Prime Minister's Office

PM addresses Centenary Celebrations of Bharat Sevashram Sangha (via video conference)

Posted On: 07 MAY 2017 6:00PM by PIB Bhubaneshwar

 

The Prime Minister, Shri Narendra Modi, today addressed the Centenary Celebrations of Bharat Sevashram Sangha through video conference. The event is being organized at Shillong. 

Welcoming the Prime Minister on the occasion, the General Secretary of Bharat Sevashram Sangha, Sreemat Swami Biswatmananda ji Maharaj, spoke of the glorious spiritual and service traditions of India. 

Addressing the gathering, the Prime Minister recalled the time that he had worked with the Bharat Sevashram Sangha in Gujarat. He conveyed his best wishes on the occasion to the Bharat Sevashram Sangha, which he said, combined the virtues of service (seva) and labour (shram). 

He said the work of the organization in the North-East, and during the time of disasters, has been especially praiseworthy. 

The Prime Minister explained the significance of serving the poor and the needy, as described in the scriptures. 

He said Swami Pranavananda, the founder of Bharat Sevashram Sangha, had spoken of social justice a century ago, and established the Sangh for this purpose. 

The Prime Minister said a myth has been sought to be created in recent times that “service” and “spirituality” are two different things. He said the Bharat Sevashram Sangha has been able to dispel this myth, through its work. 

The Prime Minister said that societal development through 'Bhakti', 'Shakti' and 'Jan Shakti' was achieved by Swami Pranavananda. 

The Prime Minister urged the Bharat Sevashram Sangha to work towards “Swachhagrah” – or cleanliness, especially in North-Eastern India. He spoke of the Government’s resolve to develop the North-East, and added that focus on connectivity and infrastructure could help develop the North-East to become a gateway to South-East Asia. 

Sreemant Swami Ambareeshananda ji Maharaj, who had worked with the Prime Minister in Gujarat, and who was mentioned by the Prime Minister during his address, proposed the vote of thanks on the occasion. 

Following are the excerpts of the Prime Minister’s address: 

दिल्ली और शिलॉन्ग के बीच लगभग 2 हजार किलोमीटर की दूरी है लेकिन तकनीक ने इस दूरी को मिटा दिया है। पिछले वर्ष मई के महीने में ही मैं शिलॉन्ग गया था। 

आज जब वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से आप सभी से बात करने का अवसर मिला है, तो कई स्मृतियां ताजा हो गई हैं।

गुजरात में मुझे भारत सेवाश्रम संघ के अध्यक्ष रहे स्वर्गीय स्वामी अक्षयानंद जी महाराज के साथ काम करने का अवसर मिला था। 

मंच पर उपस्थित स्वामी अम्बरीशानंद जी महाराज जी तो गुजरात यूनिट के अध्यक्ष रहे हैं। स्वामी गणेशानंद जी के अनुभवों से भी मुझे बहुत कुछ सीखने का मौका मिला है।

आचार्य श्रीमत स्वामी 

प्रणबानंद जी महाराज द्वारा स्थापित भारत सेवाश्रम संघ ने इस वर्ष अपनी यात्रा के 100 वर्ष पूरे किए हैं। 

सेवा और श्रम को भारत निर्माण के लिए साथ लेकर चलने वाले संघ के सभी सदस्यों को मेरी तरफ से बहुत-बहुत शुभकामनाएं। 

किसी भी संस्था के लिए ये बहुत गौरव का विषय है कि उसकी सेवा का विस्तार, सौ वर्ष पूरे कर रहा हो। विशेषकर उत्तर पूर्व के राज्यों में भारत सेवाश्रम संघ के जन-कल्याणकारी कार्य बहुत प्रशंसनीय रहे हैं। 

बाढ़ हो या सूखा, या फिर भूकंप भारत सेवाश्रम संघ के सदस्य पूरी तन्मयता से पीड़ितों को राहत पहुंचाते नजर आते हैं। 

संकट के समय जब इंसान को मदद की सबसे ज्यादा आवश्यकता होती है, तो स्वामी प्रणबानंद के शिष्य सब कुछ भूलकर सिर्फ और सिर्फ मानव सेवा में जुट जाते हैं। 

