वित्त मंत्रालय
दिवाला एवं दिवालियापन संहिता से समाधान प्रक्रिया में सुधार : समाधान में लगने वाला समय घटकर एक-चौथाई हुआ
अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों के जोखिम संसाधन पूंजी अनुपात (सीआरएआर) में सुधार हुआ : गैर निष्पादक संसाधन (एनपीए) अनुपात 9.3 प्रतिशत पर नियंत्रित
व्यक्तिगत ऋण में लगातार तथा जोरदार वृद्धि दर्ज की गई
एनबीएफसी के लिए सीआरएआर सितम्बर, 2019 में 19.5 प्रतिशत स्थिर रहा, जबकि सांविधिक लक्ष्य 15 प्रतिशत था
Posted On:
31 JAN 2020 1:28PM by PIB Delhi
केंद्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट कार्य मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने आज संसद में आर्थिक समीक्षा 2019-20 पेश की। आर्थिक समीक्षा में बताया गया है कि दिवाला एवं दिवालियापन संहिता (आईबीसी) से भारत में पहले के उपायों की तुलना में समाधान प्रक्रिया में सुधार हुआ है। आईबीसी प्रक्रियाओं में औसतन 340 दिन का समय लगता है, जबकि पहले 4.3 वर्ष का समय लगता था। साथ ही, एसएआरएफएईएसआई अधिनियम के तहत 42.5 प्रतिशत धनराशि की वसूली हुई, जबकि पहले 14.5 प्रतिशत वसूली होती थी।
आर्थिक समीक्षा में बताया गया कि अप्रैल, 2019 के 6.25 प्रतिशत से अक्टूबर, 2019 के 5.15 प्रतिशत तक 110 बेसिस प्वाइंट की कटौती के साथ 2019-20 में मौद्रिक नीति अनुकूल बनी रही। आर्थिक समीक्षा में बताया गया कि ‘कम महंगाई दर तथा निजी निवेश द्वारा घरेलू विकास को सशक्त बनाने की जरूरत’ से भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति (एनपीसी) द्वारा दर में कटौती करने का निर्देश मिला।
आर्थिक समीक्षा में बताया गया कि 2019-20 में व्यक्तिगत ऋण में निरंतर एवं जोरदार वृद्धि हुई, जबकि कुल मिलाकर बैंक ऋण की वृद्धि में कमी हुई है, जो अप्रैल, 2019 के 12.9 प्रतिशत से घटकर दिसंबर, 2019 में 7.1 प्रतिशत रह गया। आर्थिक समीक्षा में बताया गया कि मौद्रिक वितरण कमजोर रहा है। उदाहरण के लिए, आर्थिक समीक्षा में बताया गया कि ऋण का प्रसार यानी रेपो रेट तथा वेटेड औसत ऋण दर (डब्ल्यूएलआर) के बीच का अंतर इस दशक में सर्वोच्च स्तर पर है।
इसके अलावा, आर्थिक समीक्षा में बताया गया कि अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों का सीआरएआर मार्च एवं सितम्बर, 2019 के बीच 14.3 प्रतिशत से बढ़कर 15.1 प्रतिशत हो गया है। इसी तरह अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों के लिए संसाधनों पर रिटर्न की भरपाई 2019-20 की पहली छमाही के दौरान (-) 0.1 प्रतिशत से 0.4 प्रतिशत हो गई। आर्थिक समीक्षा में बताया गया कि अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों का सकल गैर निष्पादक अग्रिम धन (जीएनपीए) का अनुपात मार्च, 2019 से लेकर सितंबर, 2019 तक 9.3 प्रतिशत पर स्थिर बना रहा।
इसके अलावा, आर्थिक समीक्षा में बताया गया कि क्षेत्र का सीआरएआर सितंबर, 2019 में 19.5 प्रतिशत पर था, जबकि 15 प्रतिशत की सांविधिक आवश्यकता थी, जो बताता है कि गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) पर जोर दिया जा रहा है, क्योंकि जीएनपीए मार्च, 2019 के 6.1 प्रतिशत से बढ़कर सितंबर, 2019 में 6.3 प्रतिशत हो गया।
बजट-पूर्व समीक्षा में बताया गया कि जुलाई एवं अगस्त में विदेशी विनिमय संबंधी विक्रयों की कुछ कहानियों के बावजूद, जून, 2019 में प्रणालीबद्ध तरलता पर्याप्त रही। समीक्षा में बताया गया कि 2019-20 की पहली छमाही में कच्चे तेल की कीमत घटने, अतिरिक्त तरलता तथा यूडी फेडरल रिजर्व की मौद्रिक नीति में बदलाव के कारण 10 वर्ष के मानदंड जी-सेक में नरमी देखी गई। यह धीरे-धीरे चलता रहा चलता रहा और दिसंबर, 2019 में 6.8 प्रतिशत पर बना रहा, क्योंकि एमपीसी ने रेपो दरों में कोई बदलाव नहीं किया।
समीक्षा में बताया गया कि दिसंबर, 2019 में रिजर्व मनी में 13.2 प्रतिशत वृद्धि हुई, जबकि विस्तृत तौर पर धन की वृद्धि 2009 से गिरावट के लक्षण को पीछे छोड़ते हुए वृद्धि की ओर गतिमान रही। इसी प्रकार, पूंजी बाजारों में प्राथमिक बाजारों से कुल पब्लिक इसू में अच्छे संकेत मिले, जिसमें लगभग 30,000 करोड़ रुपये तक वृद्धि हुई। भारतीय बाजारों में विदेश पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) द्वारा कुल निवेश 7.8 बढ़कर 31 दिसंबर, 2019 को 259.5 अरब अमेरिकी डॉलर हो गया। समीक्षा में यह भी बताया गया है कि 2019-20 के दौरान भारत के बेंचमार्क सूचकांक निफ्टी-50 और एसएंडपी बीएसई सेंसेक्स अभूतपूर्व ऊंचाई पर रहे।
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आर.मल्होत्रा/आरकेमीणा/आरएनएम/आरआरएस/एजी/एमएस/केपी/आरके/जेके/एसकेएस/एके/वीके/एमएस/एसके/डीए/डीके/सीएल/सीएस/वाईबी/जीआरएस-27
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