Prime Minister's Office

Excerpts of PM’s address at the valedictory function of National Law Day, 2017

Posted On: 26 NOV 2017 6:48PM by PIB Delhi

देश के मुख्य न्यायधीश जस्टिस श्री दीपक मिश्रा, मंत्रिमंडल के मेरे सहयोगी विधि और न्याय मंत्री श्री रविशंकर प्रसाद, लॉ कमीशन के चेयरमैन डॉ जस्टिस बी. एस. चौहान, नीति आयोग के वाइस चेयरमैन डॉक्टर राजीव कुमार, विधि और न्याय राज्यमंत्री श्री पी. पी. चौधरी, इस सभागार में उपस्थित अन्य महानुभाव, भाइयों और बहनों,

भारतीय लोकतंत्र में आज का दिन जितना पावन है, उतना ही महत्वपूर्ण भी। हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं की आत्मा अगर किसी को कहा जा सकता है तो वो हमारा संविधान है। इस आत्मा को, इस लिखित ग्रंथ को 68 वर्ष पहले स्वीकार किया जाना बहुत ऐतिसाहिक पल था। इस दिन एक राष्ट्र के तौर पर हमने तय किया था कि अब आगे हमारी दिशा किन निर्देशों पर होगी, किन नियमों के तहत होगी। वो नियम, वो संविधान जिसका एक-एक शब्द हमारे लिए पवित्र है, पूजनीय है।

आज का दिन देश के संविधान निर्माताओं को नमन करने का भी दिन है। स्वतंत्रता के बाद जब करोड़ों लोग नई उम्मीदों के साथ आगे बढ़ने का सपना देख रहे हों, जब विपरीत परिस्थितियों के बावजूद हौसले बुलंद हों, तो उस समय देश के सामने एक ऐसा संविधान प्रस्तुत करना, जो सभी को स्वीकार्य हो, बहुत आसान काम नहीं था। जिस देश में एक दर्जन से ज्यादा पंथ हों, सौ से ज्यादा भाषाएं हों, सत्रह सौ से ज्यादा बोलियां हों, शहर-गांव-कस्बों और जंगलों तक में लोग रहते हों, उनकी अपनी आस्थाएं हों, उन्हें एक मंच पर लाना, सबकी आस्थाओं का सम्मान करने के बाद ये ऐतिहासिक दस्तावेज तैयार करना आसान नहीं था।

इस हॉल में बैठा हर व्यक्ति इस बात का गवाह है कि समय के साथ हमारे संविधान ने हर परीक्षा को पार किया है। हमारे संविधान ने उन लोगों की हर उस आशंका को गलत साबित किया है, जो कहते थे कि समय के साथ जो चुनौतियां देश के सामने आएंगी, उनका समाधान हमारा संविधान नहीं दे पाएगा।

ऐसा कोई विषय नहीं, जिसकी व्याख्या, जिस पर दिशा-निर्देश हमें भारतीय संविधान में ना मिलते हों। संविधान की इसी शक्ति को समझते हुए संविधान सभा के अंतरिम चेयरमैन श्री सचिदानंद सिन्हा जी ने कहा था-

मानव द्वारा रचित अगर किसी रचना को अमर कहा जा सकता है तो वो भारत का संविधान है

हमारा संविधान जितना जीवंत है, उतना ही संवेदनशील भी। हमारा संविधान जितना जवाबदेह है, उतना ही सक्षम भी। खुद बाबा साहेब भीम राव अंबेडकर ने संविधान के बारे में कहा था कि – ये workable है, ये flexible है और शांति हो या युद्ध का समय, इसमें देश को एकजुट रखने की ताकत है। बाबा साहेब ने ये भी कहा था कि- संविधान के सामने रखकर अगर कुछ गलत होता भी है, तो उसमें गलती संविधान की नहीं, बल्कि संविधान का पालन करवा रही संस्था की होगी

भाइयों और बहनों, इन 68 वर्षों में संविधान ने एक अभिभावक की तरह हमें सही रास्ते पर चलना सिखाया है। एक अभिभावक की तरह हमारे संविधान ने देश को लोकतंत्र के रास्ते पर बनाए रखा है, उसे भटकने से रोका है। इसी अभिभावक के परिवार के सदस्य के तौर पर हम सभी इस सभागार में उपस्थित हैं। गवर्नमेंट, ज्यूडिशियरी, ब्यूरोक्रेसी हम सभी इस परिवार के सदस्य ही तो हैं।

