Prime Minister's Office

Text of PM’s Inaugural Address (via Video Conference) at the National Conference of Central and State/UT Ministers and Secretaries of Tourism, Culture and Sports

Posted On: 20 JAN 2017 10:20PM by PIB Delhi

आप में से बहुत लोग होंगे जो शायद कच्‍छ की धरती पर पहली बार आए होंगे और शायद कच्‍छ भी तो आए हो लेकिन इतना दूर पाकिस्‍तान की सीमा पर रेगिस्‍तान में कौन जाएगा? लेकिन आज आपको वहां भी जाने का अवसर मिला। जो हिमालय की वादियों से आए होंगे उनके लिए रेगिस्‍तान एक अलग अनुभव होगा। नॉर्थ ईस्‍ट में हरी-भरी झाड़ियोंके बीच जिन्‍होंने जिन्‍दगी गुजारी है उनके लिए रेगिस्‍तान का अनुभव कुछ और होता है और मुझे विश्‍वास है कि इस परिसर का भी आपके इस चिंतन शिविर पर सकारात्‍मक प्रभाव पैदा होगा। 

सरकार में बहुत आवश्‍यक होता है कि हम मिल--बैठ करके अपने कार्य को समझेअपने कार्य की रचना को समझे। किस प्रकार से दुनिया बदल रही है, उस बदलती हुई दुनिया में हम लोग कहां खड़े है कहां पहुंचना चाहते हैं, कहां तक पहुंच पाते हैं। इन बातों को लगातार हमें evaluate करते रहना चाहिए। दुर्भाग्‍य से सरकारों का एक स्‍वभाव बना हुआ है और वो silo में काम करने का। कभी-कभी तो एक डिपार्टमेंट के भीतर-भीतर ही silos होते है कि एक टेबल पर क्‍या चल रहा है वो जानकारी दूसरे टेबल को न मिल जाए उसकी चिंता होती है। 

एक Department का दूसरे Department के साथ तालमेल नहीं होता है और उसके कारण एक Department एक कार्यक्रम सोचता है तो दूसरा Department बिल्‍कुल उससे उल्‍टा सोचता है। कभी-कभी तो हैरानी होती है court के अंदर सरकार के ही दो Departments आमने-सामने वकीलों को पैसे देकर के लड़ाई लड़ते हैं। अब ये जो अवस्‍था है, ये अवस्‍था कोई स्‍वस्‍थ स्‍थिति नहीं है, उसमें बदलाव आना चाहिए और बदलाव आने का तरीका है कि हम मिल बैठकर के विस्‍तार से एक broad vision के अंतर्गत हमारी क्‍या भूमिका रहेगी, हमारे विभाग की क्‍या भूमिका रहेगी, हम क्‍या परिणाम ला सकते हैं, उसको सोचे तो अच्‍छा होगा। कुछ Department होते हैं, वैसे Department अलग होने के बावजूद भी like minded होते हैा। एक-दूसरे के साथ कोई न कोई उनका तालमेल होता है। 

यहां पर मुख्‍यत: जो चार मंत्रालय के लोग इकट्ठे हुए हैं। In a way इन सबका एक दूसरे के साथ कोई न कोई संबंध आता है और इसलिए अच्‍छा होगा कि हम मिल-बैठकर के अपने अनुभवों को share करे। Expert लोग है उनको सुने। अपनी कठिनाइयों के solution के हम लोगों ने कैसे-कैसे रास्‍ते खोजे हैं, क्‍या प्रयोग किए हैं, उसको समझने की कोशिश करें। अगर ये 3 दिन के वास्‍तवे के दरमियान formal जो सत्र होंगे उसके सिवाए जितना समय आप एक-दूसरे के साथ खुलकर के बातें करते-करते, भोजन करते समय, आते-जाते और tent-life में तो शायद रहने का पहली बार कईयों को तो अवसर आया होगा। हो सकता है अभी शायद गर्मी लगती हो लेकिन शाम ढलते ही वहां ठंड ज्‍यादा हो जाती है तो वो भी.. इन कठिनाइयों के बीच भी साथ जीने का एक मजा होता है तो अधिकृत सत्रों के सिवाए अपने-अपने राज्‍यों के अनुभव शेयर करे अपने साथियों के साथ, अन्‍य राज्‍यों से पूछे। ये एक प्रकार से हमारी बहुत बड़ी अमानत होगी जिसको हम आगे चलकर के अपनी नीतियों में, अपनी विकास की यात्रा में आगे बढ़ा सकते हैं। 

कुछ काम होते है कि जिसको डिपार्टमेंट के परे, केन्‍द्र राज्‍यों से परे हमें करने होते हैं। आज जो चार विभाग के लोग वहां इकट्ठे हुए हैं उनका एक प्रकार से कार्य का nature ऐसा है कि जिस nature के तहत कश्‍मीर में बैठे हुए लोगों को जो निर्णय करना होगा या कन्‍याकुमारी में बैठे हुए लोगों को निर्णय करना होगा वो निर्णय में केन्‍द्रीय विचार एक होगा। संसाधनों के अनुसार कम अधिक मात्रा में हो, वो संभव है। अब जैसे हिन्‍दुस्‍तान की कौन सी सरकार होगी जो नहीं चाहती होगी कि हमारे युवा खेल-कूद के जगत में आगे आए। तात्‍पर्य यह हुआ कि हिन्‍दुस्‍तान के सभी राज्‍य चाहते हैं। अगर सब राज्‍य चाहते हैं तो क्‍या सब राज्‍य बैठकर के सोच सकते हैं क्‍या कि हमारे पास ये जो demographic dividend है। 

