Prime Minister's Office

Text of PM’s address Young CEOs at the "Champions of Change" initiative organized by NITI Aayog

Posted On: 22 AUG 2017 9:12PM by PIB Delhi

आप लोग, कल से अपना बहुमूल्य समय, देश में क्‍या हो, कैसे हो, क्‍यों हो, उस पर मंथन कर रहे थे। अपने-अपने क्षेत्र के अनुभवों के आधार पर आप देश को अलग-अलग नजरिए से देख रहे थे।  अलग अलग पहलुओं को देख रहे हैं।  

आपने देखा होगा यहां एक प्रकार से सरकार की जो Decision making Team होती है जो नीति निर्धारक लोग होते हैं वे सब यहां बैठे हैं। और आपकी हर बात को मैं बारीकी से मैंने सुनने समझने का प्रयास किया है। और मुझे विश्वास है कि ये प्रयास रंग लायेगा। सरकार में जो सोचने का तरीका होता है। सरकार में रहते हुए एक चीज का एक पहलू नजर आता है दूसरा पहलू तो कभी रह जाता है। इस Interaction के कारण इस बातचीत के कारण एक प्रकार से 360 Degree View हर विषय के सम्बन्ध में, हर समस्या के संबंध में, या हर सुझाव के संबंध में उभरकर के आता है। और इसलिये जब नीतियां बनती हैं तब या तो नीतियों को execute करने के लिये रोड मैप बनता है तब ये चीजें बहुत काम आती है। ऐसा तो नहीं हो सकता है कि प्रधानमंत्री के मन में जितने विचार आयें , वो सारे के सारे विचार सरकार में लागू हो जाएं। वरना तो देश चल ही नहीं सकता। प्रधानमंत्री को भी अपने विचारों को छोड़ना पड़ता है। आपको भी ये बात भलि-भांति पता है कि आपने जितना बताया है हो सकता है उसमें से कुछ चीज काम आए, कुछ चीज काम न आए। लेकिन जो काम आएगी उससे अवश्‍य पहले की स्थितियों में, पहले की नीतियों में, पहले के Approach में बहुत बड़ा बदलाव आएगा। चीजों को प्रस्‍तुत करने का आपका अपना एक अलग तरीका होता है। आप अलग प्रकार से आपका Development हुआ रहता है। आप जिस जिम्मेवारी को लेकर काम कर रहे हैं उसमें Result Oriented outcome oriented आपकी सारी गतिविधि रहती है। सरकार की By and large कल्याण राज की कल्पना से काम चलता है। जनहित सर्वोपरि  होता है। जनसूखा कार्य सर्वोपरि होती है। आपकी सोच के दायरे में होता है कि मेरी कंपनी ने क्या Target set किया था और क्या पाया। मेरी कंपनी कितनी आगे बढ़ी। और कितने पीछ रह गये इससे आपको कोई लेना देना नहीं होता है आपको अपनी कंपनी कितनी आगे बढ़ी वो होता है। और बहुत स्वाभाविक है। लेकिन जो सरकार में है उसके लिये सरकार कहां रही उसके बजाय ज्यादा देश कहां पहुंचा उसकी जिम्मेवारी रहती है। देश के आखिरी तबके का व्यक्ति कहां पहुंचा ये उसका दायित्व बनता है।

हम पूरी तरह समझते हैं कि हर किसी के मन में विचार होता है कि यार सरकार को इतना समझ नहीं आता है हम रोज देख रहे हैं ऐसा होता है लेकिन ये बस ऐसे ही लोग हैं कुछ काम नहीं कर रहे। ये हर देशवासी के मन में है। लेकिन अगर आप उसको साथ लेकर चलो उसको भी समस्या से जोड़ो। आपने देखा होगा कि उसका सुझाव देने का तरीका भी बदल जाता है। अगर आप सरकार के साथ एक क्लाइंट के रूप में बैठे होते तो आपके बात करने के तौर तरीके अलग होते। लेकिन जब आप सरकार में पार्टनर के रूप में बैठे हैं तो आपको लगता है नहीं यार हम वो बाते बताएं जो कर सकते हैं। इस सारी प्रक्रिया का मेरा यही उद्देश्य है कि इस देश के हर नागरिक को लगना चाहिए ये देश मेरा है। इस देश को मुझे आगे बढ़ाना है। समस्याएं है। कठिनाइयां हैं। ईश्वर ने जितनी बुद्धि हमें दी है उतनी शायद सरकार में बैठे हुए लोगों को नहीं दी है। लेकिन फिर भी मैं जहां हूं वहां से मुझे उसमें कुछ जोड़ना है।

हमारे देश में आप लोग देखिये आजादी का आंदोलन वैसे अगर हमारे सैकड़ों साल की गुलामी देखें इन सैकड़ों साल में एक वर्ष ऐसा नहीं गया है कि हिन्दुस्तान किसी न किसी कोने में से आजादी के लिये आवाज़ न उठी हो। जो भी आतताई होंगे उनके खिलाफ सर ऊंचा करने का प्रयास हर कालखंड में हुआ है। अगर कोई हजार साल की गुलामी मानें तो हजार साल हजारों उस पूरे Thousand year के अंदर हुआ है। लेकिन आजादी के लिये मरने मिटने वालों की कमी नहीं थी। आज एक को फांसी मिली तो कल दूसरा मैदान में आता था। दूसरे को फांसी मिली तो परसो तीसरा आता था। एक श्रृंखला चल रही थी देश को आजादी दिलाने के लिये। और आजादी के वातावरण को बनाने का एक निरंतर प्रयास चल रहा था। और हर किसी को लगता था कि मैं अपना बलिदान देकर के मैं देश की सेवा कर रहा हूं। महात्मा गांधी ने क्या बदल दिया और मैं समझता हूं अगल इस बात को हम समझ लें तो 2017 To 2022 हमें कहां जाना है कैसे जाना है क्यों जाना है किसके भरोसे जाना है किसके लिये जाना है इसके सारे सवालों का जवाब अपने आप मिल जाएगा। और इसलिये गांधी ने क्या किया। व्यक्तिगत रूप से देश के लिये मर मिटने वालों की कोई कमी नहीं थी लोगों को फांसी के तख्त पर चढ़ा रहे थे। अंडमान निकोबार की जेलों में अपनी जवानी खपा रहे थे। लेकिन गांधी ने हर इंसान को आजादी का शरीक बनाया। हर नागरिक को। एक ऐसा माहौल बनाया कि टीचर हो पढ़ा रहे हो मन में भाव लो कि मैं आजादी के लिये देश के इन बच्चों को पढ़ा रहा हूं। तुम सफाई का काम पहले भी करते थे आज भी करते हो। लेकिन तुम सफाई का काम कर रहे हो देश की आजादी के लिये तुम किसान हो खेत जोतते हो। खेत में काम करते हो पहले भी करते थे। अब भी करते हो लेकिन मन में भाव भरो कि मैं देश के लिये किसानी कर रहा हूं।