 साथियों, आज संविधान दिवस हमारे लिए एक महत्वपूर्ण प्रश्न लेकर आया है। क्या एक परिवार के सदस्य के तौर पर हम उन मर्यादाओं का पालन कर रहे हैं, जिसकी उम्मीद हमारा अभिभावक, हमारा संविधान हमसे करता है? क्या एक ही परिवार के सदस्य के तौर पर हम एक दूसरे को मजबूत करने के लिए, एक दूसरे का सहयोग करने के लिए काम कर रहे हैं?

भाइयों और बहनों, ये सवाल सिर्फ ज्यूडिशयरी या सरकार में बैठे लोगों के सामने नहीं, बल्कि देश के हर उस स्तंभ, हर उस पिलर, हर उस संस्था के सामने है, जिस पर आज करोड़ों लोगों की उम्मीदें टिकी हुई हैं। इन संस्थाओं का एक एक फैसला, एक एक कदम लोगों के जीवन को प्रभावित करता है। सवाल ये है कि क्या ये संस्थाएं देश के विकास के लिए, देश की आवश्यकताओं को समझते हुए, देश के समक्ष चुनौतियों को समझते हुए, देश के लोगों की आशाओं-आकांक्षाओं को समझते हुए, एक दूसरे का सहयोग कर रही हैं? एक दूसरे को Support, एक दूसरे को strengthen कर रही हैं?

मुझे बहुत ठीक से तो याद नहीं लेकिन एक छोटी सी कहानी सुनाना चाहता हूं।

बड़ी चर्चा होती थी स्‍वर्ग और नरक में अंतर क्‍या है और कुछ जो बड़े विद्वान लोग थे उसको अपने तरीके से समझाते थे। वो कहते थे कि ऐसे जिज्ञासु जनों को एक बार कुछ लोगों ने स्‍वर्ग और नरक दिखाने का कार्यक्रम बना लिया। उन्‍हें स्‍वर्ग भी दिखाया, नरक भी दिखाया। स्‍वर्ग में भी अन्‍न के भंडार थे, सुख-वैभव था। नरक में भी अन्‍न के भंडार थे, सुख-वैभव था। स्‍वर्ग में जो लोग थे उनकी हालत बहुत खुशनुमा थी, नरक में जो लोग थे उनकी हालत बड़ी खस्‍ता थी। और वहां की स्थिति ऐसी थी कि जो लोग वहां थे, उनके हाथों में एक बड़े-बडे लम्‍बे चम्‍मच बंधे हुए थे। कंधे से लेकर हाथ तक और आगे फिर चम्‍मच होता है और इससे हाथ मोड़  नहीं सकता था। स्‍वर्ग में जो लोग थे उनके हाथ भी ऐसे बंधे हुए थे, नरक में जो थे उनके हाथ भी ऐसे बंधे हुए थे। लेकिन जो लोग नरक में थे वे ले करके ऐसे खाने की कोशिश करते थे तो उधर पीछे जा करके गिरता था और इसलिए वो भूखे मर रहे थे। सब कुछ था लेकिन बस इसी में लगे थे। और स्‍वर्ग की हालत कुछ और थी। उनको भी वैसे ही bamboo के पट्टे बंधे हुए थे, उनका भी हाथ मुड़ नहीं सकता था। लेकिन उन्‍होंने तरीका ढूंढा था, कि वो लेते थे और सामने वाले को खिलाते थे। वो लेता था इसको खिलाता था। सारे अन्‍न के भंडार भरे पड़े थे। जिन्‍होंने दूसरों को strengthen करने का रास्‍ता अपनाया था वहां स्‍वर्ग था, जिन्‍होंने अपने को strengthen बनाने की कोशिश की थी वहां नरक फैला हुआ था।

भाइयों और बहनों, 75 वर्ष पहले जब 1942 में गांधी जी ने भारत छोड़ो आंदोलन का आह्वान किया था, तो देश एक नई ऊर्जा से भर गया था। हर गांव, हर गली, हर शहर, हर कस्बे में ये ऊर्जा सही तरीके से channelise होती रही और इसी का परिणाम था हमें पाँच वर्ष बाद आजादी मिली, हम स्वतंत्र हुए।

