उप राष्ट्रपति सचिवालय
भारत के अंदरूनी मामलों में बाहरी हस्तक्षेप अवांच्छित : उपराष्ट्रपति
गणराज्य के रूप में 70 वर्ष लम्बी यात्रा सफलतापूर्वक पूरी होने पर जनता को शुभकामनाएं
गणराज्य के 70 वर्ष पूरे होने के बाद भारत देशवासियों की समस्याएं हल करने में बहुत सक्षम : उपराष्ट्रपति
21वीं सदी के शिक्षाविदों को बच्चों के लिए सच्चा आदर्श बनना चाहिए : उपराष्ट्रपति
उपराष्ट्रपति ने ‘टीआरजी-एन एनिग्मा’ पुस्तक का विमोचन किया
Posted On:
27 JAN 2020 4:46PM by PIB Delhi
उपराष्ट्रपति श्री एम. वैंकेया नायडू ने इस बात पर जोर दिया कि भारत के अंदरूनी मामलों में बाहरी हस्तक्षेप की कोई गुंजाइश नहीं है।
भारतीय संविधान और भारतीय सरकार के अधिकार क्षेत्र में आने वाले मुद्दों पर विदेशी हस्तक्षेप के रुझान के प्रति चिंता व्यक्त करते हुए श्री नायडू ने कहा कि इस तरह के प्रयास पूरी तरह से नाजायज और अवांच्छनीय हैं। उन्होंने उम्मीद जाहिर की कि भविष्य में बाहर के लोग इस तरह के बयान नहीं देंगे।
आज नई दिल्ली में ‘टीआरजी-एन एनिग्मा’ पुस्तक के विमोचन के बाद उपस्थितजनों को संबोधित करते हुए श्री नायडू ने कहा कि परिपक्व गणराज्य और लोकतांत्रिक देश होने के नाते भारत अपने नागरिकों की चिंताओं का समाधान करने में सक्षम है और ऐसे मामलों में दूसरों की सलाह या निर्देश की कोई जरूरत नहीं है।
श्री नायडू ने कहा, ‘गणराज्य के रूप में 70 वर्ष के अनुभव के आधार पर हमने विभिन्न चुनौतियों का कामयाबी से सामना किया है और तमाम चुनौतियों पर विजय पाई है। हम अब पहले से अधिक एक हैं और किसी को भी इस सम्बंध में चिंता करने की जरूरत नहीं है।’
उपराष्ट्रपति ने गणराज्य के रूप में 70 वर्ष लम्बी यात्रा सफलतापूर्वक पूरी होने पर जनता को शुभकामनाएं दीं और कहा कि एक राष्ट्र के रूप में हम हमेशा अपने नागरिकों के प्रति न्याय, स्वतंत्रता और समानता के लिए प्रतिबद्ध हैं। उपराष्ट्रपति ने कहा कि हमारा लोकतंत्र प्रासंगिक मतभेदों और असहमति को स्थान देता है। उन्होंने कहा कि जब भी नागरिकों के बुनियादी अधिकारों पर खतरा मंडराता है, तो देशवासी एक साथ उसकी सुरक्षा में खड़े हो जाते हैं जैसा कि आपातकाल के दौरान देखने को मिला था। उन्होंने कहा, ‘इस भावना के परिणामस्वरूप हम दुनिया में सर्वाधिक जीवंत लोकतंत्र के रूप में उभरे हैं।’
भारत में शिक्षा में अपने 50 वर्षीय अभूतपूर्व योगदान के लिए श्री तिलक राज गुप्ता की प्रशंसा करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि वे मानवीय आधार पर काम करते थे और अपने छात्रों, कर्मियों तथा अभिभावकों के लिए उनके मन में सदैव प्रेम और लगाव का भाव रहा है। अपनी इसी भावना के बल पर वे एक शानदार शिक्षाविद् बने।
श्री नायडू ने कहा कि 21वीं सदी में शिक्षाविदों की भूमिका ज्ञान प्रदान करने तक सीमित नहीं है, बल्कि उन्हें बच्चों के लिए एक सच्चा आदर्श बनना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘शिक्षाविदों को नई प्रौद्योगिकी को प्राचीन परंपराओं तथा उभरने वाले नए ज्ञान को प्राचीन सांस्कृतिक मूल्यों के साथ जोड़ने की क्षमता रखनी चाहिए।’
उपराष्ट्रपति ने कहा कि उन्होंने शिक्षा को हमेशा एक मिशन माना है, जिसके तहत शुद्ध भावना के साथ काम करना जरूरी है। उन्होंने प्रत्येक क्षेत्र और प्रत्येक विषय के मेधावियों को सलाह दी कि वे शिक्षा के क्षेत्र में आएं, ताकि विद्यार्थियों के साथ अपने अनुभवों को साझा कर सकें।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि शिक्षा का अर्थ केवल रोजगार प्राप्त करना नहीं है, बल्कि ज्ञान, शक्ति और मेधा को बढ़ाना है। उन्होंने कहा, ‘शिक्षा तभी सार्थक है जब उससे व्यक्ति अपना सर्वश्रेष्ठ काम करे और लोगों के प्रति उसमें उदारता पैदा हो। इस समय आवश्यक है मूल्य आधारित शिक्षा दी जाए।’
भारत के आदर्श ‘सर्व धर्म समभाव’ का उल्लेख करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि धर्मनिरपेक्षता हमारे राष्ट्र का एक बुनियादी सिद्धांत है और यह प्रत्येक भारतीय में निहित है। उन्होंने कहा कि भारत विश्व के सबसे अधिक जीवंत, विविध और सहिष्णु देशों में शामिल है।
हाल में घोषित पद्म पुरस्कारों के विजेताओं को बधाई देते हुए उपराष्ट्रपति ने इन गुमनाम हस्तियों को सम्मानित करने के लिए सरकार की सराहना की।
आज के कार्यक्रम में श्री तिलक राज गुप्ता, श्रीमती पुष्पा महाजन, डॉ. हर्ष महाजन और अन्य विशिष्टजन उपस्थित थे।
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आर.के.मीणा/आरएनएम/एकेपी/सीएस-5493
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