 

पूरे हिन्दुस्तान में हर किसी के मन में ये भाव पैदा किया गांधी ने कि वो जो काम कर रहा है वो देश के लिये कर रहा है.. देश की आजादी के लिये कर रहा है। और अंग्रेजों के लिये इस बात को समझना बड़ा मुश्किल था। कोई रोड पर निकल कर के सामने खड़ा हो जाए फिर गोली चलाना अंग्रेज के लिये सरल था। कोई सामने खड़ा हो जाए पकड़ के जेल में डाल देना सरल था। लेकिन वो अपने घर में ही काम कर रहा है लेकिन वो कह रहा मैं तो आजादी के लिये कर रहा हूं। उसको कैसे करें। गांधी ने आजादी को मास मूवमेंट में Convert कर दिया। और मास मूवमेंट में Convert किया तो आपने देखा कि इतना बड़ा परिणाम मिला। आज हमारे देश में आगे बढ़ने के लिये हर सरकार ने प्रयास किया है। जिसकी जहां जिम्मेवारी रही होगी उसने प्रयास किया है। लेकिन आजादी के बाद development ...यह मास मूवमेंट नहीं बना पाया।  हमें देश को यहां ले जाना है। हम ये करके रहेंगे। अगर मेरे देश में इतने डॉक्टर हों अगर डॉक्टर के मन में spirit हो कि अब न्यूट्रीशन की समस्या के समाधान के लिये हम मेहनत करेंगे। चाइल्ड हैल्थ केयर के लिये हमारा ये कॉन्ट्रीब्यूशन होगा। नई पीढ़ी को हम ऐसे ले जाएं। माता मृत्यु दर ..शिशु मृत्यु दर इसको हम ग्लोबल स्टैंडर्ड के बराबर में लेकर आएंगे। अगर ये भाव पैदा हो तो कौन कहता है कि देश में बदलाव नहीं आ सकता। कौन कहता है कि सरकारों की जरूरत है। सरकार सिर्फ एक कैटलिक एजेंट के रूप में काम करती रहे। देश अपने आप चल पड़ सकता है। और इसलिये आज हम 2017 में है जबकि, Quit India के 75 साल हुए हैं और आजादी के 70 साल हुए हैं। 2022 आजादी के जब 75 साल करेंगे।

देश को यहां से यहां ले जाएंगे। ये मुझे माहौल बनाना है। इस मंथन से मुझे आप लोगों की बहुत जरूरत है कि आप जहां हैं वहां जिन लोगों के बीच में हैं। आप भी एक आधुनिक भारत के सैनिक बन सकते हैं। एक समृद्ध भारत के सैनिक बन सकते हैं। एक विश्व के अंदर अपना नाम ऊंचा कर सके सामर्थवान बनें ऐसा भारत के सैनिक बन सकते हैं। लेकिन इस प्रकार से मिल बैठकर के हम एक एक चीजों को हाथ लगाएंगे हमें रास्ते मिलते जाएंगे।

हमें लगेगा हां मैं ये कर सकता हूं। इस समस्या का समाधान...। मैं यहां देख रहा था कि किसान की आय डबल कैसे हो कई विषयों में आपने चर्चा की और बहुत अच्छे अच्छे प्रेजेंटेशन भी आपने दिये हैं बड़े अच्छे तरीके से प्रस्तुत किये। प्रजेंटटेशन का क्वालिटी तो अच्छा था ही था ।

लेकिन मैं इसलिए नहीं कह रहा हूं, लेकिन मैं कह इसलिए  रहा हूं कि मुझे इस टीम को ..मेरे लिये आप मेरी टीम हैं। मेरे देश को आगे ले जाने के लिये मुझे आपका साथ चाहिए। मैं और आप कंधे से कंधा मिलाकर काम करें और ये तब होगा, जब हमारा मीटींगे होंगी। आपकी सोच मेरी योजना का हिस्सा बनें मेरी सोच आपके पुरुषार्थ का एक आधार बन जाए आप देखिये कैसा बड़ा बदलाव आ सकता है|