आज दुनिया के सामने हम ताकत के साथ कहते हैं कि हमारे 800 मिलियन 35 से कम आयु के युवा वर्ग है। हिन्‍दुस्‍तान जवान है। 35 साल से कम उम्र के 65 प्रतिशत लोग है। क्‍या हम सब सरकारों का, केन्‍द्र हो या राज्‍य हो, हम लोगों का दायित्‍व नहीं बनता है कि हम सोचे कि जिस देश के पास इतना युवा धन हो, वो देश और दुनिया को क्‍या दे सकते हैं। हम युवा धन की शक्‍तियों को किस प्रकार से channelize करें। हमारी सरकारें वो क्‍या नीतियां बनाएं, किस प्रकार के road map बनाए ताकि हमारी युवा शक्‍ति का सर्वाधिक उपयोग देश और दुनिया को हो सके। अगर हम अभी से, वैसे हमें पिछली शताब्‍दी में इन विषयों को गंभीरता से सेाचने की जरूरत थी। लेकिन अब भी अगर हम शुरू करेंगे तो हो सकता है कि चीजें हम बहुत ही सुखद परिणाम की ओर ले जा सकते हैं। हमारा Human resource development कैसा होगा। दुनिया के सामने हमारे youth power की पहचान क्‍या होगी। हमारे youth power को किस रूप में हम मोड़ना चाहते हैं, किस रूप में ढालना चाहते हैं, किस रूप में आगे बढ़ाना चाहते हैं। जब भी अंतर्राष्‍ट्रीय खेल-कूद की स्‍पर्धा होती है, कोई अवार्ड मिलता है तो खुशी होती है। नहीं मिलता है तो लगता है नहीं-नहीं अगली बार सोचना ही पड़ेगा। 

हम सबने विद्यार्थी काल में देखा होगा। हम लोगों का स्‍वभाव रहता है कि exam आता है तो हम सोचते हैं कि बस अगले साल तो स्‍कूल-कॉलेज खुलने से ही पढ़ाई शुरू करनी है। धीरे-धीरे करके पहला सत्र चला जाता है। vacation में फिर तय करते हैं कि नहीं इस बार तो जैसे ही vacation में स्‍कूल खुलेंगे, मैं पढ़ना ही शुरू कर दूंगा। फिर धीरे-धीरे exam आ जाते हैं तो सोचते है कि नहीं-नहीं अब तो रात को देर तक पढ़ना है। रात को नींद आती है तो सोचते है सुबह जल्‍दी उठकर के पढ़ना है। मां को भी कह देते है कि मां जरा मुझे सुबह जल्‍दी उठा देना मुझे कल पढ़ना है। हम अपने आप अपना टाइमटेबल बदलते चलते हैं और खुद को adjust करते रहते हैं। रास्‍ते खोजते रहते हैं। क्‍या ये आवश्‍यक नहीं है कि अगर खेलकूद के स्‍पर्धा के लिए हम एक ऐसा institutional arrangement करें, लगातार हमारे खिलाड़ियों को स्‍पर्धाओं में जाने का अवसर मिलता रहे। वो तहसील स्‍तर की हो, जिला स्‍तर की हो, स्‍कूल-कॉलेज के बीच की हो, जब तक निरंतर खेलकूद की स्‍पर्धाएं नहीं होती है, खिलाड़ी तैयार नहीं होते हैं। हम सिर्फ infrastructure बना दे, इतने मात्र से बहुत ही परिवार जागरूक होगा कोई एकाध खिलाड़ी होगा जो अपना एक वर्तस्‍थ जीवन जीता है और लग जाए तो आगे निकल जाता है लेकिन जब तक देश में एक माहौल नहीं बनाते तो हमें अच्‍छे लोग नहीं मिलते। क्रिकेट में ये बना हुआ है कुछ मात्रा में। हर गली-मोहल्‍ले में लोग क्रिकेट खेलते हैं छोटे-छोटे games चलते रहते हैं। उसमें से खिलाड़ी उभरकर के आते हैं और एक बहुत बड़ा mechanism खड़ा हो गया लेकिन हमारे देश के पास क्रिकेट के सिवाए भी बहुत कौशल्‍य है, सामर्थ्‍यवान लोग है और physical fitness के साथ-साथ अंतर्राष्‍ट्रीय खेल जगत में talent का भी उतना ही महत्‍व होता है। उन rules and regulation के बीच अपने आप को तैयार करना होता है। हम जितनी मात्रा में इन बातों पर सोच करके कोई निर्णय कर सकते हैं, कोई योजना बना सकते हैं, आप देखिए परिणाम मिलना शुरू होगा। 

दुनिया में स्‍पोर्ट्स सरकारी कार्यक्रम कम है। जन सामान्‍य से जुड़ा हुआ है, कॉरपोरेट हाउस उसके साथ जुड़े हुए होते हैं। एक-एक game के साथ एक-एक राज्‍य अपनी identification करके उसका फायदा उठा सकते हैं। हमने क्‍या कभी हमारे राज्‍य के अंदर कभी मैपिंग किया है कि एक-आध district होगा जो फुटबॉल में अच्‍छा खेलता होगा। एक-आध district होगा जो वॉलीबॉल में अच्‍छा करता होगा।एक-आध district होगा जो शायद तीरंदाजी में अच्‍छा करता होगा। जब तक district level की हमारी potential की मैपिंग नहीं करते, हमारे पास कहां किस प्रकार का infrastructure है किस खेलकूद के अंदर अच्‍छे हमारे पास coaches है और उस क्षेत्र में कैसे-कैसे हमारे नौजवान तैयार होते है, उस पर अगर बल नहीं देते है तो हम हिन्‍दुस्‍तान के हर कोने के लोगों को हर प्रकार के खेल खेलते रहेंगे तो हो सकता है कि हम कहीं पर भी कुछ भी नहीं निकाल पाएंगे तो आवश्‍यकता है कि हम बदलाव करें। 

हमारी युवा शक्‍ति राष्‍ट्र निर्माण के कार्य में कैसे उपयोगी होगी। क्‍या उस दिशा में कभी हमने सोचा है। अच्‍छी debate,अच्‍छी leadership quality, गांव की समस्‍याओं को समझने का उनका प्रयास हमारी युवा शक्‍ति का उपयोग कैसे हो सकता है। आज देश में digital movement चल रहा है। युवा समाज बहुत तेजी से इन चीजों को capture करने का स्‍वभाव रखता है। हमारे जितने युवकों से जुड़े हुए जितनी व्‍यवस्‍थाएं हैं, संगठन है, सरकारी mechanism है, क्‍या हम ऐसे काम में उनको लगा सकते हैं क्‍या। आपने देखा होगा स्‍वच्‍छ भारत अभियान। कई राज्‍यों के कई शहरों के युवा संगठनों ने अपने initiative से स्‍वच्‍छ भारत अभियान को इतनी ताकत दी है, इतनी प्रतिष्‍ठा दी है तो उनकी एक creativity को channelize करने का mobilize करने का एक बहुत अवसर मिलता है। 

