Posted On:
25 SEP 2020 5:29PM by PIB Delhi
शिक्षा मंत्रालय द्वारा 24 सितंबर 2020 को प्रभावी प्रशासन और मानक संचालन पर एक राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन किया गया। इस सत्र के लिए लक्षित लाभार्थी समूह में प्री-स्कूल और लोअर प्राइमरी शिक्षक, स्कूलों के प्रमुख, माता-पिता तथा सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों के शिक्षा विभाग शामिल थे। शिक्षकों को सम्मानित करने और नई शिक्षा नीति-2020 को आगे बढ़ाने के लिए 8 सितंबर से 25 सितंबर 2020 तक शिक्षक पर्व मनाया जा रहा है।
एनआईईपीए के वाइस चासंलर प्रो. एन. वी. वर्गीज; डीटीई एनसीईआरटी के असिस्टेन्ट प्रोफेसर डॉ. के. विजयन; डीईपीएफई एनसीईआरटी के डीन रिसर्च एंड हेड प्रो ए. के. श्रीवास्तव और राजकीय बालिका उच्चतर माध्यमिक विद्यालय जहांगीराबाद, भोपाल की प्रधानाध्यापिका डॉ. ऊषा खरे इस कार्यक्रम के प्रमुख वक्ताओं में शामिल थे।
प्रो. वर्गीज ने मानक संचालन और प्रमाणन के मौजूदा मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने प्रस्तुति के दौरान विभिन्न विषयों पर अपनी बात रखी। प्रो. वर्गीज ने कहा कि कई देशों की प्रवृत्ति महत्वाकांक्षी मानकों को निर्धारित करने और फिर जवाबदेही को मापने के लिए इन मानकों का उपयोग करने की है। यह सुनिश्चित करने के लिए ही मानकों का उपयोग किया जाता है कि शिक्षक और स्कूल जिम्मेदार हैं तथा शिक्षण व अध्ययन की प्रक्रिया व्यवस्थित रूप से आगे बढ़ती है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 ने स्कूलों में सुविधाओं को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया, जबकि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 ने कक्षाओं में सुविधाएं बढ़ाने की मांग रखी। यह 1990 का दशक ही था जबकि सीखने के न्यूनतम स्तर की अवधारणा सबसे आगे आ गई। उन्होंने कहा कि दो प्रमुख मुद्दे थे जिन पर ध्यान देने की आवश्यकता थी। पहला, छात्र वह नहीं सीख रहे हैं जो उन्हें सीखना चाहिए। दूसरा, विभिन्न विद्यालयों में छात्र जो सीख रहे हैं, उसमें व्यापक भिन्नता है। आमतौर पर, सर्वेक्षण बताते हैं कि ज्यादातर निजी स्कूल, केंद्रीय विद्यालयों और नवोदय विद्यालयों के अलावा सरकारी स्कूलों से बेहतर प्रदर्शन करते हैं। विश्व स्तर पर, स्कूली शिक्षा में सीखने पर जोर देने के लिए एक बदलाव किया गया है। इससे स्कूलों पर दबाव बना है। माता-पिता अपने बच्चों को निजी स्कूलों में भेजना पसंद करते हैं। प्रो. वर्गीज ने कहा कि समय के साथ स्कूलों और छात्रों के बेहतर प्रदर्शन के लिए समाज की मांग बढ़ी है।
प्रो. श्रीवास्तव की प्रस्तुति राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी 2020) स्कूल परिसरों की सिफारिश और इसके कार्यान्वयन पर केंद्रित रही। मुख्य सिफारिशें-
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के तहत स्कूल परिसरों और समूहों के लिए इस प्रकार हैं-
· राज्य और केंद्र शासित प्रदेश सरकारों द्वारा 2025 तक स्कूलों के विद्यालय परिसरों में समूहीकरण।
· सभी विषयों के लिए पर्याप्त संख्या में परामर्शदाता और शिक्षक सुनिश्चित करना।
· पर्याप्त संसाधन इकट्ठा करना (प्रयोगशाला, कला, खेल उपकरण)।
· अलगाव को दूर करने के लिए स्कूलों के बीच समुदाय की भावना का विकास करना।