अब देखिये Agriculture Sector में एक छोटा सा विषय है। हम अर्थजगत के लोग हैं Export import की भारी चर्चा कर रहे हैं। मुझे बताइए जो देश कृषि प्रधान हो जिस देश की आत्मा गांव हो जिस देश की पूरी चर्चा गांधी जी के जीवन में गांव से जुड़ी हुई हो। और वो देश टिम्बर Import करता है। मुझे बताइए कहां से कहां पहुंच गए। क्या कारण है कि हम टिम्बर Import करते हैं। क्या हमारी इस फार्मर की इनकम डबल करने में क्या सरकार में कानून बदले जा सकते हैं कि उसके खेत के अगर जहां पर बॉडर होती है। वहां टिम्बर की खेती करेंगे। और उस टिम्बर को उसको काटने का बेचने का उसको हक मिले। क्या मेरे देश का टिम्बर Import करना बंद होगा कि नहीं होगा। मेरे देश का किसान हमारे देश का एक दुर्भाग्य है कि दो खेत के बीच में हम इतनी जमीन बर्बाद करते हैं बादा लगा करके ...fencing लगाकर के यानि ऐसे पौधे लगा देते हैं, कांटे लगा देते हैं। एक इसकी बर्बाद होती है एक उसकी बर्बाद होती है। लेकिन अगर वहीं पर टिम्बर लगा दें तो आप मुझे बताइए देश का टिम्बर Import कम होगा उसकी जमीन का maximum उपयोग होगा और सरकार के कानून बदलने से कितना कितना बड़ा बदलाव लाया जा सकता है। सरकार में चर्चा चल रही है।

कहने का तात्पर्य यह है कि हम फार्मर की इनकम डबल करना चाहते हैं। लेकिन हम Animal husbandry पर सोचेंगे ही नहीं पौल्ट्री फॉर्म पर सोचेंगे ही नहीं। हम फीशिरीज़ पर नहीं सोचेंगे। हम ornamental fishing पर नहीं सोचेंगे, तो हम एक टोटल जो एक डिजाइन बनानी है वो नहीं बना पाएंगे। हमारे लिये आवश्‍यक है वैल्‍यूलेशन एडिशन कैसे हो, हम दुनिया के मार्केट में हमारा कौन सा एग्रीकल्‍चर प्रोडक्‍ट है जो टारगेटेट मार्केट को पकड़ सकता है। पूरी गल्‍फ कंट्रीस, वहां पॉप्‍यूलेशन बढ़ रही है, ऑइल है पानी नहीं है। ऑइल कितना ही क्‍यों न हो, जिंदगी जीने के लिए पानी जरूरी है। और इसलिए उनके लिए एग्रो प्रोडक्‍ट इंपोर्ट किये बिना कोई चारा नहीं है। क्‍या उनकी रिक्‍वायरमेंट का सर्वे करके हम हमारे किसान को उस एग्रो प्रोडक्‍ट के लिए जाए और हमारे एग्रो इकॉनोमिक्‍स के साथ जुड़े हुए लोग ही या तो एग्रो वैल्यू एडिशन  के साथ जुड़े लोग मिल करके उस प्रोडक्‍ट को वहां पर पहुंचाए उस रूप में बना सकते हैं क्या। ये अगर हम चेंज करें, गल्‍फ कंट्रीस को हम एक प्रकार से उसकी जो एग्रीकल्‍चर रिक्‍वायरमेंट उसका एसोरेंस दे दे वो हमें हमारी एनर्जी रिक्‍वायरमेंट का एसोरेंस दे दे एक प्रकार से win win  सिचुएशन के दिशा में आगे बढ़ सकते हैं कि नहीं बढ़ सकते। और इसलिये यहां एक ऐसी टीम है मेरे सामने जो इस प्रकार की नई चीजों को लेकर के आ सकते है। अभी भारत सरकार नवम्बर में एक ग्लोबल लेवल का बहुत बड़ा इवेन्ट कर रही है जिसमें mainly फूड प्रोसेसिंग पर हम बल दे रहे हैं। दुनिया की बहुत बड़े मात्र हैं। आपने देखा होगा फूड प्रोसेसिंग में एफडीआई को हमनें 100 प्रसेंट ओपन अप कर दिया है। फार्मर की इनकम डबल हो ये सिर्फ नारा नहीं है। उसी प्रकार से फार्म सैक्टर में इन्फ्रास्ट्रक्चर आज हमारे यहां सालाना करीब करीब एक लाख करोड़ रुपया ...यह छोटी अमाउन्ट नहीं है भारत जैसे देश के लिये। एक लाख करोड़ रुपया का हमारा एग्रो प्रोडक्ट फल हो फूल हो सब्जी हो, अनाज हो, वो बर्बाद होता है। क्योंकि हमारे पास sufficient इन्फ्रास्ट्रक्चर नहीं है। अब वो इन्फ्रास्ट्रक्चर भी अपने आप में रोजगार देने के लिये बहुत बड़ा अवसर है। अगर फाइनेन्सियल इन्स्टिट्युशन्स, प्राइवेट प्लेयर्स जो रियल इस्टेट के दुनिया के लोग हों। अगर वो इस प्रकार की चीजें बनाएंगे। आप मुझे बताइए कि मल्टिपल बेनिफिट होगा कि नहीं होगा। और इसलिये हमारा एप्रोच ... हमारा एप्रोच क्या हो। हम देश के रिक्वायरमेंट को एड्रेस करें। हम अपने बिजनेस को expand करें और हम देश की क्वालिटी ऑफ लाइफ में बदलाव लाने के लिये मूलभूत चीजों को निर्माण करते चलें।

अगर इन चीजों को लेकर के हम अपनी विकास की यात्रा को ले जाते हैं, तो मुझे विश्वास है कि हम जो चाहते हैं वो परिणाम प्राप्त कर सकते हैं। और सरकार में आपने बारीकी से देखा होगा। कल से आप यहां जब तक बैठें हैं कई विषयों पर आपको चर्चा भी आई होगी। इस सरकार ने कई महत्वपूर्ण निर्णय लिये। जिन महत्वपूर्ण निर्णयों ने मूलभूत बातों में बड़ा परिवर्तन लाया है।

 

