उप राष्ट्रपति सचिवालय
उपराष्ट्रपति श्री नायडू का सर्वोच्च न्यायालय को विभाजित कर क्षेत्रीय पीठों की स्थापना का सुझाव
कम लागत के साथ समय पर न्याय सुनिश्चित करने के लिए प्रमुख सुधारों का सुझाव
न्यायपालिका और सरकार को न्यायाधीशों के रिक्त पदों को जल्द भरने के लिए कहा
श्री नायडू मुकदमों के निपटान के लिए स्थगन की संख्या और समय-सीमा निर्धारित करने के साथ ही मानक संचालन प्रक्रियाओं के पक्षधर हैं
उपराष्ट्रपति ने खामियों को दूर करने के लिए दल-बदल विरोधी कानूनों की समीक्षा का भी सुझाव दिया
श्री नायडू ने सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व वरिष्ठ अधिवक्ता दिवंगत श्री पी. पी. राव पर पुस्तक का विमोचन किया
Posted On:
27 SEP 2019 6:26PM by PIB Delhi
भारत के उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति श्री एम. वेंकैया नायडू ने देश में न्याय मिलने में होने वाली देरी पर गंभीर चिंता जताते हुए सर्वोच्च न्यायालय को विभाजित कर उसके चार क्षेत्रीय पीठ स्थापित करने सहित कई सुधारों का सुझाव दिया है। साथ ही उन्होंने मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) तैयार करने की भी बात कही, क्योंकि वह न्यायालयों द्वारा मामलों के निपटान के लिए स्थगन की संख्या और समय-सीमा को सीमित करती है।
श्री नायडू ने सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व वरिष्ठ अधिवक्ता स्वर्गीय श्री पावनी परमेश्वर राव (पी.पी. राव) के लेखों का संकलन 'परमेश्वर टू पीपी ' पुस्तक का विमोचन करने के बाद देश में न्याय व्यवस्था की वर्तमान स्थिति के बारे में बोलते हुए उसमें सुधार की आवश्यकता पर जोर दिया। कार्यक्रम में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति रोहिंटन एफ. नरीमन, भारत के अटॉर्नी जनरल श्री के. के. वेणुगोपाल, न्यायमूर्ति ए. आर. दवे सहित कई पूर्व न्यायाधीश और श्री सलमान खुर्शीद, श्री राजीव धवन, श्रीमती महालक्ष्मी पावनी सहित कई वरिष्ठ अधिवक्ता उपस्थित थे।
श्री वेंकैया नायडू ने मुकदमों के निरंतर निपटान के लिए सर्वोच्च न्यायालय को संवैधानिक प्रभाग और अपील अदालतों में विभाजित करने संबंधी विधि आयोग की सिफारिश का समर्थन किया।
श्री नायडू ने सर्वोच्च न्यायालय के चार क्षेत्रीय पीठों को स्थापित करने की आवश्यकता को भी रेखांकित किया और कहा कि इस व्यवस्था के लिए संविधान में संशोधन करने की कोई आवश्यकता नहीं है। उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 130 का हवाला दिया जिसमें कहा गया है: "सर्वोच्च न्यायालय दिल्ली में अथवा ऐसे अन्य स्थान या स्थानों पर बैठेगा, जहां राष्ट्रपति की मंजूरी से भारत के मुख्य न्यायाधीश समय-समय पर नियुक्ति कर सकते हैं।" श्री नायडू ने कानून एवं न्याय पर संसद की स्थायी समिति की उस सिफारिश का भी जिक्र किया जिसमें परीक्षण के आधार पर सर्वोच्च न्यायालय के क्षेत्रीय पीठ स्थापित करने की बात भी कही।
न्याय देने में हो रही मौजूदा देरी से निपटने के लिए श्री नायडू ने सुझाव दिया कि न्यायपालिका द्वारा एक मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) तैयार की जा सकती है जिसके तहत मुकदमों को निपटाने के लिए उसकी प्रकृति के आधार पर स्थगन की संख्या और समय-सीमा निर्धारित की जा सकती है।