आपने देखा होगा पिछले दिनों कई रेलवे स्‍टेशन को लोगों ने local कलाकार युवकों ने मिलकर के सुशोभित किया। अब पहले के जमाने के रेलवे स्‍टेशन और आज जहां लोग जुड़ गए। रेलवे ने कुछ खर्चा नहीं किया। वे लोग आए अपना कलर-वलर लेकर के उनके पास talent थी उन्होंने अपने रेलवे स्टेशन को अपनेगांव की पहचान दे दी तो पैसेंजर आते हैं तो रेलवे स्‍टेशन पूरा देखकर जाते हैं। हम हमारी युवा शक्‍ति को creative कामों में कैसे लगाए। उनके सामर्थ्‍य का उपयोग कैसे करे।उस दिशा में हम लोगों को निरंतर सोचना चाहिए, उसके लिए नई-नई योजनाओं की रचना करनी चाहिए। 

हमारे पास NSS, NCC ये सारी रचनाएं हैं। उसके बाद भी साहसिक कामों में हमारे देश का युवा पीछे क्‍यों रहे। साहसपूर्ण जीवन की उसके मन में इच्‍छा क्‍यों न जगे। वो अपना कुछ समय, vacation का समय वहां क्‍यों न बिताएं। कभी-कभार देखते है कि हमारे देश में श्रम के प्रति एक ऐसी सोच बने कि White color job ही अच्‍छी चीज है बाकिसब बेकार है। दुनिया में जब हमारे बालक जाते है तो Saturday Sunday को होटल में काम करने को उनको संकोच नहीं होता है क्‍योंकि वहां का कल्‍चर देखते हैं। भारत के युवा के मन में भी श्रम के प्रति प्रतिष्‍ठा, हाथ से करने वाला काम बुरा नहीं होता है। खुद का पानी खुद हाथ में लेकर के पीना बुरा नहीं होता है। ये संस्‍कार, परंपरा हम कैसे विकसित करें। हमारे ये जो छोटे-मोटे संगठन काम कर रहे हैं वे ये बदलाव ला सकते हैं क्‍या, उस दिशा में प्रयास करने की आवश्‍यकता है। हमारी सांस्‍कृतिक विरासत अनमोल है। हम दुनिया पर प्रभाव पैदा कर सके, इतनी सांस्‍कृतिक विरासत है हमारे पास। लेकिन हम जिस तरीके से विश्‍व के सामने उसको ले जाना चाहिए वो ले नहीं पाए है क्‍योंकि हमने हमारे भीतर एक विश्‍वास खो दिया है। ऐसा कैसा देश हो सकता है कि जिसे अपने पूर्वजों पर, अपनी पुरानी परंपराओं पर, अपनी संस्‍कृति पर, विरासत पर गर्व न हो। अगर हमें ही गर्व नहीं होगा तो हम दुनिया को क्‍या दिखाएंगे। हमारे पास जो है, उसके प्रति गर्व का भाव, ये हमारी शिक्षा का हिस्‍सा हो, हमारी युवा प्रवृत्‍ति का हिस्‍सा हो और हमारी सांस्‍कृतिक विरासत को विश्‍व के सामने एक अनोखी विरासत के रूप में रखने का हमारा निरंतर प्रयास होना चाहिए। सिर्फ कुछ कला मंडलियां,ये उनका काम है, ऐसा मानकर के हम चलेंगे तो नहीं चलेगा। ये समाज का हिस्‍सा होना चाहिए। अगर ये समाज का हिस्‍सा बनाकर के हम चलते हैं तो अवश्‍य उसका एक अलग परिणाम मिलता है और उस दिशा में हमें प्रयास करना चाहिए। 

दुनिया के देशों के पास, अगर उन्‍होंने टूरिज्‍म भी डेवलप किया है तो artificial recreation के लिए उनको व्‍यवस्‍थाएं विकसित करनी पड़ी जहां एंटरटेनमेंट की सुविधा हो, लोग बाहर से आए, रहे, टैक्‍नोलॉजी का उपयोग हो। हम वो लोग है जिनके पास हजारों वर्ष पुरानी चीजें उपलब्‍ध है और दुनिया का एक बहुत बड़ा वर्ग है कि जिसको इसके अंदर रुचि होती है। लेकिन ये तब संभव होता है जब हम हमारी सांस्‍कृतिक विरासत के प्रति बड़े गौरव के साथ दुनिया को हम कहे। जितने गौरव से हम ताजमहल की चर्चा करते है, उतने ही गौरव से हमारे अनेक प्रकार के, even हमारा संगीत ले लें, हमारे वाद्य ले लें, हमारे वाद्य की परंपरा ले लें, हमारे संगीत के राग-रागिणी ले लें, दुनिया के लिए अजूबा है। यानी हम किस प्रकार से हमारी विरासतों को, खान-पान, कोई कल्‍पना कर सकता है कि भारत में कितने प्रकार का खान-पान है। हम लोग, हम हिन्‍दुस्‍तान में पैदा हुए है, अगर हम हर दिन एक नए राज्‍य के नए खाने के तरीके को खाना शुरू करे तो शायद हमारा भी एक जीवन कम पड़ जाएगा। इतनी विविधताएं हैं। इन विविधताओं से दुनिया को हमने परिचित करवाया है। हमारा देश ऐसा नहीं है कि भई एक कोने में पिज्‍ज़ा हट है तो 2000 किमी. दूर दूसरे कोने में भी वैसा ही पिज्‍ज़ा हट होगा। एक कोने में जिस प्रोसेस से पिज्‍ज़ा बनता है, उसी processसे यहां भी बनता होगा। जो ingredient वहां होंगे, वहीं ingredient यहां होंगे। यहां तो दक्षिण में शुरू कर दिया तो चावल से शुरू करते ऊपर जाते-जाते चावल खत्‍म हो जाता है और गेहूं पर चले जाते हैं। ये विविधताएं हैं जो दुनिया के सामने रखने की ताकत रखते हैं। लेकिन हमने इन चीजों पर ध्‍यान नहीं दिया कि हमारे पास क्‍या है। हर राज्‍य की एक पहचान क्‍यों न हो। 

