्धांत 2: ऐसे अपराध जिन्हें अन्य कानूनों के तहत निपटाया जाना अधिक उचित है उन्हें एलएलपी अधिनियम, 2008 से हटाने का प्रस्‍ताव है।

ग. सिद्धांत 3: नन-कंपाउंडेबल यानी समझौत न हो सकने वाले अपराध काफी गंभीर श्रेणी के अपराध होते हैं जिनमें धोखाधड़ी, धोखा देने का इरादा और आम लोगों के हितों को नुकसान अथवा प्रभावी विनियमन पर लागू होने वाले वैधानिक अधिकारियों के आदेश का अनुपालन नहीं न करने जैसे मामलों में यथास्थिति बरकरार रखी जाएगी।

 

कुल मिलाकर बारह (12) अपराधों को फौजदारी श्रेणी से बाहर करने का प्रस्‍ताव है और एक (1) प्रावधान (धारा 73) के तहत आपराधिक दायित्‍व को हटाने का प्रस्‍ताव है। फौजदारी श्रेणी से बाहर किए जाने वाले 12 अपराधों को आईएएम में स्थानांतरित कर दिया जाएगा ताकि फौजदारी अदालतों के नियमित मामलों से उन्‍हें हटाया जा सके।

इस अधिनियम के प्रावधानों को फौजदारी श्रेणी से हटाने के अलावा सरकार ने बेहतर कारोबारी सुगमता के लिहाज से इस अधिनियम में कुछ नई अवधारणाओं को भी शामिल करने का प्रस्‍ताव दिया है:

  1. लघु एलएलपी: छोटी कंपनियों की अवधारणा के अनुरूप 'लघु एलएलपी' नाम से एलएलपी की एक श्रेणी बनाने का प्रस्ताव है। ये छोटे एलएलपी कम अनुपालन, कम शुल्क या अतिरिक्त शुल्क और डिफॉल्ट की स्थिति में कम जुर्माने के अधीन होंगे। इस प्रकार, अनुपालन की कम लागत सूक्ष्‍म एवं लघु भागीदारी को एलएलपी के एक संगठित ढांचे के तहत लाने और उसका फायदा हासिल करने के लिए प्रोत्साहित करेगी।

 

  1. गैर-परिवर्तनीय डिबेंचर (एनसीडी): एलएलपी को सेबी अथवा आरबीआई द्वारा विनियमित निवेशकों से पूरी तरह से सुरक्षित गैर-परिवर्तनीय डिबेंचर (एनसीडी) (इक्विटी भागीदारी के विकल्प के रूप में) के जरिये रकम जुटाने की अनुमति देने का प्रस्ताव है। यह ऋण बाजार को गहराई देने और एलएलपी के पूंजीकरण को बढ़ावा देने में मदद करेगा।

 

अतिरिक्त शुल्क में कमी: फॉर्म एवं दस्‍तावेजों को विलंब के साथ जमा कराने के मामले में फिलहाल 100 रुपये प्रति दिन के अतिरिक्‍त शुल्‍क को कम करने की दृष्टि से इस अधिनियम की धारा 69 में संशोधन करने का भी प्रस्‍ताव है। कम अतिरिक्त शुल्क से एलएलपी के रिकॉर्ड और रिटर्न को सुचारु तरीके से प्रोत्‍साहन मिलने की संभावना जिससे उचित विनियमन एवं नीति निर्माण संभव होगा।

 

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