अब आपको पता होगा पहले हमारे देश में किसान यूरिया के लिये उसको बड़ा टेंशन रहता था। समय पर यूरिया मिलेगा या नहीं मिलेगा। और किसान को समय पर यूरिया नहीं मिलता है तो यूरिया मिलना बेकार होता है। और इसलिये मुझे याद है जब मैं मुख्यमंत्री था मैं प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखता रहता था कि मेरे यहां इतना समय यूरिया मिले ..कितना मिले... फलाना मिले ...और जब मैं प्रधानमंत्री बना तो शुरू के तीन महीने में मुझे जो सबसे ज्यादा चिट्ठियां आईं मुख्यमंत्रियों की वो यूरिया की आई। हमारे देश में यूरिया के लिये पुलिस का लाठी चार्ज होता था। यूरिया के लिये किसानों को तीन तीन दिन कतार में खड़ा रहना पड़ता था। तीन तीन दिन डी मोनाटाइजेशन के बाद बैंको के बाहर खड़ी कतार को तो टीवी पर आपने बहुत देखा। मेरा देश का दुर्भाग्य है कि यूरिया के लिये खड़े रहे हमारे किसान को टीवी पर नहीं दिखाया। ये फर्क है। समस्याओं को देखने समझने का। इस सरकार ने कुछ initiative लिये। एक सबसे बड़ा initiative.. यूरिया के फैक्टरी को गैस चाहिए। हमारे यहां गैस की वैराइटी की policies थी। किसी को एक दाम पे गैस मिलता था किसी को एक ..टर्म्स एंड कंडिशन से मिलता था। हमने सबको rationalize कर दिया। एक ही प्रकार का बैच बना दिया ताकि सबके कॉम्पीटिशन के लिये सुविधा हो।

दूसरा हमारे देश में बड़ा.. गहरे जाओगे तो बड़ा आश्चर्य होगा की ये कैसे चलाया होगा। अगर आपका कैपासिटी है 10 लाख मेट्रिक टन की और आप पांच परसेंट ज्यादा प्रोडक्ट करते हैं, तो आपको सरकार इतना पैसा देती थी। आप इतना प्रोडक्ट करते। और इसका परिणाम ये आया था कि एक प्रकार से ये बड़ा ही क्या हो गया होगा आप जानते हो। हमनें आकर के उसके सारे नियम बदल दिये। आज परिणाम यह है कि सरकार के पैसे तो बचे लेकिन बीस लाख टन यूरिया उसी कारखाने में से उसी व्यवस्था से एक्स्ट्रा पैदा होने लगा। प्रोडक्टिविटी बढ़ गई। Just policy intervention के कारण। बाद में हमनें यूरिया नीमकोटिंग किया अब आप में से कोई कैमिलकल वाले यहां नहीं होंगे। ऐसा मैं मानकर के कहता हूं दानी तो हैं यहां। लेकिन यूरिया खेत में कम जाता था, कैमिकल इंडस्ट्री में ज्यादा जाता था। क्योंकि उसको subsidised यूरिया मिल जाता था। और वैल्यू एडिशन कर के प्रोडक्ट बना कर के दुनिया को बेचता था। हमनें यूरिया का नीम कोटिंग कर दिया। नीम कोटिंग करने के बाद एक ग्राम भी यूरिया किसी और काम में आ ही नहीं सकता, सिवाय कि  जमीन में डालो। और इसका परिणाम ये आया कि जो सारा साइफन होता था। चोरी होती थी किसी और काम में चला जाता था। वो सारा खत्म हो गया। आज देश में कहीं यूरिया की मांग नहीं है। कहने का तात्पर्य यह है कि हम किस प्रकार से एक एक चीज को एंड टू एंड सोल्युशन के नेचर के हैं। मैं स्वभाव से चीजों को टुकड़ों में नहीं करता हूं। एक बार उसको हां चीजें Progressive Unfoldment होता है। आज मैं एक चीज कहूंगा तो सामने वाले को जल्दी पता नहीं चलेगा कि मोदी यहां से कहां उठा कर ले जाएगा।

 

मैं जब कहता हूं कि भई आपके पास पैसे जमा हैं सरकार स्कीम लाई है डिक्लेयर करिए, डिक्लेयर करिये, डिक्लेयर करिये नहीं करिये फिर 8 नवम्बर आ जाती है। और इसलिये कोई भी बात हम टुकड़ों में नहीं करते। मेरे मन में साफ होता है कि हां इस बात के बाद ये आएगा। लेकिन किस को कितना बताना है वो तो और इसलिये मैं कहता हूं कि सरकार ने कई initiative लिये हैं।

अब मुझे बताइये कि डिजिटल इंडिया की तरफ जाना चाहते हैं कि नहीं। डिजिटल इंडिया के अँदर हमारा ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क का काम चल रहा है। आप हैरान होंगे जब मैं आया था तब तीन सौ साठ गांव थे शायद। जहां पर ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क पहुंचा था। अब हम करीब लाखों में पहुंच चुके हैं। तीन साल के भीतर भीतर तो एप्रोच बदला परिणाम लाए। अब हम कम कैश सोसाइटी की ओर जाना चाहते हैं। आप मुझे बताइए आपकी कंपनियां 2022 देश को यहां ले जाने के लिये एक काम ...हमारा पूरा कारोबार हमारे employee का भी पूरा कारोबार यानि ऐसा नहीं कि उसको हम ई-पेमेंट दे देंगे और बाद में लोग कैस निकाल कर के कारोबार करेगा। ऐसा नहीं। उसको भी हम सिखाएंगे तुम BHIM एप डाउनलोड करो और तुम अपने मोबाइल फोन से और वहां पर छोटे मोटे व्यापारी होंगे उनको भी सिखाएंगे। तुम भीम एप डाउनलोड करो और हमारे यहां कोई ऐसा नहीं होगा, जो cash ट्रांजेक्शन करेगा। मुझे बताइए देश की सेवा होगी कि नहीं होगी। और इसलिये मुझे ये भागीदारी चाहिए। हम कैसे करें।