पीड़ित मनुष्य की सेवा तो हमारे शास्त्रों में तीर्थाटन की तरह मानी गई है। 

कहा गया है-

एकत: क्रतव: सर्वे सहस्त्र वरदक्षिणा अन्यतो रोग-भीतानाम् प्राणिनाम् प्राण रक्षणम् 

यानि- एक ओर विधि-पूर्वक सब को अच्छी दक्षिणा दे कर किया गया यज्ञ कर्म तथा दूसरी ओर दु:खी और रोग से पीड़ित मनुष्य की सेवा करना यह दोनों कर्म उतने ही पुण्य-प्रद हैं।

साथियों, 

स्वामी प्रणबानंद जी ने अपनी अध्यात्मिक यात्रा के चरम पर पहुंचने पर कहा था कि- 

ये समय महा मिलन, 

महा जागरण, 

महा मुक्ति और 

महा समान न्याय का है। 

इसी के बाद उन्होंने भारत सेवाश्रम संघ की नींव रखी थी। 

1917 में स्थापना के बाद जिस सेवाभाव के साथ इस संस्था ने काम शुरू किया था, उससे बडौदा के महाराजा सयाजीराव गायकवाड़ भी बहुत प्रभावित हुए थे। 

महाराजा सयाजीराव गायकवाड़ स्वयं जिस अथक परिश्रम से लोगों के उत्थान के लिए कार्य करते थे, वो जगजाहिर है। वो लोककल्याण के कार्यों की चलती फिरती संस्था की तरह थे। इसलिए श्रीमत स्वामी प्रणबानंद जी के देशभर में भेजे सेवादूतों को उन्होंने जमीनी स्तर पर कार्य करते देखा, तो उनकी प्रंशसा किए बिना नहीं रह सके। 

जनसंघ के संस्थापक, श्रद्धेय डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी तो स्वामी प्रणबानंद जी को अपने गुरु की तरह मानते थे। डॉक्टर मुखर्जी के विचारों में स्वामी प्रणबानंद जी के विचारों की झलक भी मिलती है।

राष्ट्र निर्माण के जिस विजन के साथ स्वामी प्रणबानंद जी ने अपने शिष्यों को अध्यात्म और सेवा से जोड़ा, वो अतुलनीय है।

जब 1923 में बंगाल में सूखा पड़ा, 

जब 1946 में नोआखली में दंगे हुए, 

जब 1950 में जलपाईगुड़ी में बाढ़ आई, 

जब 1956 में कच्छ में भूकंप आया, जब 1977 में आंध्र प्रदेश में भीषण चक्रवात आया, 

जब 1984 में भोपाल में गैस त्रासदी हुई, तो भारत सेवाश्रम संघ के लोगों ने पीड़ितों के बीच रहकर उनकी सेवा की। 

हमें ध्यान रखना होगा कि ये वो समय था 

जब देश में डिजास्टर मैनेजमेंट को लेकर एजेंसियां उतनी अनुभवी नहीं थी। 

प्राकृतिक आपदा हो या इंसान के आपसी संघर्ष से पैदा हुआ संकट, 

हर मुश्किल घड़ी में भारत सेवाश्रम संघ ने, उससे निपटने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 

बीते कुछ वर्षों की बात करें तो जब 2001 में गुजरात में भूकंप आया, 

2004 में सुनामी आई, 

2013 में उत्तराखंड में त्रासदी आई, 

2015 में तमिलनाडु में बाढ़ आई, तो भारत सेवाश्रम के सदस्य सबसे पहले पहुंचने वाले लोगों में से एक थे। 

भाइयों और बहनों, 

स्वामी प्रणबानंद कहा करते थे- 

“बिना आदर्श के जीवन मृत्यु के समान है। 

अपने जीवन में उच्च आदर्श स्थापित करके ही कोई भी व्यक्ति मानवता की सच्ची सेवा कर सकता है”। 

आपकी संस्था के सभी सदस्यों ने उनकी इन बातों को अपने जीवन में उतारा है। 

आज स्वामी प्रणबानंद जहां कहीं भी होंगे, मानवता के लिए आपके प्रयासों को देखकर बहुत प्रसन्न होंगे। 

देश ही नहीं विदेश में भी प्राकृतिक आपदा आने पर भी भारत सेवाश्रम के सदस्य लोगों को राहत देने के लिए पहुंच जाते हैं। 

इसके लिए आप सभी का जितना अभिनंदन किया जाए, उतना कम है।

हमारे शास्त्रों में भी कहा गया है-

आत्मार्थम् जीव लोके अस्मिन् को न जीवति मानवः। 

परम परोपकार आर्थम यो जीवति स जीवति॥

यानि इस संसार में अपने लिए कौन मनुष्य नहीं जीता है परन्तु जिसका जीवन परोपकार के लिए है उसका ही जीवन, जीवन है।

