विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय

ऑस्टियोआर्थराइटिस एवं डायबेटिक फुट अल्सर के उपकरणों के विकास को बढ़ावा देने के लिए संस्थान-उद्योग सहयोग

Posted On: 16 SEP 2020 6:07PM by PIB Delhi

ऑर्थोटिक उपकरणों के विकास को जल्द ही एक बढ़ावा मिल सकता है। ऑस्टियोआर्थराइटिस और डायबिटिक फुट अल्सर जैसी नैदानिक ​​स्थितियों की जरूरतों पूरा करने वाले ऐसे उपकरणों के सह-विकास के लिए केरल स्थित एक वैज्ञानिक संस्था और मोहाली स्थित एक निजी निर्माता कंपनी साथ मिलकर काम कर रहे हैं।

श्री चित्रा तिरुनल इंस्टीट्यूट फॉर मेडिकल साइंसेज एंड टेक्नोलॉजी, त्रिवेंद्रम, केरल (एससीटीआईएमएसटी), जो भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के तहत राष्ट्रीय महत्व का एक संस्थान है, ने भारत सरकार के उच्च प्राथमिकता वाले 'आत्मनिर्भर भारत' के लक्ष्य की ओर बढ़ते हुए इस क्षेत्र में स्वदेशी उपकरणों के विकास को बढ़ावा देने के उद्देश्य से एक ओर्थोटिक्स एवं पुनर्वास संबंधी अनुसंधान एवं विकास इकाई स्थापित करने के लिए टाइनोर ऑर्थोटिक्स प्राइवेट लिमिटेड (टाइनोर), मोहाली के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किया है।

टाइनोर, जोकि  उच्च गुणवत्ता वाले एवं सस्ते आर्थोपेडिक उपकरणों का निर्माता एवं निर्यातक है, भारत में ऑर्थोटिक उपकरणों के सह-विकास के लिए एससीटीआईएमएसटी के साथ मिलकर काम करेगा और ऑर्थोटिक्स एवं पुनर्वास के क्षेत्र में संयुक्त अनुसंधान कार्यक्रमों को बढ़ावा देगा। टाइनोर ने डायबिटीज फुट अल्सर एवं ऑस्टियोआर्थराइटिस के रोगियों में दो ऑफ-लोडिंग उपकरणों के अनुसंधान एवं विकास के लिए एससीटीआईएमएसटी का वित्त पोषण किया है। यह परियोजना एक वर्ष के लिए तैयार की गयी है जिसके तहत इस कार्यक्रम के लिए टाइनोर 27 लाख रूपए का योगदान देगा।

इस संस्थान-उद्योग सहयोग का मुख्य उद्देश्य ऑस्टियोआर्थराइटिस और डायबिटिक फुट अल्सर जैसी नैदानिक ​​स्थितियों की जरूरतों को पूरा करने के लिए ऑर्थोज का एक क्लस्टर विकसित करना है। एशिया–प्रशांत क्षेत्र में बुजुर्गों की बढ़ती हुई आबादी, जो अधिक मधुमेह उन्मुखी है, के कारण डायबेटिक फुट अल्सर के वैश्विक चिकित्सीय बाजार में आकर्षक वृद्धि होने का अनुमान है। वर्ष 2019-2025 के दौरान 6.6% की यौगिक वार्षिक वृद्धि दर (सीएजीआर) के साथ डायबिटिक फुट अल्सर और प्रेशर अल्सर के वैश्विक बाज़ार के 2025 तक 5265 मिलियन डॉलर तक पहुंच जाने का अनुमान है, जो काफी खतरनाक है।

इसी प्रकार, ऑस्टियोआर्थराइटिस के बढ़ते प्रसार, घुटने की आर्थोपेडिक सर्जरी की बढ़ती संख्या तथा एथलेटिक्स में खेल संबंधी चोटों की बढ़ती संख्या के कारण नी ब्रेसिज़ का वैश्विक बाजार बढ़ रहा है। नी ब्रेसिज़ के वैश्विक बाजार का आकार 2018 में 1.5 बिलियन अमरीकी डॉलर होने का अनुमान लगाया गया था और अब इसकी यौगिक वार्षिक वृद्धि दर (सीएजीआर) 4.3% होने की उम्मीद है। ऑस्टियोआर्थराइटिस के बढ़ते बोझ, लक्षित आबादी में वृद्धि, लागत प्रभावी तकनीक और आसानी से पहने जा सकने वाले ब्रेसिज़ की उपलब्धता इसके बाजार के विकास के प्रमुख कारक हैं।

एससीटीआईएमएसटी ने पिछले 30 या उससे अधिक वर्षों में बायोमेडिकल उपकरणों के क्षेत्र में व्यापक पैमाने पर अनुसंधान एवं विकास का काम किया है और इस क्षेत्र में खुद को अग्रणी के तौर पर स्थापित किया है। देश में ऑर्थो-रिहैब उपकरणों के सह-विकास के लिए उद्योग के एक नेता का यह सहयोग एक सराहनीय कदम है।

टाइनोर ने ऑर्थोपेडिक उपकरणों, फ्रैक्चर एड्स, वॉकिंग एड्स, कम्प्रेशन गारमेंट्स तथा फुटकेयर उत्पादों के क्षेत्र में भारत का पहला अनुसंधान एवं विकास केंद्र स्थापित करने की योजना बनाई है। इस केंद्र को टोरनाडो (टाइनोंर ऑर्थो रिसर्च एन एप्लायंस डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन) नाम दिया गया है और इसका उद्देश्य एक बवंडर (टोरनाडो) जैसी तेजी से प्रौद्योगिकी एवं नवाचार आधारित हलचल लाना है। यह एक आदर्श केंद्र होगा जिसमें एक क्रॉस-फंक्शनल टीम होगी। इस टीम में इंजीनियरिंग, ऑर्थोपेडिक्स, बायोमेडिकल साइंसेज, डिज़ाइन के विशेषज्ञ शामिल होंगे, जिन्हें भारतीय रोगियों की जरूरतों के अनुसार उत्पादों के बारे में विचार-मंथन और उन्हें विकसित करने के लिए एक साथ लाया जाएगा। उद्योग-अकादमिक सहयोग इस उपलब्धि को हासिल करने की कुंजी होगी।

एससीटीआईएमएसटी की बायोमेडिकल टेक्नोलॉजी विंग के वैज्ञानिक श्री सुभाष एनएन, श्री मुरलीधरन सीवी और डॉ. हरिकृष्णवर्मा (प्रमुख, बीएमटी विंग) के साथ-साथ हॉस्पिटल विंग के डॉ. नित्या जे एवं डॉ. सुबीन सुकेसन तथा सलाहकार के रूप में देश के अन्य विशेषज्ञ इस ऑर्थोटिक्स एवं पुनर्वास संबंधी अनुसंधान एवं विकास इकाई का संचालन कर रहे हैं।

 

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चित्र 1: डायबेटिक फुट अल्सर

चित्र 2 : नी ब्रेस

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