अब कभी कभी देख रहा हूं इन दिनों देखिये आप, आप लोग ये दीवाली के दिनों में ये आपकी कंपनियां गिफ्ट देती है .. वो देनी पड़ती हैं। भले थोड़ा देर  से ही सही लेकिन। क्या हम बदल सकते हैं approach कि भई हम वो गिफ्ट देने की आदत बनाएंगे, जिसके कारण दिवाली में गरीब के घर में दिया जले। आप लोगों को Purchasing के कूपन देते हैं। जाइए 2000 रुपये का माल ले सकते हैं हमारा। आप खादी का क्यों नहीं दे सकते। आप गिफ्ट पैकेट खादी का क्यों नहीं दे सकते ? मैं ये नहीं कहता हूं जिसके घर में गिफ्ट पैकेट जाएगा तो वो खादीधारी बन जाएगा। जरूरी नहीं खादी धारी बनने की। लेकिन आपके पास पचास प्रकार के फैब्रिक है, तो एक खादी भी हो सकता है। कहने का तात्पर्य यह है कि हमारे सारे कारोबार में ...मैं कोई ऐसी चीज जोड़ रहा हूं, मेरे सारे employee मिलकर के कि जिसके कारण मैं देश की गरीबी को किस प्रकार से एड्रेस कर रहा हूं। मैं देश के गरीब को पॉजिटिवली एड्रेस कर रहा हूं क्या। आप देखिये अपने आप में बदलाव शुरू हो जाएगा। इसका मतलब ये नहीं कि मैं क्वालीटी compromise करूंगा। मेरे सुख में कम करूं मैं आपसे ऐसा कोई आग्रह नहीं करूंगा। हम एक वातावरण बनाएं कि हम हमारे गरीब से गरीब लोगों को साथ लेकर चलें। अब आपको जानकर के खुशी होगी। सरकार में अगर कुछ खरीद करना है, तो कागज पर कितनी प्रकार की कार्रवाई होती है। टेंडर निकलेगा ..टेंडर के टर्म्स एंड कंडिशन निकलेंगे फिर टेंडर भरने वाले आएंगे फिर देखना पड़ेगा कि मंत्री जी के भतीजे का टेंडर आया की नहीं आया। भांति भांति की चीजों से देश अनुभवी है। टेंडर खोलना की नहीं खोलना अब स्थिति ठीक नहीं है तो reject कर दो। ये सारी बातें आप भली भांति परिचित हो, देश परिचित है। कोई चीज हमारे देश में.. ट्रांस्प्रेंसी है जी। बेईमानी भी सबको पता है। अब क्या इतनी बड़ी सरकार में कोई छोटा इंसान भी अपना प्रोडक्ट सप्लाई कर सकता है कि नहीं कर सकता। कोई बहुत बड़ा टेंडरिंग सिस्टम से वो गुजरेगा तब करेगा क्या। सरकार ने एक छोटा सा प्लेटफॉर्म बनाया जेम (जीईएम) (GeM).. आपसे मेरा सबसे आग्रह है कि आप उस पोर्टल पर जाइए चैक कीजिए और सरकार के सभी डिपार्टमेंट अपनी रिक्वायरमेंट उस पर लिखते हैं कि हमें ये चीज चाहिए। हमें 25 नेपकीन चाहिए, हमें दो dustbin चाहिए, वेस्ट पेपर बास्केट चाहिए, हमें 25 झाड़ू चाहिए, जो भी 100 चेयर चाहिए। अपना लिखते हैं। सप्लायर कोई भी अपने पास किस प्रकार का माल है उसका स्टेंडर्ड क्या है क्वालिटी क्या है उसकी पूरी डिटेल रखता है।

सरकार का नियम बना है कि उसमें जो क्वालीटी compromise किये बिना सस्ता जो है उसको लेना है कोई टेंडर वेंडर कुछ नहीं सबको ऑनलाइन एवेलेबल कोई भी देख सकता है इसको। आप हैरान होंगे अभी तो इस प्रयोग को चार- छह महीने हुए हैं। और सरकार में भी जितना spread होना चाहिए उतना नहीं हुआ है। उसके बावजूद भी एक हजार करोड़ रुपयों का सरकार का परचेज इस जेम के द्वारा हुआ है। वन थाउजेंड करोड़ रुपीज़। और सप्लायर कितने आप चौंक जाएंगे। 28,000 सप्लायर ने मिलकर के एक हजार करोड़ का दिया है ये। मतलब हर एक के नसीब में कितने छोटे लोग होंगे ये। छोटे छोटे लोगों ने अपनी चीजें पहुंचाई है। और परिणाम ये आया है कि यही हजार करोड़ का माल अगर पुरानी सरकार की टेंडरिंग से हुआ होता तो शायद पेमेंट 1700 करोड़ का हुआ होता। और हजार करोड़ में से क्या आया होता वो तो भगवान जानें। मेरा कहने का तात्पर्य यह है कि चीजें किस प्रकार से बदल रही हैं।