जब तक हम एक राज्‍य की अपनी एक पहचान नहीं बनाते है शायद राज्‍य में भी कुछ इलाके होते हैं जिसकी पहचान खड़ी की जा सकती है। अब आप लोग हिमाचल जाएंगे तो सोलन की तरफ जाएंगे तो वहां पर बोर्ड लगे रहते हैं - सोलन की ओर, ये Mushroom City है। मै जब हिमाचल में काम करता था तब का मेरा अनुभव है तो उन्‍होंने उसको एक Mushroom City के रूप में popular कर दिया। अगर आप सूरत जाएंगे तो सूरत के लोगों ने उसको Silk City के रूप में popular कर दिया। हमने अपनी ऐसी जो-जो विरासतें हैं उसका एक special branding बड़ा carefully अपने इलाकों का, अपने शहरों का, हम उस दिशा में conscious प्रयास नहीं करते। आप लोग बैठे हैं चर्चा करेंगे, हो सकता है इसमें से कई मुद्दे आपको निकलकर के आएंगे। 

आज विश्‍व में टूरिज्‍म बहुत तेज गति से आगे बढ़ने वाला व्‍यवसायिक क्षेत्र है। सबसे तेज गति से उसका growth हो रहा है। दुनिया का middle class, upper middle class का bulk बढ़ता चला जा रहा है। upper middle class, middle class के लोग अपना धन बाहर जा करके खर्च करने के लिए तैयार भी होते हैं। भारत जैसा देश विश्‍व के टूरिज्‍म को हम हमारा target group के रूप में सोच सकते हैं क्‍या? दुनिया को क्‍या चाहिए, हमारे देश में किस इलाके में क्‍या है, क्‍या हमने कभी विश्‍व के 50 देश वहां के Tourist की Psychology को Analyzes किया है क्‍या? उसमें यूरोप का Tourist टूरिस्‍ट होगा तो उसको ये ये चीजें देखने का शौक है ये-ये पसंद है। हिन्‍दुस्‍तान के इस कोने में वो चीजें हैं जो यूरोप के Tourist को हमने आकर्षित करना चाहिए, इन दोनों को जोड़ना चाहिए। न हमने हिन्‍दुस्‍तान में हमारा Potential कहां है उसको Mapping किया है, न हमने दुनिया के टूरिस्‍टों को क्‍या पसंद है; हमने देखा है। हर दुनिया के हर वर्ग का अपना एक Choice होता है, जब तक वो उस प्रकार की चीजें नहीं देखता है। Bird-Watchers, शायद दुनिया में सबसे ज्‍यादा खर्च वो करने वाले लोग कोई हो तो Bird-Watchers होते हैं। वो जहां जाएंगे महीने भर अपना कैमरा ले करके पड़े रहते हैं और एक-एक पंखी के पीछे लगे रहते हैं, एक-एक चिडि़या के पीछे लगे रहते हैं। अब वो बहुत पैसे खर्च करने वाले लोग होते हैं। हमारे पास Mapping है क्‍या कहीं? 

इस प्रकार के Birds देखने हैं तो इस राज्‍य में जाइए, तो इस इलाके में जाइए, इस मौसम में जाइए। दुनिया में Bird-Watchers के जो क्‍लबें हैं उनको पता है क्‍या कि हिन्‍दुस्‍तान के इस कोने में से Bird-Watchers के लिए जगह है। क्‍या हमने उनको दोनों को Link किया है क्‍या? और अगर एक बार पता चल जाए भई भारत के अंदर ये चार सौ स्‍थान ऐसे हैं कि जहां पर Bird-Watchers कि लिए एक अच्‍छा Destination बन सकता है तो Bird-Watchers को क्‍या क्‍या Infrastructure चाहिए? किस प्रकार की सुवधिाएं चाहिए? हम ऐसे Targeted Development की दिशा में प्रयास करते हैं क्‍या? अगर हम Targeted Development की दिशा में प्रयास करेंगे तो हम बहुत कम खर्च से ज्‍यादा Outcome निकाल सकें, ऐसी व्‍यवस्‍था विकसित कर सकते हैं। 

आपने देखा होगा, जो लोग अभी-अभी पहुंचे होंगे शायद वो देख नहीं पाए होंगे; लेकिन जो कल आए होंगे या सुबह पहुंचे होंगे उन्‍होंने देखा होगा, ये रेगिस्‍तान के अंदर कि कितना बड़ा Tourist Destination खड़ा किया जा सकता है। ये एक कार्यशाला ये Workshop कच्‍छ के रेगिस्‍तान में रखने के पीछे का कारण ये भी है कि हम देखें के एक बार अगर हम प्रयास करें तो हम किस प्रकार से हमारी चीजों को लोगों के पास ले जा सकते हैं। कच्‍छ में रहने वाले लोगो हों वे भी, पता नहीं था उनके पास इतना बड़ा White रेगिस्‍तान है। जब ये कच्‍छ रणोत्‍सव शुरू हुआ तो वो अपने-आप में एक बहुत बड़ा हाल 50 सौ करोड़ रुपये के करीब-करीब इसका कारोबार एक जिले में हो जाता है। Handicraft बिक जाता है। आप देखिए एक व्‍यवस्‍था खड़ी करने से दुनिया के टूरिस्‍टों को किस प्रकार से आकर्षित किया जा सकता है। आज स्‍वयं आज वहां देख रहे हैं। 