इसलिए परोपकार के अनेक प्रयासों से सुशोभित आपकी संस्था को सौ वर्ष पूरे होने पर फिर बधाई। 

साथियों, 

बीते कुछ दशकों में देश में एक मिथक बनाया गया कि अध्यात्म और सेवा के रास्ते अलग-अलग हैं। 

कुछ लोगों द्वारा ये बताने की कोशिश की गई कि जो अध्यात्म की राह पर है, वो सेवा के रास्ते से अलग है। 

आपने इस मिथक को ना सिर्फ गलत साबित किया है बल्कि अध्यात्म और भारतीय मूल्यों पर आधारित सेवा को एक साथ आगे बढ़ाया है। 

आज देशभर में भारत सेवाश्रम संघ की सौ से ज्यादा शाखाएं और पाँच सौ से ज्यादा इकाइयां स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और नौजवानों को ट्रेनिंग देने के कार्य में भी जुटी हुई हैं। भारत सेवाश्रम संघ ने साधना और समाज सेवा के संयुक्त उपक्रम के तौर पर लोकसेवा का एक मॉडल विकसित किया है। 

दुनिया के कई देशों में ये मॉडल सफलतापूर्वक चल रहा है। संयुक्त राष्ट्र तक में भारत सेवाश्रम संघ के कल्याणकारी कार्यों की प्रशंसा हुई है। 

स्वामी प्रणबानंद जी महाराज पिछली शताब्दी में देश की आध्यात्मिक चेतना की रक्षा करने वाले, उसे स्वतंत्रता आंदोलन से जोड़ने वाले कुछ एक महान अवतारो में से एक थे। 

स्वामी विवेकानंद और महर्षि अरबिंदों की तरह ही उनका नाम पिछली शताब्दी के महान संतों में लिया जाता है। स्वामी जी कहते थे- “मनुष्य को अपने एक हाथ में भक्ति और एक हाथ में शक्ति रखनी चाहिए। उनका मानना था कि बिना शक्ति के कोई मनुष्य अपनी रक्षा नहीं कर सकता और बिना भक्ति के उसके खुद के ही भक्षक बन जाने का खतरा होता है”।

समाज के विकास के लिए शक्ति और भक्ति को साथ लेकर जनशक्ति को एकजुट करने का काम, जनचेतना को जागृत करने का काम उन्होंने अपनी बाल अवस्था से ही शुरु कर दिया था। 

निर्वाण की अवस्था से बहुत पहले, जब वो स्वामी प्रणबानंद नहीं हुए थे, सिर्फ “बिनोद” थे, अपने गांव के घर-घर जाकर चावल और सब्जियां जमा करते थे और फिर उन्हें गरीबों में बांट देते थे। जब उन्होंने देखा कि गांव तक पहुंचने के लिए सड़क नहीं है तो सभी को प्रेरित करके उन्होंने गांव तक एक सड़क का निर्माण भी करवाया। 

जात-पात, छुआ-छूत के जहर ने कैसे समाज को विभक्त कर रखा है, इसका ऐहसास उन्हें बहुत पहले ही हो गया था। इसलिए सभी को बराबरी का मंत्र सिखाते हुए, वो गांव के हर व्यक्ति को एक साथ बिठाकर ईश्वर की पूजा करते थे। 

19वीं सदी के आखिरी में और 20वीं सदी के प्रारंभ में बंगाल जिस तरह की राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र बना हुआ था, उस दौरान राष्ट्रीय चेतना जगाने के स्वामी प्रणबानंद जी के प्रयास और ज्यादा बढ़ गए थे। 

बंगाल में ही स्थापित अनुशीलन समिति के क्रांतिकारियों को वो खुला समर्थन देते थे। अंग्रेजों के खिलाफ लड़ते हुए वो एक बार जेल भी गए। अपने कार्यों से उन्होंने साबित किया कि साधना के लिए सिर्फ गुफाओं में रहना आवश्यक नहीं, बल्कि जनजागरण और जनचेतना जागृत करके भी साधना की जा सकती है, ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है।