टैक्नॉलॉजी का किस प्रकार से उपयोग करके transparency लाई जा रही है। अब आपके भी ध्यान में कुछ लोग होंगे। इवन आपका कोई एम्पलोई होगा उसका बेटा कोई छोटी सी चीज प्रोडक्ट करता होगा। उसको कहो भई तुम जरा जेम में रजिस्ट्री करवा दो। देखो सरकार में तुम लिखो तुम्हारा कोई माल चला जाएगा वहां। हम entrepreneurship को कैसे बढ़ावा दे सकते हैं। हम कैसे बदल सकते हैं। अब हमारे यहां टूरिजम, आपके हर प्रेजेंटेशन में tourism की बात आ रही है। tourism के सामने सबसे बड़ी समस्या कौन है। सवाल मेरा बड़ा चौंकाने वाला है। कभी हमने सोचा हमारा psyche हमारा कितना नुकसान कर रही है। मैं ये आपको नहीं सुना रहा हूं हम सब मंथन कर रहे हैं, मैं भी आप ही के साथ मेरे विचारों को एक मंथन के रूप में प्रगट कर रहा हूं। मैंने पिछले साल एक कार्यक्रम किया था मेरी मन की बात में जो करता हूं। उसमें मैंने वेकेशन में बच्चों को कहा था कि आपलोग जाते हैं इस हैशटैग से आप जो भी प्लेस में गये हैं देखने के लिये उसकी फोटो भेजिये। मिलियन्स ऑफ मिलियन्स फोटोग्राफ मेरी वेबसाइट पर है। मिलियन्स ऑफ मिलियन्स और मैं हैरान था मैं कुछ देखता था कभी कभी जब समय मिले, हमारे देश में ऐसी ऐसी जगह है, ऐसा प्राकृतिक दृश्य है, जो गए हैं उसने फोटो भेजी तो पता चलता है कि भई वो तो हैश टैग के कारण कइयों ने उसको देखा भी होगा। हम लोगों की psyche क्या है, किसी अच्छी जगह पर जाएं और मन को भा जाए। तो हमारा पहला वाक्य क्या निकलता है, यार लगता नहीं है हम हिन्दुस्तान में हैं। अब मुझे बताइये tourism कहां से बढ़ेगा। अगर आप अपने बच्चों को घर में प्यार नहीं करते हो, तवज्जो नहीं देते हो मोहल्ले वाले कैसे देंगे मुझे बताओ। अगर हम हमारी चीजों का गर्व न करें, आपके पास buyer आते होंगे सेलर आते होंगे। ग्लोबल community से आपका नाता होगा। आप में से कितने होंगे जिन्होंने उनको कहा होगा आप आए हैं लेकिन तीन ज्यादा निकाल कर आइए। इस विकेंड में तो ये जगह देख कर आइए। Tourism तो हम, देखिये Tourism सरकार के एडवरटाइजिंग से नहीं होता है। कोई एक कहे यार मैं गया था तुम हो आओ। आप जरूर जाते हैं। क्योंकि Tourism में एक फीयर  ऑफ unknown इनबिल्ट होता है। फीयर  ऑफ unknown इनबिल्ट होता है टूरिस्ट के दिमाग में। लेकिन जिस दिन उसको कोई कहे कि मैं गया था। फिर वो पूछता नहीं कि वहां क्या करना है वो अपने आप चल पड़ता है। हम हिन्दुस्तानियों का ये स्वभाव नहीं है। हमारे यहां कोई फार्मेसी वाली कंपनी... कोई है क्या फार्मेसी वाले। चलिये अच्छा है मैं बोल पाऊंगा...। फार्मेसी वाले डॉक्टरों को विशेष टूर कराते हैं। आपको भी मालूम है क्यों कराते हैं। लेकिन कहां ले जाएंगे सिंगापुर ले जाएंगे, दुबई ले जाएंगे। उनको नहीं लगता कि चलो भई हमारे देश में हम्पी करके एक जगह है चलिये हम चलते हैं कर्नाटक जाते हैं छह चीज देख कर आएँगे, राजस्थान जाते हैं पांच चीज देखकर आएंगे मैं लेकर जाऊंगा। हम अपनी चीजों को बढ़ावा नहीं देते हैं। जब तक हम और हम ये न सोचें कि हम दुनिया को वो टैक्नॉलॉजी वाला tourism कराएँ। Artificial   एंजॉयमेंट का एनवारमेंट उसके बजाए हमारी जो विरासत है जी अगर उस विरासत को दुनिया को हम परिचित करवाएं। तो दुनिया इसे देखने के लिये पागल है जी। मुझे बराबर याद है मैं गुजरात में जब मुख्यमंत्री था तो गुजरात में मेरे अपने शौक तब में राजनीति में भी नहीं था मैं ऐसे जंगलों में भटकता रहता था। तो तभी में रेगिस्तान में रहने के लिये चला गया था। तो मैंने कच्छ का जब White Rann देखा और मेरे मन को एक बड़ा ही एक अलग सा इम्पैक्ट हुआ। मैं ये चालीस पैंतालिस साल पहले की बात कर रहा हूं। जब मैं मुख्यमंत्री बना तो मैंने तय किया कि मैं इस रेगिस्तान को टूरिस्ट डेस्टिनेशन बनाऊंगा। आप से मेरा आग्रह है कि कभी रणोत्सव वेबसाइट पर जाइए। दिवाली के बाद वो शुरू होता है। तीन महीने चलता है। पूरा टैंट सिटी बनता है। आप कल्पना नहीं कर सकते हैं कि ऐसा सौंदर्य मेरे देश के रेगिस्तान में होता है। पूरा White Desert और इन दिनों काफी मात्रा में बुकिंग में परेशानी होती है इतना rush रहता है। एक नया experience होता है। कई लोग अपनी बोर्ड मीटिंग कंपनी की रणोत्सव के साथ जोड़ देते हैं। कोई किसी ने सोचा था कि एक रेगिस्तान व्हाइट डेजर्ट हैं वो भी कभी टूरिस्ट डेस्टिनेशन बन सकता है। उसके कारण कच्छ का हैंडिक्राफ्ट, कच्छ की और चीजें एक प्रकार से एक बहुत बड़ा मार्केट खड़ा हो गया वहां। फिर लोग भी अपने आप में प्रोफेशनली तैयार होने लगे। पैकेजिंग सीखने लगे। कैसे उनको खाना खिलाना परोसना वो सब आ गया उनको। ये टूरिजम ऐसा है कि पहले मुर्गी कि पहले अंडा। टूरिस्ट आएंगे तो tourism डेवलेप होगा, अगर टूरिस्ट डेस्टिनेशन डेवलेप होगा टूरिस्ट आएंगे। इसी का झगड़ा चलता रहता है। मैं बहुत साल पहले हिमाचल में काम करता था। हिमाचल में एक स्थान है मनाली के पास ...