अब आज से पाँच साल बाद हम सब स्वतंत्रता के 75 वर्ष का पर्व मनाएंगे। इन पाँच वर्षों में, हमें एकजुट होकर उस भारत का सपना पूरा करना है, जिस भारत का सपना हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने देखा था। इसके लिए संविधान से ऊर्जा लेने वाली हर संस्था को अपनी ऊर्जा channelise करनी होगी, उसे सिर्फ और सिर्फ न्यू इंडिया का सपना पूरा करने में लगाना होगा।

साथियों, ये बात आज इसलिए बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि जनभावनाओं की ऐसी प्रबलता हमारे देश में दशकों के बाद दिखाई दे रही है। भारत आज दुनिया का सबसे नौजवान देश है। इस नौजवान ऊर्जा को दिशा देने के लिए देश की हर संवैधानिक संस्था को मिलकर काम करने की आवश्यकता है।

20वीं सदी में हम एक बार ये अवसर चूक चुके हैं। अब 21वीं सदी में भारत को नई ऊँचाई पर ले जाने के लिए, न्यू इंडिया बनाने के लिए, हम सभी को संकल्प लेना होगा। संकल्प साथ मिलकर काम करने का, संकल्प एक दूसरे को मजबूत करने का।

भाइयों और बहनों, देश के समक्ष मौजूद चुनौतियों से निपटने के लिए एकजुट होने का महत्व डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने संविधान सभा की एक चर्चा के दौरान विस्तार से समझाया था। उन्होंने कहा था-

हम सभी को ये विश्वास दिलाते हैं कि देश से गरीबी मिटाने के लिएगंदगी मिटाने के लिए, भूख और बीमारी खत्म करने के लिए, भेदभाव समाप्त करने के लिए, शोषण खत्म करने के लिए, और जीने का बेहतर माहौल सुनिश्चित करने के लिए हम हमेशा प्रयासरत रहेंगे। हम एक बहुत बड़े मिशन पर निकल रहे हैं। हमें उम्मीद है कि इस प्रयास में हमें सभी लोगों का सहयोग मिलेगा, सहानुभूति मिलेगी और समाज के हर वर्ग से समर्थन प्राप्त होगा

भाइयों और बहनों, संविधान निर्माण से जुड़े महान व्यक्तियों के इसी चिंतन की वजह से हमारे संविधान को एक “Social Document” माना जाता है। ये सिर्फ कानून की एक किताब नहीं, बल्कि इसमें एक सामाजिक दर्शन भी है। 14 अगस्त 1947, यानि स्वतंत्रता से कुछ ही पल पहले कही गई राजेंद्र बाबू की ये बात आज भी उतनी ही relevent है। हम सभी का ध्येय तो आखिरकार देश के आम नागरिक के जीवन को बेहतर बनाना है, उसे गरीबी-गंदगी,भूख-बीमारी से मुक्त करना है। उसे समान अवसर देना है, उसे इंसाफ देना है, उसे उसके अधिकार देना है। ये कार्य हर संस्था में एक संतुलन बनाकर, एक संकल्प तय करके ही पूरे किए जा सकते हैं।

इसी बैठक में डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने एक और महत्वपूर्ण विचार रखा था। उन्होंने कहा था- जब तक हम ऊंचे पदों पर मौजूद भ्रष्टाचार को खत्म नहीं करेंगे, भाई-भतीजावाद को जड़ से नहीं मिटाएंगे, सत्ता के लालच, मुनाफाखोरी और कालाबाजारी को नहीं हटाएंगे तब तक हम ना तो प्रशासन में efficiency बढ़ा पाएंगे और ना ही जो चीजें जीवन से जुड़ी हैं, उन्हें आसानी से लोगों तक पहुंचा पाएंगे

साथियों, ये बातें स्वतंत्रता के कुछ पल पहले की थीं। 14 अगस्त 1947, एक जिम्मेदारी का भाव था, देश की आंतरिक कमजोरियों का ऐहसास होने के साथ ही, ये ऐहसास भी था कि उन कमजोरियों को दूर कैसे किया जाना है। दुर्भाग्य से, स्वतंत्रता के इतने वर्षों बाद भी ये आंतरिक कमजोरियां दूर नहीं हुई हैं। इसलिए कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका, तीनों ही स्तर पर इसे लेकर मंथन किए जाने की जरूरत है कि अब बदले हुए हालात में कैसे आगे बढ़ा जाए। हमें किसी को सही, किसी को गलत नहीं ठहराना है। अपनी-अपनी कमजोरियां हम जानते हैं, अपनी-अपनी शक्तियों को भी पहचानते हैं।