भाइयों और बहनों, 

आज से सौ वर्ष पहले देश जिस मनोस्थिति से गुजर रहा था, गुलामी की बेड़ियों से, अपनी कमजोरियों से मुक्ति पाना चाहता था, उसमें देश अलग-अलग भूभागों पर जनशक्ति को संगठित करने के प्रयास अनवरत चल रहे थे। 

1917 का ही वो वर्ष था, जब महात्मा गांधी ने चंपारण में सत्याग्रह आंदोलन का बीजारोपण किया। हम सभी के लिए ये सुखद संयोग है कि इस वर्ष देश चंपारण सत्याग्रह के सौ वर्ष का पर्व भी मना रहा है।

सत्याग्रह आंदोलन के साथ-साथ ही महात्मा गांधी ने लोगों को स्वच्छता के प्रति जागरूक भी किया था। आपकी जानकारी में होगा कि पिछले महीने चंपारण सत्याग्रह की तरह ही देश में स्वच्छाग्रह अभियान की शुरुआत की गई है। स्वच्छाग्रह यानि स्वच्छता के प्रति आग्रह। आज इस अवसर पर मैं स्वच्छाग्रह को भी आपकी साधना का अभिन्न अंग बनाने का आग्रह करना चाहता हूं। इसकी एक वजह भी है। 

आपने देखा होगा अभी तीन-चार दिन पहले ही इस साल के स्वच्छ सर्वेक्षण में शहरों की रैंकिंग घोषित की गई है। 

उत्तर-पूर्वी राज्यों के 12 शहरों का भी सर्वे किया गया था। लेकिन स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। सिर्फ गंगटोक ऐसा शहर है जो पचासवें नंबर पर आया है। 4 शहरों की रैंकिंग सौ से दो सौ के बीच है और बाकी सात शहर 200 से 300 रैंक के दायरे में है। शिलॉन्ग जहां आप बैठे हुए हैं, वो भी दो सौ छिहत्तर (276) नंबर पर है। 

ये स्थिति हमारे लिए, राज्य सरकारों के लिए और भारत सेवाश्रम संघ जैसी संस्थाओं के लिए चुनौती की तरह है। स्थानीय एजेंसियां अपना काम कर रही हैं लेकिन इनके साथ-साथ प्रत्येक व्यक्ति को ये ऐहसास कराया जाना बहुत आवश्यक है कि वो अपने आप में स्वच्छता मिशन का एक सिपाही है। हर व्यक्ति के अपने प्रयास से ही स्वच्छ भारत, स्वच्छ उत्तर-पूर्व के लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है।

भाइयों और बहनों, 

स्वामी प्रणबानंद जी महाराज कहते थे- 

“देश के हालात को बदलने के लिए लाखों निस्वार्थ कर्मयोगियों की आवश्यकता है। यही निस्वार्थ कर्मयोगी देश के प्रत्येक नागरिक का मनोभाव बदलेंगे और उस बदले हुए मनोभाव में एक नए राष्ट्र का निर्माण होगा”।

स्वामी प्रणयानंद जी जैसी महान आत्माओं की प्रेरणा से देश में आप जैसे करोड़ों निस्वार्थ कर्मयोगी हैं। बस हम सभी को मिलकर अपनी ऊर्जा स्वच्छाग्रह के इस आंदोलन को सफल बनाने में लगा देनी है।

मुझे बताया गया है कि जब स्वच्छ भारत अभियान शुरू हुआ था, तब आप लोगों ने उत्तर पूर्व के पाँच रेलवे स्टेशनों का चयन किया था कि उन स्टेशनों में सफाई की जिम्मेदारी उठाएंगे, वहां हर पखवाड़े स्वच्छता अभिय़ान चलाया जाएगा। अब आपके प्रयासों को और ज्यादा बढ़ाए जाने की जरूरत है। 

इस वर्ष जब आप सभी अपनी संस्था के गठन के सौ वर्ष मना रहे हैं तो इस महत्वपूर्ण वर्ष को क्या पूरी तरह स्वच्छता पर केंद्रित कर सकते हैं।

क्या आपकी संस्था जिन इलाकों में काम कर रही है, वहां पर पर्यावरण की रक्षा के लिए, पूरे इलाके को प्लास्टिक फ्री बनाने के लिए कार्य कर सकती है। क्या लोगों को जल संरक्षण और जल प्रबंधन के फायदों के प्रति लोगों को जागरूक कर सकती है।