उपराष्ट्रपति ने न्यायिक प्रणाली में बड़ी संख्या में लंबित रिक्तियों को भरने के लिए सरकार को तत्परता दिखाने का आग्रह किया ताकि मुकदमों को निपटाने में देरी से बचा जा सके। उन्होंने इस संबंध में न्यायपालिका और सरकार से मिलकर काम करने का आग्रह किया।
श्री नायडू ने न्याय देने की देरी पर चिंता जताते हुए कहा, “देश में न्याय देने की गति और गुणवत्ता का आर्थिक विकास पर काफी प्रभाव पड़ता है क्योंकि यह निवेश प्रवाह को प्रभावित करता है। बेहतर होगा यदि न्यायपालिका खुद विभिन्न स्तर के न्यायाधीशों को उभरते कानूनों के विभिन्न तकनीकी एवं विशेष पहलुओं और मुद्दों एवं प्रक्रियाओं से अवगत कराने के लिए विशेष कार्यक्रमों का आयोजन करे।"
श्री नायडू ने समय पर न्याय सुनिश्चित करने के लिए कानूनी शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के अलावा सक्षम न्यायाधीशों और योग्य वकीलों को नियुक्त करने का आह्वान किया।
श्री नायडू जो राज्य सभा के पीठासीन अधिकारी भी हैं, ने दल-बदल संबंधी मामलों में तत्काल निर्णय लेने के लिए विभिन्न विधानसभाओं के पीठासीन अधिकारियों के लिए समय सीमा निर्धारित करने और खामियों को रोकने के लिए संविधान की दसवीं अनुसूची में निहित दल-बदल विरोधी कानूनों पर नए सिरे से गौर करने की आवश्यकता को रेखांकित किया। उन्होंने दल-बदल मामलों में निर्णय लेने में देरी के कई उदाहरण दिए और कहा कि उसके परिणामस्वरूप अयोग्य घोषित किए गए लोगों ने विधानसभाओं में अपना कार्यकाल पूरा कर लिया। उन्होंने छह महीने से एक साल के भीतर दल-बदल के मामलों के निपटारे के लिए विशेष न्यायिक न्यायाधिकरण स्थापित करने का भी सुझाव दिया।
उपराष्ट्रपति ने चुनावी मुकदमों और राजनेताओं के खिलाफ आपराधिक मामलों को ऊपरी अदालतों के विशेष पीठों द्वारा छह महीने के भीतर निपटाए जाने की आवश्यकता को भी रेखांकित किया।
श्री नायडू ने देश भर की विभिन्न अदालतों में 3 करोड़ से अधिक लंबित मामलों पर चिंता जताई। इनमें से कुछ मामले 50 वर्षों से लंबित हैं।
श्री नायडू ने सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व वरिष्ठ अधिवक्ता स्वर्गीय श्री पी.पी. राव को 'संयम, संतुलन और समानता' के प्रतीक के रूप में याद किया जिन्होंने अदालत में गंभीर स्थितियों में भी किसी का सहारा नहीं लिया। उन्होंने कहा कि स्वर्गीय श्री पी.पी. राव ने अपील के अधिकार पर सफलतापूर्वक दलील देते हुए 'क्यूरेटिव पेटिशन' को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसे सर्वोच्च न्यायालय के सात सदस्यीय पीठ ने पहले खारिज कर दिया था। श्री नायडू ने कहा, “स्वर्गीय श्री पी.पी. राव को उनके चालीस साल के कानूनी पेशे को निर्देशित करने वाला प्रोपराइटी का सिद्धांत और उन्होंने पुराने जमाने के जिन मूल्यों को बरकरार रखा, वे वर्तमान पीढ़ी के लिए अनुकरणीय हैं।”
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आर के मीणा/आरएनएम/एएम/एसकेसी
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