हमने देखा है कि हमारे Tourist Destination हों, लेकिन Signages उस पर किस language में बोर्ड होंगे, हमारे कोई व्‍यवस्‍था नहीं है। अगर गोवा के अंदर Russian Tourist ज्‍यादा आते हैं तो गोवा के व्‍यापारियों को Russian भाषा सीखने की इच्‍छा होती है और आपने देखा होगा कि गोवा के जो छोटे-छोटे व्‍यापारी होते हैं वो रूसी Language टूटी-फूटी बोलना सीख लेते हैं। क्‍यों? क्‍योंकि Maximum रूसी Tourist आने शुरू हो गए तो उनको लगने लगा कि भई हमारे लिए आवश्‍यक है, लेकिन हम कोशिश करते हैं क्‍या? अगर कुल्‍लू-मनाली के अंदर यूरोपियन Tourist ज्‍यादा आते हैं तो यूरोप की जो Languages हैं, उसके कोई Signages वहां हैं क्‍या? ये हमने Carefully किया नहीं है। और उसका परिणाम ये होता है कि Tourists Friendly हम Environment create नहीं कर पाते हैं। और उसके कारण हमें जो लाभ मिलना चाहिए वो लाभ नहीं होता। 

आप लोग कच्‍छ में बैठे हैं, आप कच्‍छ में एक दो सौ, ढाई सौ किलोमीटर आप जहां हैं वहां से दूर धौलाविरा है, ये पांच हजार साल पुरानी नगर रचना है धौल विरा, मोहनजोदड़ो कालखंड का है। अगर वहां आपको जाने का अगर आप लोगों का कार्यक्रम बनाया होगा तो वहां देखोगे पांच हजार साल पहले भी उस शहर के अंदर Signages थे, कि इस तरफ जाने की जगहें ये हैं, 500 मीटर के बाद वो जगह है, बाईं ओर जाआगे तो ये, ये सब वहां पर Signages हैं। इसका मतलब हुआ कि उस जमाने में पांच हजार साल पहले उस धौलाविरा में बाहर से लोगों का आना-जाना बहुत होता रहता होगा, तब जा करके Signages की जरूरत पड़ी होगी। और वो दुनिया में सबसे पहली Signages वाली व्‍यवस्‍था के रूप में ये धौलाविरा को माना जाता है। क्‍या हम लोगों ने कभी ये सोचा है कि हमारे Tourist Destination की Signages की Common कुछ चीजें हो सकती हैं क्‍या? जिसके कारण बाहर से जो आएगा उसको लगे हां भई ये लिखा है मतलब ये होगा। यहां मुझे ये उपलब्‍ध होगा। 

हम scientific तरीके से हमारे Tourism को develop करने के लिए, मैंने छोटा उदाहरण इसलिए दिया कि हमें ध्‍यान में आएगा कि हमने Tourism को विकसित करने के लिए even हमारा Literature किस Language में है, अगर मेरे उस Tourist destination पर अंग्रेजी Speaking लोग ज्‍यादा आते हैं, लेकिन अगर मेरा वहां का सारा Literature हिन्‍दी में है या मेरी वहां की Local language में है तो मैं खर्च करने के बाद भी मैं उसका Marketing नहीं कर पा रहा हूं। हमारी Websites, Tourist destination के लिए Website हम Develop करना चाहते हैं, लेकिन ज्‍यादातर हमारी Website हमारी अपनी भाषा में है जबकि हमें एक Global Market को अगर पकड़ना है तो हमने उसकी भाषा में हमारी Website बनाते हैं क्‍या? और मैं नहीं मानता हूं कि कोई ज्‍यादा खर्च कर का काम है। 

ये हम लोग तय करें कि भई हां हमें Tourism को बढ़ावा देना है तो आप देखिए हो जाएगा। कभी-कभार एक बड़ी चिंता का विषय रहता है Tourism में कि भई लोग क्‍यों नहीं आते? बोले Infrastructure नहीं है। Infrastructure क्‍यों नहीं है तो लोग नहीं आते हैं। ये ऐसा द्वंद्व है कि जिस द्वंद्व में आपको खुद को हिम्‍मत करके निकलना पड़ता है। 

वहां पर HRD Ministry के लोग भी बैठे हैं। राज्‍य की सरकारें ये तय कर सकती हैं क्‍या? मान लीजिए अपने राज्‍य में तय करें कि भई इस कक्षा के जो Student होंगे वे साल में एक बार उनको पर्यटन के लिए जाना है तो अपने गांव के ही अलग-अलग जगह पर जाएंगे। इस उम्र के पहुंचें तो फिर तहसील में, इस Standard में आए तो जिले में जाएंगे। उस Standard में गए तो राज्‍य में जाएंगे। हम इस प्रकार का उनके लिए काम तय करते हैं तो वो धीरे-धीरे, धीरे-धीरे उनको पता चलेगा उनके गांव में क्‍या है, तहसील में क्‍या है, जिले में क्‍या है? वो Tenth में पहुंचेगा तब तक उसको सारा पता चल जाएगा। हम ऐसा नहीं करते, हमारे यहां तो पांचवी कक्षा का Student होगा, लेकिन टीचर ने अगर उदयपुर नहीं देखा है, तो टीचर उसको उदयपुर ले जाएगा। गांव में क्‍या उसने देखा नहीं होगा। 

हमने HRD Ministry ने और हमारी Tourism Ministry के बीच ये तालमेल हो। मान लीजिए हम तय करें कि हमारे राज्‍य में 10 जगहें ऐसी हैं जो Tourist destination के लिए Develop करनी हैं। स‍ब मिल करके तय करें। आपको पता है कि उन दस जगहे पर आज न Hotel हैं न restaurants हैं, न खानपान की व्‍यवस्‍था है, लेकिन destination अच्‍छा है। क्‍या आपने कभी ये सोचा है कि आप पहले अपने राज्‍य के जो resources हैं, उनको Mobilize करेंगे। तय करें कि भई हमारी सभी Universities पांच साल तक Tourist के नाते कहीं जाना है तो पहले ये दस Destination जो राज्‍य ने तय किए हैं वहां तो जाना ही पड़ेगा, दो रात रुकना ही पड़ेगा। वो खर्चा होगा Tourist के नाते, लेकिन इन प्रकार के Investment होगा। 