क्या अपने लक्ष्यों को, संस्था के कुछ कार्यों को आप वर्ष 2022 से भी जोड़ सकते हैं। 2022 में भारत अपनी स्वतंत्रता के 75वें वर्ष में प्रवेश कर रहा होगा। इसमें अभी पाँच वर्ष का समय है और इस समय का उपयोग हर व्यक्ति, हर संस्था, को अपने आसपास व्याप्त बुराइयों को खत्म करके, पीछे छोड़कर आगे बढ़ने का प्रयास करना होगा।

साथियों, 

आपको ज्ञात होगा कि 1924 में स्वामी प्रणबानंद जी ने देशभर में स्थित अनेक तीर्थ स्थलों का पुनुरुद्धार करवाया था। 

तीर्थ शंकर नाम से कार्यक्रम शुरू करके, उस समय हमारे तीर्थ स्थलों से जुड़ी कमजोरियों को दूर करने का उन्होंने प्रयास किया था। आज हमारे तीर्थस्थलों की एक बड़ी कमजोरी अस्वच्छता है। क्या भारत सेवाश्रम संघ तीर्थ शंकर कार्यक्रम को स्वच्छता से जोड़ते हुए नए सिरे से शुरू कर सकता है। 

इसी तरह आपदा प्रबंधन के अपने अनुभवों को भारत सेवाश्रम संघ कैसे ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचा सकता है, इस बारे में भी सोचा जाना चाहिए। हर वर्ष देश में हजारों जिंदगियां प्राकृतिक आपदा की वजह से संकट में आती हैं। प्राकृतिक आपदाओं के समय कैसे कम से कम नुकसान हो, इसी को ध्यान में रखते हुए पिछले वर्ष देश में पहली बार National Disaster Managment Plan बनाया गया है। सरकार बड़े पैमाने पर लोगों को जागरूक कर रही है, लोगों को मॉक एक्सरसाइज के जरिए भी डिजास्टर मैनेजमेंट के तरीकों के बारे में बताया जा रहा है। 

साथियों, 

आपकी उत्तर-पूर्व के राज्यों में सक्रियता और संगठन शक्ति का डिजास्टर मैनेजमेंट में बहुत उपयोग हो सकता है। आपकी संस्था आपदा के बाद और आपदा से पहले, दोनों ही स्थितियों से निपटने के लिए लोगों को तैयार कर सकती है।

इसी तरह जैसे स्वामी प्रणबानंद जी ने देशभर में प्रवचन दल भेजकर आध्यात्म और सेवा का संदेश देश-विदेश तक पहुंचाया, वैसे ही आपकी संस्था उत्तर पूर्व के कोने-कोने में जाकर, आदिवासी इलाकों में जाकर खेल से जुड़ी प्रतिभाओं की तलाश में प्रभावी भूमिका निभा सकती है। इन इलाकों में पहले से आपके दर्जनों स्कूल चल रहे हैं, आपके बनाए हॉस्टलों में सैकड़ों आदिवासी बच्चे रह रहे हैं, इसलिए ये काम आपके लिए मुश्किल नहीं होगा। 

आप जमीन पर काम करने वाले लोग हैं, लोगों के बीच में काम करने वाले लोग हैं, आपकी पारखी दृष्टि खेल प्रतिभाओं को सामने लाने में मदद कर सकती है।

स्वामी प्रणबानंद जी कहते थे कि देश की युवाशक्ति जागृत नहीं हुई, तो सारे प्रयास विफल हो जाएंगे। 

अब एक बार फिर अवसर आया है, सुदूर उत्तर-पूर्व में छिपी इस युवाशक्ति को, खेल की प्रतिभाओं को मुख्यधारा में लाने का। इसमें आपकी संस्था की बड़ी भूमिका हो सकती है। 

बस मेरा आग्रह है कि आप अपनी इस सेवा साधना के लिए, 

जो भी लक्ष्य तय करें, 

वो measurable हो, 

यानि जिसे आंकड़ों में तय किया जा सकता हो। 

स्वच्छता के लिए आप उत्तर पूर्व के 10 शहरों तक पहुंचेंगे या 1000 गांवों तक पहुंचेंगे, ये आप खुद तय करें, डिजास्टर मैनेजमेंट के लिए 100 कैंप लगाएंगे या एक हजार कैंप लगाएंगे, ये आप खुद तय करें, लेकिन मेरा फिर आग्रह है, जो भी तय करें वो measurable हो। 

2022 तक भारत सेवाश्रम संघ ये कहने की स्थिति में हो कि हमने सिर्फ अभियान नहीं चलाया, 