 भाइयों और बहनों, ये समय तो भारत के लिए Golden Period की तरह है। देश में आत्मविश्वास का ऐसा माहौल बरसों के बाद बना है। निश्चित तौर पर इसके पीछे सवा सौ करोड़ भारतीयों की इच्छाशक्ति काम कर रही है। इसी सकारात्मक माहौल को आधार बनाकर हमें न्यू इंडिया के रास्ते पर आगे बढ़ते चलना है। सामर्थ्य और संसाधन की हमारे पास कमी नहीं है। बस हमें समय का जरूर ध्यान रखना है।

हम ये मानकर चलेंगे कि हमारे पास बहुत समय है, हम ये मानकर चलेंगे कि आने वाली पीढ़ियां ही सब करेंगी, सारे रिस्क उठाएंगी, तो इतिहास हमें कभी माफ नहीं करेगा। जो करना है हमें अभी करना है, इसी दौर में करना है। हम ये सोचकर नहीं रुक सकते कि इसके परिणाम आते-आते तो हम नहीं रहेंगे।

मेरे साथियों, हम भले ना रहें लेकिन ये देश तो रहेगा। हम भले ना रहें, लेकिन जो व्यवस्था हम देश को देकर जाएं वो सुरक्षित-स्वाभिमानी और स्वावलंबी भारत की व्यवस्था होनी चाहिए। एक ऐसी व्यवस्था, जो लोगों की जिंदगी को आसान बनाने वाली हो, Ease of Living बढ़ाने वाली हो।

साथियों, मेरा हमेशा से मानना रहा है कि सरकार की भूमिका Regulator से ज्यादा Facilitator की होनी चाहिए। आज आप भी ये महसूस करते होंगे कि अब पासपोर्ट आपको कितनी जल्दी मिल जाता है। ज्यादा से ज्यादा दो दिन, नहीं तो तीन दिन। वरना यही पासपोर्ट आपको पहले एक महीने-दो महीने में मिलता था। पिछली दो-तीन बार से आपको इनकम टैक्स रीफंड के लिए भी महीनों इंतजार नहीं करना पड़ता है।

आप देख रहे होंगे कि सिस्टम में एक तेजी आ रही है, गति आ रही है। और ये गति सिर्फ आप लोग ही नहीं, देश के मध्यम वर्ग, गरीब, सभी की जिंदगी को आसान बना रही है।

अब सोचिए, ग्रुप सी और डी की नौकरी में इंटरव्यू खत्म होने से युवाओं का कितना समय बचा है, कितना पैसा बचा है। दस्तावेजों को जो पहले गजटेड ऑफीसर से अटेस्ड कराना जरूरी था, वो भी अब उन्हें नहीं कराना पड़ता। इससे भी उन्हें बेवजह इधर-उधर भागना दौड़ना नहीं पड़ता। चार लोगों को फोन नहीं करना पड़ता कि भाई, किसी गजटेड ऑफीसर को जानते हो क्या? किसी सांसद-विधायक को जानते हो क्या?

साथियों, आप जानकर हैरान रह जाएंगे कि हमारे देश में 27 हजार करोड़ रुपए ऐसे थे, जिन पर किसी का क्लेम नहीं था। ये पैसे श्रमिकों ने, कर्मचारियों ने अपने PF अकाउंट में जमा कराए थे और बाद में जगह बदलने की वजह से उन्होंने अपने पैसे क्लेम नहीं किए थे। एक बार शहर छूट गया, तो अब कौन वापस जाए, कहां भागे-दौड़ें।

ये हमारे श्रमिक और मध्यम वर्ग की बहुत बड़ी समस्या थी, जिसे इस सरकार ने Universal Account Number बनाकर हल किया। अब कर्मचारी कहीं भी नौकरी करे, उसके पास UAN नंबर होता है। UAN नंबर से वो अपने PF का पैसा कहीं से भी निकाल सकता है।