मान लीजिए हर दिन एक दस Buses आती हैं Collage Students की, उस गांव के लोग तय कर लें कि भईया लोग आने लगे हैं; चलो, चने मुरमुरे बेचने की दुकान कर लो, चलो पकौड़े बनाने की दुकान कर लो, चलो पानी लोगों को चाहिए तो पानी लाने का काम। धीरे-धीरे, धीरे-धीरे Develop हो जाएगा। लेकिन हम कभी हमारे अपने Destination को Develop करने के लिए पहले हमारे टूरिस्‍टों को भेजना चाहिए। ये हम प्राय:, अगर हिन्‍दुस्‍तान के हर राज्‍य पांच Destination तय करे जहां, ज्‍यादा मैं नहीं कर रहा हूं; पांच Destination, और International Level का Destination बनाने के इरादे से करें और शुरू के दो-तीन साल और कोई आए या ना आए, अपने राज्‍य के student जाना शुरू कर दे। वहां अपने-आप में एक प्रकार का बदलाव आना शुरू हो जायेगा, tourist आना शुरू होंगे। 

ये जिस कच्‍छ के रेगिस्‍तान में बैठे हैं, शुरू में गुजरात के ही लोग आए थे; ज्‍यादा से ज्‍यादा मुम्‍बई के लोग आना शुरू हुआ, लेकिन आज Online booking एक-एक साल पहले होने लग गया। हमने पहले इस प्रकार का प्रयास करना पड़ता है तब जा करके Tourist destination के लिए जो आवश्‍यक Infrastructure होता है वो तय होता है फिर वहां Human resource के लिए चिन्‍ता करनी चाहिए। हमारा दुर्भाग्‍य है कि जो हमारे Tourist destination हैं, या religious places हैं जहां पर Tourist जाते हैं, लेकिन वहां पर गाईड के लिए skill development, Human resource development का कोई courses नहीं होते। उस नगर में गाईड के नाते काम करने वाले Youth क्‍यों न तैयार हो, उनकी special training क्‍यों न हो? उनकी competition क्‍यों न हो? उनके, उनके costume क्‍यों न तैयार हों। उसी यूनिफॉर्म में गाईड होना चाहिए, गाईड के पास Identity Card क्‍यों नहीं होना चाहिए, हम जब तक ये Professionalism नहीं लाएंगे हम Tourism क्षेत्र को develop नहीं कर सकते हैं। 

भारत ने दो प्रकार के Tourism develop को Focus करना होगा; एक परंपरागत यात्री; हर बेटे को रहता है कि मेरे मां-बाप को कभी न कभी तो गंगा स्‍नान कराऊं; हर बेटे को रहता है कि मेरे मां-बाप को कभी न कभी तो चार धाम यात्रा कराऊं; हर बेटे को रहता है कि मेरे मां बाप को कभी शिवजी के स्‍थान पर ले जाऊं, गणेश जी के स्‍थान पर ले जाऊं, ये स्‍वाभाविक रहता है। ये जो परंपरागत है वो जाने ही वाले हैं, व्‍यवस्‍था होगी तो भी जाएंगे, कठिनाई होगी तो भी जाएंगे। 

ये सवा सौ करोड़ देशवासियों का ये भी अपना एक बहुत बड़ा मार्केट है। क्‍या कभी हमने उनको Address किया है? और हमारे सवा सौ करोड़ देशवासी जो सहज रूप से यात्रा के स्‍थान पर जाना चाहते हैं, वहां अगर वैज्ञानिक तरीके से सोच करके हम Infrastructure तैयार करते हैं, तो वो ही Global Tourist के लिए भी एक आकर्षण का कारण बन सकता है। 

दूसरे Tourist वो हैं जो विदेशों से भी आएंगे, जो हमारी और चीजें देखना चाहते हैं। उनको Beach Tourism में interest होगा, उनको Adventure Tourism में interest होगा, उनको Sports Tourism में होगा, उनको हिमालय की बर्फीली जगह पर जाने की इच्‍छा होगी, उनको हो सकता है ताजमहल या कुतुबमीनार देखने होंगे, तो ये एक अलग category के हैं। हम जब तक हमारे Tourist के लिए क्‍या-क्‍या व्‍यवस्‍थाएं कर सकते हैं, उस दिशा में अगर हम नहीं सोचते हैं, हम Tourism को बल नहीं दे सकते हैं। 

आप सब लोग वहां बैठे हैं। एक कार्यक्रम की चर्चा शायद वहां होने वाली है, ''एक भारत, श्रेष्‍ठ भारत''। HRD Ministry के भी अफसर वहां बैठे हुए हैं। एक भारत, श्रेष्‍ठ भारत, भारत जैसे देश को हमने आगे बढ़ाने के लिए हमने बहुत बल देने की आवश्‍यकता है। हुआ क्‍या, हमने लोगों से यही कहा कि भई या तो ये या तो वो। इतने बड़े देश में या तो ये या तो वो नहीं चलता। हमारे देश में कोई लड़का French Language जानता है, तो हम सीना तानकर देखो ये हमारा पड़ोसी हैं, उनका बेटा French Language भी जानता है; हमारा कोई बच्‍चा Spanish जानता है तो हम कहते हैं देखिए हमारा बच्‍चा वहां Spanish जानता है, लेकिन हम देश के अंदर ये माहौल नहीं बनाते हैं कि हरियाणा का बच्‍चा, वो भी तो तेलुगु भाषा बोलना सीखना चाहिए; गुजरात का बच्‍चा, उसको भी तो कभी मलयालम सीखने का मन करना चाहिए, और उसको मलयालम आता है तो उसका उसको proud feel होना चाहिए। 