एक बहुत बड़े आर्टिस्ट थे विदेश के मैं नाम भूल गया उनका रॉड्रिक तो मैं उनका स्थान देखने गया। किसी जगह बैलगाड़ी में वहां पहुंचे थे आजादी के आंदोलन में भी भाग लिया था विदेशी थे। जगह है लेकिन कोई टूरिस्ट नहीं आता था। मैं वहां हिमाचल में मैंने कहा सरकार हमारी पार्टी के लोग थे सरकार में तो मैंने उनको रिक्वेस्ट किया मैंने कहा आप नियम बनाइए। स्कूल जो टूर प्रोग्राम बनाती है। उसमें यहां आना कम्पलसरी कर दीजिए। तो स्कूल की बसें आने लगीं। आने लगीं तो चना-चबेना बेचने वाला आने लगा, पानी बेचने वाला आने लगा, चाय बेचने वाला आने लगा, धीरे – धीरे करके इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलेप होने लगा। रिक्वायरमेंट को डेवलेप करने वाले हो गए। बाद में लोगों का भी टूरिस्ट डेस्टिनेशन मैप में वो जगह बन गई। हमें कोशिश करनी पड़ती है जी। और मैं मानता हूं कि सरकार के द्वारा जितना tourism डेवलेप हो सकता है उससे ज्यादा tourism एक टेम्परामेंट हम बनाएं। हम इसको बढ़ावा देने के लिये बल दें। और भारत में यात्राएं नई चीज नहीं थी। आज Circuit टूर हैं टूरिजम में Circuit Concept  बहुत पोपुलर है। हमारे देश में सदियों पहले था चारधाम क्या था Circuit ही तो था। 12 महादेव ज्योतिरलिंग क्या था Circuit ही तो था। नौ गणेश क्या था Circuit ही तो था। हमारे पूर्वजों को Circuit पहले से मालूम था । और इन्फ्रास्ट्रक्चर भी available था। हम इन चीजों को लेकर के आगे बढ़ सकते हैं। और इसलिये जॉब क्रियेशन से लेकर के मैं इस बात से सहमत हूं कि tourism में बहुत बड़ी ताकत है। लेकिन अगर हम इन चीजों को जोड़ें, तो अपने आप में हमारा कॉन्ट्रिब्यूशन होगा तो परिणाम भी बहुत बड़ा मिलेगा। कई विचार आपकी तरफ से आए हैं उन विचारों का जरूर उपयोग होगा। लेकिन मेरी कोशिश ये है कि विचार सिर्फ इस कमरे तक ही सीमित न रहे, आप भी अपने अपने यूनिट में अपने अपने सेलर बायर के बीच में अपने इंडस्ट्रियल सर्कल में इन चीजों को आगे बढ़ा सकते हैं क्या। आप भी वहां कोई इवेंट कर सकते हैं क्या। आप मिलकर देश के लिये हम भी कुछ करेंगे। हम आपके देखा है जो आपके इंडस्ट्रियल स्टेट हैं, मैं कितना ही स्वच्छता का अभियान चलाऊं। आप जिस चैम्बर में बैठते हैं वो तो बढ़िया होती है, लेकिन वो इंडस्ट्रियल एरिया में पैर रखना पसंद न करें ऐसा हाल होता है जी। लेकिन हम सामूहिक जिम्मेवारी नहीं लेते हैं। इसलिये वो सफाई नहीं होती है। वेस्ट में से वेल्थ एक बहुत बड़ा entrepreneur का विकास है जी। हमारे देश में नये entrepreneurs वेस्ट में से वेल्थ हम कैसे तैयार करें। उनको कैसे हम प्रोत्साहित करें। और बहुत कुछ हो सकता है हमारे पर्यावरण की समस्या का समाधान हो सकता है। अब नागपुर में एक नौजवान उसने छोटा सा काम किया। उसने हमारे यहां आपने देखा होगा हरियाणा, पंजाब के अंदर खेती के बाद जो फसल बाद में जो वेस्ट रहता है उसको जलाते हैं। तो दिल्ली के अंदर जो पर्यावरण का जो प्रोबलम होता है तो गालियां Punjab  और हरियाणा के किसानों को पड़ती है। नागपुर के अंदर एक नौजवान ने उसी वेस्ट को खरीद लिया, गोबर खरीद लिया, उसमें से छोटे – छोटे ब्लॉक बना दिये और फ्यूनरल के अंदर जलाने के लिये वो ब्लॉक बेचता है। 20% लकड़ी की जरूरत, बॉडी उसी से जल सकता है। और टोटल जो रिक्वायरमेंट होती है उससे 20% कम रिक्वायरमेंट होती है। वेस्ट का बेस्ट हो गया फ्यूनरल में जो टाइम खराब होता था बंद हो गया। पहले दो घंटे में बॉडी जलता था अब एक घंटे में जल जाती है परिवार वाले जल्दी फ्री हो जाते हैं। एक स्टार्टअप भला क्या कर सकता है, कहने का मेरा मतलब है कि हम ऐसी चीजों को बढ़ावा कैसे दें।