साथियों, बृहदारण्यक उपनिषद में कहा गया है-

तदेतत् – क्षत्रस्‍य क्षत्रं यद्धर्म:

तस्‍माद्धर्मात् परं नास्ति

अथो अबलीयान् बलीयांसमाशंसते धर्मेण

यथा राज्ञा एवम्  

यानि कानून सम्राटों का सम्राट है। कानून से ऊपर कुछ नहीं। कानून में ही राजा की शक्ति निहित है और कानून ही गरीबों को-कमजोरों को ताकतवर से लड़ने का हौसला देता है, उन्हें सक्षम बनाता है। इसी मंत्र पर चलते हुए हमारी सरकार ने भी नए कानून बनाकर और पुराने कानून खत्म करके Ease of Living को बढ़ाने का काम किया है।

पिछले तीन-साढ़े तीन साल में लगभग 1200 पुराने कानून खत्म किए जा चुके हैं। जैसे सरदार पटेल ने देश का एकीकरण किया था, वैसे ही देश को एकता के सूत्र में पिरोने वाला काम GST के माध्यम से हुआ है। दशकों बाद One Nation-One Tax का सपना साकार हुआ है।

इसी तरह चाहे दिव्यांगों के लिए कानून में बदलाव का फैसला हो, ST/SC कानून को और सख्त करने का फैसला हो, या फिर बिल्डरों की मनमानी रोकने के लिए RERA, ये सभी इसलिए लिए गए ताकि आम नागरिक को रोजमर्रा की जिंदगी में होने वाली दिक्कत कम हो।

 साथियों, यहां इस हॉल में मौजूद हर व्यक्ति को पता है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद कालेधन के खिलाफ जो SIT तीन साल तक टलती रही थी, उसका गठन इस सरकार ने शपथ लेने के तीन दिन के भीतर कर दिया था। ये फैसला भी जितना कालेधन और भ्रष्टाचार के खिलाफ था, उतना ही आम नागरिक से जुड़ा हुआ था। देश में होने वाला हर भ्रष्टाचार, कालेधन का हर लेन-देन कहीं ना कहीं किसी गरीब का अधिकार छीनता है, उसकी जिंदगी में परेशानी खड़ी करता है।

भाइयों और बहनों, हमने छोटे-बड़े, बहुत से फैसले लिए, लेकिन जनता की समस्याओं को समझते हुए लिए। हमारे फैसले सटीक ही नहीं बल्कि संवेदनशील भी रहे। साथियों, Ease of Living पर ध्यान देने का सीधा असर ये हुआ कि देश की Ease of Doing Business की रैकिंग में भी अभूतपूर्व सुधार हो गया है। 2014 के पहले जहां हम Ease of Doing Business की रैकिंग में 142वें नंबर पर थे, अब 100वें नंबर पर पहुंच चुके हैं।

मुझे खुशी है कि हमारे ज्यूडिशियल सिस्टम में भी इस दिशा में बहुत से कदम उठाए जा रहे हैं। मुझे बताया गया है कि इस वर्ष राष्ट्रीय स्तर पर हुई लोक अदालतों में ही 18 लाख Pre-litigation और 22 लाख Pending केसों का निपटारा किया गया है।

भाइयों और बहनों, ये आंकड़ा इस बात का भी सबूत है कि ऐसे विवाद जो आपसी बातचीत या किसी की मध्यस्तता से सुलझ सकते हैं, वो भी बड़ी संख्या में हमारी अदालतों में पहुंच रहे हैं। मुझे मालूम नहीं कि ये Cases कितने वर्षों से अटके हुए थे। लेकिन निश्चित तौर पर इन मामलों के सुलझने से हमारी अदालतों का  बोझ थोड़ा कम हुआ है। इससे लोक अदालतों के प्रति भी हमारे देश में श्रद्धा बढ़ी है। मुझे लगता है कि करोड़ों pending cases को सुलझाने में ऐसी लोक अदालतों की बहुत बड़ी भूमिका हो सकती है।