हम देश के अंदर अपनी जो विरासत है इसके प्रति गौरव नहीं कर रहे। जिस देश के पास 100 से ज्‍यादा भाषाएं हों, 1700 से ज्‍यादा Dialects हो, वो देश कितना अमीर है! क्‍या कभी हमने इस विरासत के प्रति हमारी युवा पीढ़ी को जोड़ने के लिए सोचा है? हम कभी-कभी दुनिया के फलाने देश में क्‍या है उसका तो ज्ञान रखते हैं, लेकिन मेरे ही देश में या मेरे ही राज्‍य में किस कोने में क्‍या है; उसका अज्ञान है। भारत इतना विशाल देश है, हम हमारी आने वाली पीढ़ी को भारत से भली-भांति परिचित करवाएं, भली-भांति जोडें और उसी के लिए सरदार पटेल जयंती के दिन ''एक भारत श्रेष्‍ठ भारत'' इस कार्यक्रम का आरंभ किया है। प्रारंभ में दो राज्‍य एक-दूसरे के साथ MoU करते हैं, और कोशिश ये है कि दो राज्‍य एक-दूसरे के साथ अपने संबंधों को कैसे विकसित करें? हम विश्‍व के तो कई राज्‍यों के साथ कर लेते हैं, विश्‍व के शहरों के साथ भी करते हैं, लेकिन अपने ही देश में नहीं करते। अब जैसे हरियाणा ने तेलंगना के साथ किया है। हरियाणा के नौजवान Tourist के नाते ये साल भर तेलंगना क्‍यों न जाएं? तेलंगना के नौजवान इस साल भर Tourist के नाते हरियाणा क्‍यों न जाएं? हरियाणा की Traditional खेलकूद, तेलंगना Traditional खेलकूद; इन दोनों की खेलकूद के कार्यक्रम हरियाणा और तेलंगना में एक-दूसरे के क्‍यों न हों? हरियाणा में तेलुगु फिल्‍म का Film Festival क्‍यों न हो? तेलुगु में हरियाणा का Film Festival क्‍यों न हो? हरियाणा में तेलुगु भाषा का नाट्य महोत्‍सव क्‍यों न हो? तेलंगना में हरियाणा का नाट्य महोत्‍सव क्‍यों न हो? सहज रूप से हरियाणा के बच्‍चों को एक साल में 100 तेलुगु वाक्‍य सिखा सकते हैं, बोलचाल के 100 वाक्‍य। तेलंगना के बच्‍चों को 100 हरियाणवी भाषा के, हिंदी भाषा के वाक्‍य सिखा सकते हैं। 

आप देखिए, देख में बिना कोशिश किए हर राज्‍य में हर दसवें-आठवें पद में आदमी कोई न कोई राज्‍य की भाषा बोल लेता होगा। कोई आएगा तो उसको लगेगा, अच्‍छा भई तमिलनाडु का आया आओ, आओ वाणकम्‍म कहके शुरू करेंगे। तुरंत शुरू हो जाता है। इसलिए मेरा आग्रह है कि ''एक भारत श्रेष्‍ठ भारत'' इस कार्यक्रम के लिए राज्‍य आगे आएं। HRD Ministry हो, युवक सेवा एंड सांस्‍कृतिक बृहुति हो, Culture Department और Tourism Department हों, ये Department हैं जो Catalytic Agent के रूप में बहुत बड़ा काम कर सकते हैं। 

आप, आप मान लीजिए Quiz Competition, इन दिनों हमारे विदेश विभाग ने विश्‍वभर में फैले हुए भारतीय समुदाय के लिए एक Quiz Competition शुरू किया है। जो दूसरी-तीसरी पीढ़ी से लोग विदेश में हैं उनके बच्‍चों को इतना तो मालूम है कि उनके पूर्वज भारत के हैं, लेकिन उनको मालूम नहीं भारत क्‍या है। तो उन्‍होंने एक Online Quiz Competition शुरू किया। पिछले वर्ष पांच हजार (5000) दुनिया के अलग-अलग देशों के बच्‍चे जो मूल भारतीय परिवार के हैं, लेकिन वो पैदा यहां नहीं हुए; न कभी हिन्‍दुस्‍तान देखा है, इस Competition में भाग लिया, हिन्‍दुस्‍तान की जानकारियां पाने का प्रयास किया, और उनका एक ईनाम देने का कार्यक्रम भी बहुत अच्‍छा हो गया, पिछले 2 अक्‍तूबर को। 

हमारे देश के अलग-अलग राज्‍यों का Online Quiz Competition हो सकता है क्‍या? अगर गुजरात ने छत्‍तीसगढ़ के साथ MOU किया है एक भारत श्रेष्‍ठ भारत का, तो छत्‍तीसगढ़ के बच्‍चे Quiz Competition में गुजरात के पांच हजार सवालों का जवाब दें, गुजरात के बच्‍चे छत्‍तीसगढ़ के पांच हजार सवालों का जवाब दें, कितने District हैं, कितनी जातियां हैं, कैसी बोलियां हैं, कैसा खानपान है, कैसा पहनावा है, कौन सी वस्‍तु कहां पर है। आप देखिए कितना बड़ा Integration सहज रूप से होगा। और अगर वो बच्‍चा ऐसे दस राज्‍यों के Quiz Competition में धीरे धीरे करके भाग लेता है तो भारत के विषय में कितनी जानकारियां उसको होंगी। 

मैं चाहता हूं कि सभी राज्‍य अपने एक Quiz Bank बनाएं; दो हजार, पांच हजार, सात हजार Questions और Answers, हो सके तो जो संबंध हो उसका फोटोग्राफ; Online एक Platform तैयार करें और राज्‍य के साथ MOU हो, उस राज्‍य के बच्‍चों के बीच Speech Competition हो। 

इन दिनों हमने 15 अगस्‍त और 26 जनवरी को पुलिस बेड़े के लोगों को कहा है कि 26 जनवरी की परेड में एक राज्‍य के पुलिस बेड़े के लोग दूसरे राज्‍य में जाएं। उस राज्‍य के लोग परेड करते होंगे उसमें एक और राज्‍य का दस्‍ता भी होगा। ये चीजें हैं जो हमें एक-दूसरे को निकट लाती हैं। ये सहज करने वाले काम हैं और उस पर हम बल दे रहे हैं। एक भारत श्रेष्‍ठ भारत कार्यक्रम को भी सफल करने की दिशा में हम लोगों ने प्रयास करना चाहिए, और भारत इतनी विविधताओं से भरा हुआ है; हम अपने ही देश को अपने में समाहित करने के लिए एक बीड़ा उठा लें तो भी एक जिंदगी कम पड़ जाए इतना बड़ा विशाल देश है; इतनी विविधताओं से भरा हुआ देश है; और हर नई चीज जानेंगे तो खुशी होगी। 