· सीडब्ल्यूडी के लिए स्कूलों के बीच सहयोग का आग्रह।
· स्कूलों के समूह के लिए निर्णय लेने की प्रक्रिया।
विद्यालय परिसर के कार्य
· सामूहिक स्तर पर विद्यालयों के सुधार और उन्हें कुशल प्रशासन में लाने के लिए शक्ति के विकेंद्रीकरण का उद्देश्य।
· स्कूल शिक्षा निदेशालय विद्यालय परिसरों के अधिकार को विकसित करेगा और इसे अर्ध-स्वायत्त इकाइयों के रूप में माना जाएगा।
· डीईओ और बीईओ विद्यालय के साथ बातचीत करेंगे।
· विद्यालय परिसर को एकल इकाई के रूप में माना जाता है और कुछ कार्यों को करने के लिए स्वायत्ता दी जाएगी।
· सभी विद्यालयों को शक्तियां प्राप्त होंगी और वे जटिल से मजबूत बनाने की दिशा में योगदान देंगे।
· शैक्षणिक शिक्षा प्रदान करने के लिए स्वायत्ता, एनसीएफ/एससीएफ के साथ अध्यापन कला और पाठ्यक्रम के साथ प्रयोग करना।
विद्यालय/परिसर योजनाओं का विकास
· समूहों द्वारा विकसित की जाने वाली छोटी और दीर्घकालिक योजनाएं।
· स्कूल समूहों को शामिल करते हुए अपनी योजनाओं का विकास करेंगे, जो एससीडीपी का आधार बनेगी।
· एससीडीपी का निर्माण प्रधानाध्यापक और विद्यालय के शिक्षकों तथा एससीएमसी द्वारा किया जाएगा।
· योजना में लोग, सीखने, भौतिक, वित्तीय संसाधन, सुधार संबंधी पहलें, विद्यालय संस्कृति पहल, शिक्षक विकास योजना और शैक्षिक परिणाम शामिल होंगे।
डॉ. खरे ने अनुभवों पर आधारित दृष्टिकोण साझा करते हुए बताया कि, कैसे उन्होंने अपने स्कूल में प्रशासनिक चुनौतियों को दूर किया। डॉ. खरे ने विद्यालयों में बुनियादी ढांचे जैसी विभिन्न चुनौतियों का वर्णन किया, जिनमें खराब स्थिति, सुविधाओं की कमी, अतिक्रमण और अशुद्ध वातावरण, पुराना ज्ञान, बदलाव का डर, शिक्षकों में तकनीक का उपयोग करने की कमी, जागरूकता की कमी, माता-पिता की अनियमितता, सामाजिक मूल्यों का घटना, प्रेरणा की कमी, नियमित न रहना और छात्रों के लिए स्वयं तथा दूसरों के लिए कोई सम्मान न होना शामिल हैं।
उन्होंने निम्नलिखित सुझाव दिए हैं कि, हम इन चुनौतियों से कैसे पार पा सकते हैं-
· मनोविज्ञान और शिक्षा के बारे में अपनी खुद की मानसिकता तैयार करना, अच्छा प्रशिक्षण और लंबा अनुभव, आत्मविश्वास, समस्या को सुलझाने का दृष्टिकोण, दृढ़ संकल्प, सकारात्मक दृष्टिकोण और चुनौतियों का खुलापन।
· पर्यावरण में सुधार- अपशिष्ट पदार्थों का निस्तारण, पुरानी सामग्रियों का पुन: उपयोग और पुनर्चक्रण, पेंटिंग और सजावट, साफ़ और स्वच्छ पहल और कार्य संस्कृति के निर्माण के साथ स्कूल की दीवारों को समृद्ध करना।
· नेटवर्क का निर्माण- समर्थन प्रणाली की सूची, संपर्क स्थापित करना, भागीदारी के लिए निमंत्रण सुनिश्चित करना और स्कूल के शुभचिंतकों का एक स्थानीय समुदाय - "अपसी समाज समिति"।
· छात्र शक्ति का निर्माण- विद्यालय की छवि बनाना, हिंदी से अंग्रेजी में अनुवाद, विद्यालय की गतिविधियों और कार्यक्रमों में सामुदायिक भागीदारी, विपणन और संवर्धन।
· सहयोग- आवश्यकताओं की सूची और योजना, सहयोगियों को कार्य और जिम्मेदारी का आवंटन, आवश्यक सहायता और पर्यावरण, निर्णय लेने की क्षमता, निगरानी और मार्गदर्शन, परिणाम विश्लेषण और सुधार, प्रशंसा और मान्यता प्रदान करना।
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