 मुझे बताया गया है अभी सितंबर में ही चीफ जस्टिस ने Pending Cases को लेकर सभी हाई कोर्ट के जजों को चिट्ठी भी लिखी है। अपीलों की सुनवाई में देरी को उन्होंने हमारी न्याय व्यवस्था और विशेषकर हमारे Criminal Justice System की कमजोरी माना है। मुझे ये सुझाव भी बहुत अच्छा लगा कि कुछ मामलों की सुनवाई के लिए शनिवार को Special Benches भी बैठ सकती है। Pending Cases को कम करने के लिए तमिलनाडु और गुजरात जैसे राज्यों में Evening Court का भी प्रयोग किया जा रहा है। इस तरह के प्रयोग बाकी राज्यों में भी किए जा सकते हैं।

साथियों, ज्यूडिशियल सिस्टम में तकनीक का बढ़ता इस्तेमाल भी लोगों की जिंदगी को आसान बनाने, Ease of Living को आसान बनाने में मददगार साबित होगा। e-Courts का जितना विस्तार होगा, National Judicial Data Grid का जितना विस्तार होगा, उतना ही लोगों को अदालतों में होने वाली परेशानी कम होगी। जब वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से देश की अदालतें जेल से जुड़ जाएगी, तो कोर्ट और जेल प्रशासन दोनों की सहूलियत बढ़ेगी।

मुझे जानकारी दी गई है कि पिछले दो वर्ष में लगभग 500 अदालतें वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए जेलों से connect की गई हैं।

मुझे Tele Law Scheme के बारे में भी बताया गया है जिसकी मदद से देश के दूर-दराज में रहने वाले लोगों को, गांव में रहने वाले गरीबों को कानूनी सलाह दी जा रही है। इस स्कीम का दायरा जितना बढ़ेगा, उतना ही लोगों को फायदा होगा।

एक और innovative idea मुझे बहुत अच्छा लगा Justice Clock का। ये Clock अभी Department of Justice में लगाई गई है और इससे Top Performing District Courts के बारे में जानकारी मिलती है। तैयारी है कि भविष्य में ऐसी Justice Clock देश भर की अदालतों में लगाई जाए। Justice Clock, एक तरह से अदालतों को रैंकिंग देने वाली बात हुई।

जैसे स्वच्छता की रैंकिंग शुरू करने के बाद शहरों में एक कंपटीशन शुरू हुआ, कॉलेजों में रैकिंग शुरू करने के बाद इस क्षेत्र में भी कंपटीशन का भाव आया, वैसे ही अगर Justice Clock का विस्तार करके, कुछ सुधार की आवश्यकता हो तो उसमें सुधार करके अदालतों में भी प्रोफेशनल कंपटीशन हो सकता है। ये मेरा अनुभव है कि कंपटीशन का भाव आते ही व्यवस्थाओं में गति आती है, कम समय में ज्यादा सुधार देखने को मिलता है। मैं कानून का जानकार नहीं हूं, लेकिन मुझे लगता है कि कोर्ट में कंपटीशन भी Ease of access to Justice और Ease of Living को बढ़ाएगा।

कल माननीय राष्ट्रपति जी ने भी इस पर चिंता व्यक्त की थी कि गरीब न्याय के लिए कोर्ट तक आने में घबराता है। साथियों, हमारे सारे प्रयासों का परिणाम ये होना चाहिए कि गरीब कोर्ट से डरे नहीं, उसे समय पर न्याय मिले और कोर्ट की प्रक्रियाओं में उसका खर्च भी कम हो।

साथियों, आज संविधान दिवस के अवसर पर मैं उन युवाओं को भी विशेष शुभकामनाएं देना चाहता हूं जिन्हें एक जनवरी, 2018 से वोट देने का अधिकार मिलने जा रहा है। ये वो युवा हैं जो 21वीं सदी में जन्में हैं और कुछ महीनों बाद चुनावों में पहली बार वोट डालेंगे। 21वीं शताब्दी को भारत की शताब्दी बनाने की जिम्मेदारी इन्हीं नौजवान युवाओं पर है। वहीं हम सभी की जिम्मेदारी इन युवाओं को ऐसी व्यवस्था देकर जाने की है, जो उन्हें और मजबूत करे, उनकी शक्ति बढ़ाए।