जैसे मैंने एक काम कहा है एक भारत श्रेष्‍ठ भारत में, जैसे मान लीजिए है हरियाणा है तेलंगना के साथ होगा। क्‍या हरियाणा के हर स्‍कूल में तेलुगु भाषा के पांच गीत कंठस्‍थ हो सकते हैं? पांच गीत गाना आ सकता है? तेलंगना के लोगों को हरियाणा के पांच गीत आते हैं क्‍या? और ये मजा आएगा, उनको आनंद आएगा, ये कोई Extra मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। सहज रूप से हम देश की विविधताओ को जानें-पहचानें और ये Tourism को भी बहुत बल देने वाला है। 

हमारी युवा शक्ति में एक चैतन्‍य भरने वाला काम है। भारत को जोड़ करके भारत को एक नई ऊंचाईयों पर ले जाने का अवसर है। एक चीज छोटी-सी क्‍यों न हो, लेकिन कितना बड़ा बदलाव ला सकती है ये इसमें हम देख सकते हैं। तो आप यहां तीन दिन चिंतन-मनन करने वाले हैं, इतनी दूर से आप आए हैं, मैं आशा करता हूं कि आप खास करके जो मंत्रिपरिषद के लोग आए हैं; वे जरूर बैठेंगे, अपने अनुभव का लाभ सब राज्‍यों को देंगे, अपने Vision का लाभ देंगे, और शाम को रेगिस्‍तान में जब जाएं; मेरा इस भूमि से बड़ा लगाव रहा है। मैं आपसे एक सलाह देना चाहता हूं, आज शाम को जब रेगिस्‍तान में आप जाएं जितना अंदर तक जा सकते हैं allow करें Security Forces तब वहां तक जाइए, लेकिन हो सके तो अपने साथियों को छोड़ करके 25, 50 कदम दूर कहीं, जा‍ करके दस मिनट खड़े रहिए, अकेले। उस विराट रूप को देखिए, उस नीले आसमान को देखिए, उस सफेद चद्दर को देखिए; शायद जीवन में ऐसा अनुभव बहुत Rare और हां दोस्‍तों में ही गप्‍पें मारते रहोगे तो फिर वो अनुभूति नहीं होगी। 15, 20 मिनट के लिए स्‍वत: सब लोग 20, 25 कदम दूर अकेले जा करके खड़े हो जाइए, आप जरूर एक नया अनुभव करेंगे, और उस अनुभव को सबके सामने जरूर बताएंगे। ये जगह ऐसी है कि जहां आज से दस साल पहले अगर जाना है तो तीन-तीन, चार-चार घंटे लगते थे रेगिस्‍तान में, आज आप शायद 50 मिनट, 60 मिनट में वहां पहुंच गए होंगे। 

भूकंप के बाद कितना परिवर्तन आता है वो आपने देखा है। और ये हिन्‍दुस्‍तान का आखिरी गांव है जहां आप बैठे हैं। इसके बाद कोई जनसंख्‍या नहीं है। इस आखिरी गांव के आखिरी मुकाम पर आप भारत के भविष्‍य का चिंतन कर रहे हैं। भारत के Tourism को बढ़ावा देने के लिए चिंतन कर रहे हैं। भारत की युवा शक्ति को प्रेरणा देने के लिए कोई न कोई संकल्‍प करके उठने वाले हैं। 

मुझे विश्‍वास है कि आप लोगों का ये मंथन आने वाले दिनों में नीति-निर्धारण में बहुत बड़ी सकारात्‍मक भूमिका अदा करेगा। मेरी इस अवसर पर आपको बहुत-बहुत शुभकामनाएं हैं। आप दो-तीन दिन जो चर्चा करने वाले हैं उसकी बहुत बारीकी से मैं हर चीज को देखने वाला हूं, क्‍योंकि मेरी ये रुचि का क्षेत्र है। 

और इस क्षेत्र में बहुत Potential है, हमें इसको आगे बढ़ाना है। तो मैं आप जो मेहनत करने वाले हैं, उसका पूरा फायदा मैं खुद उठाना चाहता हूं, तो मुझे ज्‍यादा से ज्‍यादा लाभ‍ मिले; ऐसा काम आप जरूर करेंगे। देश को तो लाभ मिले ऐसा काम करते ही हैं आप, लेकिन मेरा भी ज्ञानवर्द्धन होगा आपके इस अनुभव के द्वारा। तो मैं इसका इंतजार करता हूं। 

अब तो तीन दिन के आपके विचार-विमर्श से जो मंथन के अमृत निकलेगा उस अमृत के पान के लिए मैं भी प्रतीक्षा कर रहा हूं। मेरी आप सबको बहुत-बहुत शुभकामनाएं हैं। मैं विजय रूपाणी जी और उनकी सारी टीम को भी बधाई देता हूं कि उन्‍होंने इसके लिए, क्‍योंकि उनके यहां Tourism का इतना Rush होता है तो बीच में से इस प्रकार से किसी Conference के लिए Tent वगैरा देना जरा उनको Economically थोड़ा दिक्‍कत देने वाला काम होता है लेकिन दे रहे हैं, लेकिन इसके कारण जरूर ये देशभर से लोग आए हैं तो ये आपके इस रणोत्‍सव का प्रचार भी करेंगे। हो सकता है कि आने वाले दिनों में इनकी तरफ से भी 50-50 लोग ज्‍यादा आना शुरू कर जाएं तो आपका एक Investment ही है। तो गुजरात सरकार को भी मैं बधाई देता हूं, अभिनंदन करता हूं उनका। 

धन्‍यवाद। 

 

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अतुल कुमार तिवारी/ अमित कुमार/मनीषा पांडे/ निर्मल शर्मा 



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