वित्त मंत्रालय
वर्ष 2014 से ही महंगाई निरंतर घटती जा रही है; 2014-19 के दौरान अधिकतर आवश्यक खाद्य पदार्थों की कीमतों में उतार-चढ़ाव में उल्लेखनीय कमी
किसानों के हितों की रक्षा से जुड़े उपायों को और भी अधिक कारगर बनाया जाना चाहिए
Posted On:
31 JAN 2020 1:31PM by PIB Delhi
केन्द्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट कार्य मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने आज संसद में आर्थिक समीक्षा, 2019-20 पेश की। आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि भारत में वर्ष 2014 से ही महंगाई निरंतर घटती जा रही है। हालांकि, हाल के महीनों में महंगाई में वृद्धि का रुख देखा गया है। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) पर आधारित मुख्य महंगाई दर वर्ष 2018-19 (अप्रैल- दिसम्बर 2018) के 3.7 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2019-20 की समान अवधि में 4.1 प्रतिशत हो गई है। थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) पर आधारित महंगाई दर में वर्ष 2015-16 और वर्ष 2018-19 के बीच की अवधि के दौरान वृद्धि दर्ज की गई है। हालांकि, डब्ल्यूपीआई पर आधारित महंगाई दर वर्ष 2018-19 की अप्रैल-दिसम्बर 2018 अवधि के 4.7 प्रतिशत से घटकर वर्ष 2019-20 की समान अवधि में 1.5 प्रतिशत रह गई।
आर्थिक समीक्षा में यह बात रेखांकित की गई है कि वर्ष 2018-19 के दौरान सीपीआई-संयुक्त महंगाई मुख्यत: विविध समूह के कारण बढ़ी थी। हालांकि, वर्ष 2019-20 (अप्रैल-दिसम्बर) के दौरान सीपीआई-संयुक्त महंगाई में मुख्य योगदान खाद्य एवं पेय पदार्थों का रहा। खाद्य एवं पेय पदार्थों में अत्यधिक महंगाई विशेषकर सब्जियों एवं दालों में दर्ज की गई। इसका मुख्य कारण बेस इफेक्ट का कम रहना और असमय वर्षा के कारण उत्पादन का बाधित होना था। आर्थिक समीक्षा में यह सिफारिश की गई है कि किसानों के हितों की रक्षा से जुड़े उपायों जैसे कि मूल्य स्थिरीकरण कोष के तहत खरीद एवं न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को और भी अधिक कारगर बनाने की आवश्यकता है।
आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि वर्ष 2014 से लेकर वर्ष 2019 तक की अवधि के दौरान देश के चारों महानगरों में विभिन्न आवश्यक कृषि जिंसों के खुदरा एवं थोक मूल्यों में व्यापक अंतर रहा है। यह अंतर विशेषकर प्याज एवं टमाटर जैसी सब्जियों के कारण देखा गया। संभवत: बिचौलियों की मौजूदगी और सौदों की लागत के काफी अधिक रहने के कारण ही यह स्थिति देखने को मिली।
आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि समय के साथ आवश्यक जिंसों की कीमतों में होने वाले उतार-चढ़ाव में बदलाव देखा गया है। वर्ष 2009 से वर्ष 2014 तक की अवधि की तुलना में वर्ष 2014-2019 की अवधि के दौरान कुछ दालों को छोड़ अधिकतर आवश्यक खाद्य पदार्थों की कीमतों में उतार-चढ़ाव में उल्लेखनीय कमी दर्ज की गई। यह संभवत: विपणन की बेहतर व्यवस्थाओं, भंडारण सुविधाओं और ज्यादातर आवश्यक कृषि जिंसों के लिए कारगर एमएसपी प्रणाली से ही संभव हो पाई।
आर्थिक समीक्षा के अनुसार, सीपीआई-संयुक्त महंगाई सभी राज्यों में अत्यंत भिन्न रही है। वित्त वर्ष 2019-20 (अप्रैल- दिसम्बर) के दौरान समस्त राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों में महंगाई दर (-) 0.04 प्रतिशत से लेकर 8.1 प्रतिशत दर्ज की गई। वित्त वर्ष 2019-20 (अप्रैल- दिसम्बर) के दौरान 15 राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों में महंगाई दर 4 प्रतिशत से भी कम रही। सभी राज्यों में ग्रामीण एवं शहरी महंगाई में काफी अंतर देखने को मिला। सीपीआई-संयुक्त महंगाई अधिकतर राज्यों के शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में कम है और ग्रामीण-शहरी महंगाई में यह अंतर सभी घटकों खाद्य एवं पेय पदार्थों, वस्त्र एवं फुटवियर, विविध पदार्थों इत्यादि में देखने को मिला।
ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में महंगाई में अंतर का विश्लेषण करते हुए आर्थिक समीक्षा में यह बात रेखांकित की गई है कि सभी राज्यों में शहरी महंगाई की तुलना में ग्रामीण महंगाई में अपेक्षाकृत अधिक अंतर रहा है। आर्थिक समीक्षा में यह भी कहा गया है कि हेडलाइन महंगाई दर और कोर महंगाई में अभिसरण के कारण महंगाई के आयाम में बदलाव देखा जाता रहा है। समीक्षा में यह बताया गया है कि खाद्य एवं ईंधन के मूल्यों में भारी वृद्धि को देखते हुए मौद्रिक नीति में इससे निपटने के लिए उठाये जाने वाले कदमों में इसके निहितार्थ हो सकते हैं। गैर-प्रमुख घटकों में तेज अल्पकालिक मूल्यवृद्धि को ध्यान में रखते हुए मौद्रिक नीति को कठोर बनाने की जरूरत नहीं है। हालांकि, भारत में उपभोक्ताओं के उपभोग स्टॉक में खाद्य पदार्थों एव ईंधन की भारिता (वेटेज) काफी अधिक रहने और खाद्य पदार्थों एवं ईंधन की महंगाई में न केवल आपूर्ति से जुड़े कारकों, बल्कि मांग पक्ष से जुड़े दबाव का भी काफी योगदान होने के कारण मौद्रिक नीति संबंधी निर्णयों में मुख्य महंगाई दर पर फोकस करना आवश्यक हो सकता है।
आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि आवश्यक खाद्य पदार्थों की कीमतों में स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए सरकार को समय-समय पर विभिन्न ठोस कदम उठाने चाहिए जिनमें व्यापार एवं राजकोषीय नीति से जुड़े उपायों का इस्तेमाल करना, न्यूनतम निर्यात मूल्य, निर्यात संबंधी पाबंदियां और स्टॉक लिमिट लागू करना शामिल हैं। आर्थिक समीक्षा में प्याज की कीमतों का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि वर्ष 2019-20 के दौरान अगस्त, 2019 से इसकी कीमतों में वृद्धि दर्ज की गई और इसकी कीमतों में कमी सुनिश्चित करने के लिए सरकार ने अनेक कदम उठाए।
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आर.मल्होत्रा/आरकेमीणा/आरएनएम/आरआरएस/एजी/एमएस/केपी/आरके/जेके/एसकेएस/एके/वीके/एमएस/एसके/डीए/डीके/सीएल/सीएस/वाईबी/जीआरएस -1
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