इसी कड़ी में एक बहुत महत्वपूर्ण विषय मैं आप सभी विद्वानों के सामने रखना चाहता हूं। ये विषय है केंद्र और राज्य में एक साथ चुनाव कराने का। बीते कुछ समय से इस पर देश में चर्चा शुरू हुई है। कुछ राजनीतिक दलों ने भी हर 4-6 महीने पर होने वाले चुनाव की वजह से देश पर जो आर्थिक बोझ पड़ता है, संसाधनों पर दबाव पड़ता है, उस पर चिंता जताई थी। अब जैसे 2009 के लोकसभा चुनाव की ही बात करें तो उस साल चुनाव कराने में लगभग 1100 करोड़ का खर्च आया था। वहीं 2014 के लोकसभा चुनाव का खर्च लगभग 4 हजार करोड़ रुपए आया था। इसके अलावा उम्मीदवारों का खर्च अलग से। एक-एक चुनाव में हजारों कर्मचारियों की तैनाती, लाखों सुरक्षाबलों का इधर से उधर होना भी व्यवस्था पर दबाव बनाता है। जब आचार संहिता लागू हो जाती है, तो सरकार उतनी आसानी से फैसले भी नहीं ले पाती।

वहीं इसके ठीक उलट दुनिया के कई देश हैं जहां पर चुनाव की तारीख Fix रहती है। लोगो को पता रहता है कि उनके देश में कब चुनाव होगा, किस महीने चुनाव होगा। इसका फायदा ये होता है कि देश हमेशा चुनाव के मोड में नहीं रहता, Policy Planning Process और उनका implimentation ज्यादा efficient रहता है और देश के संसाधनों पर अनावश्यक बोझ भी नहीं पड़ता।

एक साथ चुनाव का भारत पहले भी अनुभव कर चुका है और वो अनुभव सुखद रहा था। लेकिन हमारी ही कमियों की वजह से ये व्यवस्था भी टूट गई। मैं आज संविधान दिवस के इस शुभ अवसर पर इस चर्चा को आगे बढ़ाने का आग्रह करूंगा।

भाइयों और बहनों, जब स्वयं पर बंधन नहीं होता तो व्यक्ति हो या कोई भी सरकार या संस्था, उस पर किसी ना किसी दिन संकट आना तय होता है। हमारे यहां ये व्यवस्था की मजबूती है कि समय-समय पर हम खुद को परिष्कृत करते चलते हैं, खुद पर ही बंधन स्वीकार करते चलते हैं। विशेषकर जनप्रतिनिधियों और राजनीतिक दलों की बात करें तो उन्होंने स्वयं के लिए अनेक बंधन स्वीकारे। देश के हित में, समाज के हित में स्वीकारे।

जैसे आज बहुत से लोगों को पता ही नहीं होगा कि चुनाव के समय जो आचार संहिता लागू होती है, वो किसी कानून द्वारा नहीं लागू की जाती, बल्कि वो आचार संहिता खुद राजनीतिक दलों ने अपनी स्वेच्छा से स्वीकार की है।

इसी तरह संसद में कितने ही कानून पास करके नेताओं ने राजनीतिक व्यवस्था को दायरे में रखने के लिए कदम उठाएं हैं। राजनीति में शुचिता आए, स्वच्छता आए, इसके लिए प्रयास किए गए हैं और किए जा रहे हैं। संस्था कोई भी हो, उसमें Self Regulation, Check और Balance की व्यवस्था जितनी मजबूत होगी, उतना ही संस्था और उससे जुड़े अंग भी मजबूत होंगे।

आज जब इस अवसर पर संविधान की तीन आधारभूत इकाइयों के बीच संतुलन की चर्चा हो रही है, तो हमें ये ध्यान रखना होगा कि न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका के बीच संतुलन हमारे संविधान की BackBone रहा है। इसी संतुलन की वजह से हमारा देश इमरजेंसी के दौरान लोकतंत्र की राह से भटकाए जाने की तमाम कोशिशों को खारिज कर सका था।

साथियों, उस समय अपने ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था-

संविधान के बुनियादी स्वरूप के अंतर्गत, संवैधानिक तौर पर अलग तीनों अंग, संविधान द्वारा तय की गई सीमाओं को पार करके, एक दूसरे की सीमा में नहीं जा सकते। ये संविधान के प्रभुत्व के सिद्धांत का तार्किक और प्राकृतिक अर्थ है

संविधान की इन शक्तियों की वजह से बाबा साहेब उसे Fundamental Document मानते थे। एक ऐसा दस्तावेज जो Executive, Judiciary और Legislature की स्थिति और शक्तियों को परिभाषित करता है।