हमारे देश में दूसरा हमारा problem जो है, जिसका हमें समाधान चाहिए। हम ग्लोबल जो रिक्वायरमेंट है हम ग्लोबल जो दुनिया देखते हैं , हम उस प्रोडक्ट की ओर जाना चाहते हैं। फिर हमारा संतोष ये होता है कि देखिये उनकी पांच हजार में मिलती मेरी चार हजार में मिलती है तुम मेरा खरीदो। सचमुच में हमारे एक approach बदलने की आवश्यकता है। हमारे देश की जो तकलीफें हैं, इसका सोल्युशन वाला कोई प्रोडक्ट में दे सकता हूं क्या। जिस दिन हम वो प्रोडक्ट देंगे। आप देखिये हमारे यहां बहुत बड़ा मार्केट है। जिसको हम कैप्चर कर सकते हैं। और हम उसी ताकत को ग्लोबल मार्केट में भी एंटरटेन कर सकते हैं।

क्या हमने कभी ये सोचा है कि हमारे देश को कितनी चीजें इम्पोर्ट करनी पड़ती है। क्या मैं 2022 तक मेरे देश को कम से कम इन पांच चीजें इम्पोर्ट करने से मेरे देश को बचाऊंगा। मेरे देश में पांच चीजें इम्पोर्ट नहीं होने दूंगा। मेरी ये देश भक्ति है, पांच चीज ऐसी बनाऊंगा मेरे देश का बाहर पैसा नहीं जाएगा। क्यों नहीं कर सकते। कर सकते हैं। आप मुझे बताइए अभी आप कहते थे इलैक्ट्रोनिक वगैरह इम्पोर्ट कीजिये उसकी चर्चा कर रहे थे। हेल्थ केयर की इलैक्ट्रोनिक इक्विप्मेंट भारत में हैल्थ केयर को सस्ता करना है, तो हमारे ग्रास रूट  लेवल पर उपयोगी चीजें अब किडनी के पेशेंट के लिये जो रिक्वारयमेंट है क्या वो मशीन हम नहीं बना सकते क्या। डायलिसिस हम नहीं बना सकते। क्या हमारे entrepreneur इस प्रकार से बाह नहीं आ सकते क्या। हमारे देश की समस्याओं को एडजस्ट करने का टेम्प्रामेंट ये हमारी नई जनरेशन में अगर बनता है, तो मार्केट अपने आप खड़ा हो जाएगा। और मुझे लगता है कि हम इस दिशा में सोचें। और मुझे विश्वास है आप लोगों ने जो सुझाव दिये हैं वो सुझाव सरकार में काम आएँगे। धीरे धीरे मेरे मन में विचार जो चल रहा है ये कोई वन टाइम इवेन्ट नहीं है। हम इसको इन्स्टिट्युशनलाइज करना चाहते हैं। आप हैं आप में और भी नये लोग जुड़ सकते हैं। इसका और अधिक आउटकम ऑरियेन्टेड उसकी रचना भी की जा सकती है कई सुझाव आ सकते हैं। लेकिन एक शुरुआत है। अलग – अलग ग्रुप के साथ इस प्रकार से बैठना और धीरे धीरे जिसमें इसकी रुचि होगी मैं सरकार के उस डिपार्टमेंट के साथ भी उसको जोड़ना चाहूंगा। ताकि परमानेंट इंटरेक्शन होता रहे। और हम मिल कर के देश के लिये करें। और मुझे पूरा भरोसा है, कि आप व्यापार जगत में आप मुझे खुशी हुई कि आप के किसी प्रेजेंटेशन में उद्योग या व्यापारी के हित के कोई सुझाव नहीं थे। सारे सुझाव देश हित के थे। यही मेरा 2022 का सपना पूरा कर देता है....इसलिये हम इन चीजों को बल देना चाहते हैं।

कई नये परिवर्तन लाने का प्रयास कर रहे हैं क्योंकि जितना आप जुड़ोगे उतना मैं समझता हूं कि परिणाम मिलेगा। मैं आज विशेष रूप से हमारे नीति आयोग के वाइस चेयरमेन श्रीमान अरविंद पनगरिया का बधाई करना चाहता हूं। देखिये अभी वो, देखिये मिशन मोड में काम कैसे होता है। वे 45 साल अमेरिका में रहे। कभी हिन्दुस्तान आने के लिये सोचा नहीं था। परिवार भी वहां सेट हो गया। मेरी उनसे दोस्ती थी। मैंने कहा ठीक है भई बहुत कमा लिया कुछ समय हमें दे दीजिये। मेरे एक शब्द पर वो आए। तीन साल इस नीति आयोग को उन्होंने चलाया बढ़ाया और आज एक प्रकार से पहले के प्लानिंग कमिशन से आमूलचूल बदल दिया इस नीति आयोग में। बहुत बड़ा उनका कॉन्ट्रिब्यूशन था। और मजा है कि इस हफ्ते के बाद वो वापस अमेरिका जा रहे हैं छोड़ छाड़ के लेकिन आज भी इसी काम को लगन से कर रहे हैं। हमारे बीच में बैठे हैं। ये छोटी बात नहीं है जी। वरना अब जाना है तो एक महीना तो पैकिंग में लगता है। अमेरिका वापस जाना है तो कुछ नहीं बड़े मन से इस काम में लगे हुए हैं। मैं समझता हूं हमारे देश में ऐसे लोगों की कमी नहीं है। और इन्हीं के भरोसे 2022 का एक सपना लेकर के हम चले हैं। मैं अरविंद जी, अब जाने वाले हैं उनको मेरी तरफ से बहुत शुभकामनाएं देता हूं। उत्तम काम किया है उन्होंने। ये देश हमेशा हमेशा याद रखेगा। उनकी सेवाओं को याद रखेगा और इस कार्यक्रम के मूल में अरविंद जी ही रहे हैं। आपके साथ मिलकर के दो दिन से बैठे हुए हैं। बड़े साइलेंट नेचर के हैं जल्दी परिचय भी नहीं होता है किसी से कि अरविंद जी है कौन। ये भी एक क्वालिटी है। वो अपने आपको बहुत पीछे रखते हैं। लेकिन मैं समझता हूं कि एक अच्छा प्रयास अच्छा परिणाम और आप लोग हमेशा के लिये जुड़े रहेंगे। सरकार के साथ आपका सीधा संबंध आना चाहिए। आपके सुझाव आने चाहिए। मैं खुद तो अब easy available हूं कल शायद आपको प्रजेंटटेशन दिया होगा। मैं टैक्नॉलॉजी के साथ किसी से भी कहीं पर भी जुड़ सकता हूं। मैं इसके साथ लगा रहता हूं। मैं फिर एक बार आप लोगों का इस कॉन्ट्रिब्यूशन के लिये आपका आभार व्यक्त करता हूं। बहुत बहुत धन्यवाद।

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अतुल तिवारी/हिमांशु सिंह/ शौकत अली।



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