बल्कि 50 हजार या एक लाख लोगों को इससे जोड़ा। 

जैसे स्वामी प्रणबानंद जी कहा कहते थे कि-

“ हमेशा एक डायरी मेनटेन करनी चाहिए”, 

वैसे ही आप भी संस्था की एक डायरी बना सकते हैं जिनमें लक्ष्य भी लिखा जाए और तय अंतराल पर ये भी लिखा जाए कि उस लक्ष्य को कितना प्राप्त किया।

आपका ये प्रयास, 

आपका ये श्रम, 

देश के निर्माण के लिए, 

NEW INDIA के सपने को पूरा करने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। 

श्रम को तो हमारे यहां सबसे बड़ा दान माना गया है और हमारे यहां हर स्थिति में दान देने की प्रेरणा दी जाती है।

श्रद्धया देयम्, अ-श्रद्धया देयम्, 

श्रिया देयम्, ह्रया देयम्, भिया देयम्, सम्विदा देयम्

यानि व्यक्ति को चाहिए कि वो श्रद्धा से दान दे और यदि श्रद्धा न हो तो भी बिना श्रद्धा दान देना चाहिए। 

धन में वृद्धि हो तो दान देना चाहिए और 

यदि धन न बढ़ रहा हो तो फिर लोक लाज से दान देना चाहिए। 

भय से देना चाहिए अथवा प्रेम से दान देना चाहिए। 

कहने का तात्पर्य ये है कि हर परिस्थिति में मनुष्य को दान देना चाहिए। 

साथियों, 

उत्तर पूर्व को लेकर मेरा जोर इसलिए है क्योंकि स्वतंत्रता के बाद के इतने वर्षों में देश के इस क्षेत्र का संतुलित विकास नहीं हुआ है। 

अब केंद्र सरकार पिछले तीन वर्षों से अपने संपूर्ण साधनों से, 

संसाधनों से उत्तर पूर्व के संतुलित विकास का प्रयास कर रही है। 

पूरे इलाके में कनेक्टिविटी बढ़ाने पर भी जोर दिया जा रहा है। 

40 हजार करोड़ के निवेश से उत्तर-पूर्व में रोड इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार किया जा रहा है। रेलवे से जुड़े 19 बड़े प्रोजेक्ट शुरू किए गए हैं, बिजली की व्यवस्था सुधारी जा रही है, पूरे इलाके को पर्यटन के लिहाज से भी मजबूत किया जा रहा है। 

उत्तर पूर्व के छोटे हवाई अड्डों का भी आधुनिकी- -करण किया जा रहा है। आपके शिलॉन्ग एयरपोर्ट में भी रनवे की लंबाई बढ़ाने को मंजूरी दे दी गई है। 

बहुत जल्द ही उत्तर पूर्व को “उड़ान” योजना से भी जोड़ा जाएगा। 

ये सारे प्रयास नॉर्थ-ईस्ट को साउथ-ईस्ट एशिया का गेटवे बनाने में मदद करेंगे। 

साउथ-ईस्ट एशिया का ये खूबसूरत गेटवे अगर अस्वच्छ होगा, अस्वस्थ होगा, अशिक्षित होगा, असंतुलित होगा तो देश विकास के गेटवे को पार करने में पिछड़ जाएगा। साधनों और संसाधनों से भरपूर हमारे देश में कोई ऐसी वजह नहीं जो हम पिछड़े रहें, गरीब रहें। 

सबका साथ- सबका विकास के मंत्र के साथ हमें सभी को सशक्त करते हुए आगे बढ़ना है।

हमारा समाज- समन्वय, सहयोग और सौहार्द से सशक्त होगा

हमारा युवा- चरित्र, चिंतन और चेतना से सशक्त होगा

हमारा देश- जनशक्ति, जनसमर्थन और जनभावना से सशक्त होगा

इस परिवर्तन के लिए, हालात बदलने के लिए, New India बनाने के लिए हम सभी को, करोड़ों निस्वार्थ कर्मयोगियों को, भारत सेवाश्रम संघ जैसी अनेकोनेक संस्थाओं को मिलकर काम करना होगा। इसी आह्वान के साथ मैं अपनी बात समाप्त करता हूं।

एक बार फिर भारत सेवाश्रम संघ के सभी सदस्यों को बहुत-बहुत शुभकामनाएं।

बहुत-बहुत धन्यवाद !!! 
 

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