डॉक्टर अंबेडकर ने कहा था-

संविधान का मकसद सिर्फ संघ के तीन अंगों का निर्माण करना ही नहीं है बल्कि उनके अधिकार की सीमाएं भी तय करना है। ऐसा इसलिए आवश्यक है क्योंकि अगर सीमाएं नहीं तय होंगी तो संस्थाओं में निरंकुशता आ जाएगी और वो उत्पीड़न करने लगेंगी। इसलिए Legislature को कोई भी कानून बनाने की स्वतंत्रता होनी चाहिए, Executive को कोई भी फैसला लेने की स्वतंत्रता होनी चाहिए और सुप्रीम कोर्ट को कानून की व्याख्या करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए

बाबा साहेब की कही इन बातों पर चलकर ही हम आज यहां तक पहुंचे हैं और गर्व के साथ संविधान दिवस मना रहे हैं। संविधान की इस खूबी पर, संविधान के मौलिक ढांचे से जुड़ी तीन संस्थाओं के बीच संतुलन पर सुपीमकोर्ट ने भी अपने कई फैसलों में जोर दिया है। 1967 में एक फैसले के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था-

हमारे संविधान ने Legislature, Executive और Judiciary की सीमाएं बहुत बारीकी से तय की हैं। संविधान उनसे उम्मीद करता है कि वो अपनी निहित शक्तियों का बिना अपनी सीमा लांघें इस्तेमाल करें

भाइयों और बहनों, आज जब हम न्यू इंडिया के सपने को पूरा करने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं, तो संविधान की सिखाई इन बातों की प्रासंगिकता और बढ़ गई है। अपने सीमित दायरे में रहते हुए हमें जनता की आशाओं-आकांक्षाओं को पूरा करना है।

 आज पूरा विश्व भारत की ओर बहुत उम्मीदों से देख रहा है। कितनी ही चुनौतियों का हल उन देशों को भारत में ही दिख रहा है। कितने ही देश भारत के विकास में कंधे से कंधा मिलाकर चलना चाहते हैं। ऐसे में Legislature, Executive और Judiciary, सभी को संविधान द्वारा तय की मर्यादाओं को ध्यान में रखते हुए ही आगे बढ़ना होगा।

साथियों, मैं लॉ कमीशन और नीति आयोग को इस आयोजन के लिए बधाई देता हूं। संविधान की तीनों इकाइयों ने इस आयोजन में खुलकर अपनी बात रखी है। बहुत से जानकारों, विद्वानों ने अपनी राय दी है। सबकी राय का अपना-अपना महत्व है। लोकतंत्र की मजबूती के लिए इस तरह के संवाद बहुत आवश्यक हैं। ये हमारी Maturity को दिखाता है। इस कार्यक्रम से जो भी actionable points निकले हैं, उन्हें हम सभी को मिलकर आगे बढ़ाना चाहिए। संवाद की प्रक्रिया निरंतर जारी रहे, इस बारे में भी सोचा जाना चाहिए।

भाइयों और बहनों, आज समय की मांग है कि हम एक दूसरे को सशक्त करें, एक संस्था दूसरे की आवश्यकताओं को समझे, वो संस्था जिन चुनौतियों का सामना कर रही है, उन्हें समझे। जब ये तीनों संस्थाएं संविधान में लिखित अपने कर्तव्यों पर ध्यान देंगी, तभी देश के नागरिकों को भी अधिकार से कह पाएंगी कि “आप भी अपने कर्तव्यों का पालन करिए, मेरा क्या-मुझे क्या की सोच को छोड़कर समाज और देश के बारे में सोचिए”।

साथियों, अधिकार-अधिकार के संघर्ष में कर्तव्यों के पीछे छूटने का अंदेशा रहता है और अपने कर्तव्यों से पीछे हटकर देश आगे नहीं बढ़ सकता।

मैं एक बार फिर आप सभी को, देशवासियों को संविधान दिवस की बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं।

आप सभी का बहुत-बहुत धन्‍यवाद करता हूं और 2022, आजादी के 75 साल, नया उमंग, नया संकल्‍प, नए सामर्थ्‍य के साथ हम आगे बढ़ें।

बहुत-बहुत धन्‍यवाद।

जय हिंद !!!

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अतुल तिवारी/शाहबाज़ हसीबी/बाल्‍मीकि महतो/निर्मल शर्मा



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