Prime Minister's Office
Preliminary Text of PM's reply to ‘Motion of Thanks’ to the President’s address, in Lok Sabha
Posted On:
07 FEB 2017 8:01PM by PIB Delhi
माननीय अध्यक्षा जी, राष्ट्रपति जी ने संसद के दोनों सत्रों को 2017 के प्रारंभ में ही सम्बोधित किया। भारत किस तेजी से बदल रहा है, देश की जनशक्ति का सामर्थ्य क्या है, गांव, गरीब किसान की जिंदगी किस प्रकार से बदल रही है, उसका एक विसतार से खाका सदन में रखा था। मैं राष्ट्रपति जी के अभिभाषण पर धन्यवाद देने के लिए आपके सामने उपसिथत हुआ और मैं उनका हृदय से आभार व्यक्त करता हूं।
इस चर्चा में आदरणीय श्री मल्लिकार्जुन जी, तारिक अनवर जी, श्री जयप्रकाश नारायण जी, श्री तथागत जी, सतपति जी, कल्याण बनर्जी, ज्योतिर्दित्य सिंधिया और कई वरिष्ठ महानुभावों ने चर्चा को प्राणवान बनाया। कई पहलुओं को उजागर करने का प्रयास किया है। और मैं इसके लिए चर्चा में सरीक होने वाले सभी आदरणीय सदस्यों का आभार व्यक्त करता हूं।
कल भूकंप आया। इस भूकंप के कारण जिन-जिन क्षेत्रो में असुविधा हुई है, मैं उनके प्रति अपनी भावना व्यक्त करता हूं और केंद्र सरकार राज्य के पूरे संपर्क में है। स्थिति में कोई आवश्यकता है तो टीमें वहां पहुंच भी गई हैं। लेकिन आखिर भूकंप आ ही गया! मैं सोच रहा था कि भूकंप आया कैसे? क्योंकि धमकी तो बहुत पहले सुनी थी। कोई तो कारण होगा कि धरती मां इतनी रूठ गई होगी।
आदरणीय अध्यक्षा जी, मैं सोच रहा था कि भूकंप आया क्यो, जब कोई Scam में भी सेवा का भाव देखता है, Scam में भी नम्रता का भव देखता है तो सिर्फ मां नहीं, धरती मां भी दुखी हो जाती है और तब जा करके भूकंप आता है।
और इसलिए राष्ट्रपति जी ने अपने अभिभाषण में जनशक्ति का ब्योरा दिया है। हम यह जानते है कोई भी व्यवस्था लोकतांत्रिक हो या अलोकतांत्रिक हो, जनशक्ति का मिजाज कुछ और ही होता है। कल हमारे मल्लिकार्जुन जी कह रहे थे कि कांग्रेस की कृपा है कि अब भी लोकतंत्र बचा है और आप प्रधानमंत्री बन पाए। वाह! क्या शेयर सुनाया है। बहुत बड़ी कृपा की आपने इस देश पर, लोकतंत्र बचाया! कितने महान लोग है आप, लेकिन अध्यक्षा जी, उस पार्टी के लोकतंत्र को देश भलीभांति जानता है। पूरा लोकतंत्र एक परिवार को आहूत कर दिया गया है। और 75 का कालखंड माननीय अध्यक्षा जी 75 का कालखंड, जब देश पर आपताकल थोप दिया गया था, हिंदुस्तान को जेलखाना बना दिया गया था, देश के गणमान्य वरिष्ठ नेता जयप्रकाश बाबू समेत लाखों लोगों को जेल की सलाखों में बंद कर दिया गया था। अखबारों पर ताले लगा दिए गए थे। और उन्हें अंदाजा नहीं था कि जनशक्ति क्या होती है, लोकतंत्र को कुचलने के बाद ढेर सारे प्रयासों के बावजूद भी इस देश की जनशक्ति का सामर्थ्य था कि लोकतंत्र पुन: स्थापित हुआ और उस जनशक्ति की ताकत है कि गरीब मां का बेटा भी इस देश का प्रधानमंत्री बन सकता है। और इसलिए राष्ट्रपति जी ने जनशक्ति का उललेख करते हुए जो कहा है - चम्पारण सत्याग्रह शाताब्दी का वर्ष है। इतिहास सिर्फ किताबो की अटारी में पड़ा रहे, तो समाज जीवन को प्रेरणा नहीं देता है। हर युग में इतिहास को जानने का, इतिहास को जीने का प्रयास आवश्यक होता है। उसमें हम थे या नहीं थे, हमारे कुत्ते भी थे या नहीं थे, औरों के कुत्ते हो सकते हैं। हम कुत्तों वाली परंपरा से पले-बढ़े नहीं हैं। लेकिन देश के कोटि-कोटि लोग थे, जब कांग्रेस पार्टी का जन्म भी नहीं हुआ था। 1857 का स्वतंत्रता संग्राम इस देश के लोगों ने जान की बाजी लड़ा करके लड़ा था और सबने मिल करके लड़ा था। साम्प्रदाय की कोई भेद रेखा नहीं थी, और तब भी कमल था, आज भी कमल है।
यहां बहुत ऐसे लोग हैं जो मेरी तरह आजादी के बाद पैदा हुए हैं, और इसलिए हम में से बहुत लोग हैं जिनको आजादी की लड़ाई में सौभाग्य नहीं मिला, लेकिन देश के लिए जीने का तो सौभाग्य मिला है। और हम जीने की कोशिश कर रहे हैं।
माननीय अध्यक्षा जी, और इसलिए आपार जनशक्ति देश ने दर्शन किए हैं। लाल बहादुर शस्त्री जी उनकी अपनी एक गरिमा थी। युद्ध के दिन थे, हर हिन्दुस्तानी के दिल में भारत विजय के भाव से भरा हुआ माहौल था। और उस समय जब लाल बहादुर शस्त्री जी ने कहा था देश ने अन्न त्याग के लिए पहल की थी।
सरकार बनने के बाद आज के रानजीतिक वातावरण को हम जानते हैं। ज्यादातर राज व्यवस्था उन राजनेताओं ने, राज सरकारों ने, केंद्र सरकारों ने जन सामर्थ्य को करीब-करीब पहचानना छोड़ दिया है। और लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा चिंता का विषय भी रहता है। मुझ जैसे सामान्य वयक्ति ने बातों-बातों में कह दिया था कि जो afford कर सकते हैं, वो गेस की subsidy छोड़ दे। जब हम जनता से कट जाते हैं, जन-मन से कट जाते हैं, 2014 में हम चुनाव लड़ रहे थे, तो एक दल इस मुद्दे पर चुनाव लड़ रहा था कि नौ सिलेंडर देंगे या 12 सिलेंडर देंगे। हमने आ करके 9 और 12 की चर्चा को कहां ले गए, हमने कहा कि जो afford कर सकते हैं, वो subsidy छोड़ सकते हैं क्या? सिर्फ कहा था। इस देश के 1 करोड़ 20 लाख से ज्यादा लोग गेस subsidy छोड़ने के लिए आगे आए।
इस सरकार और वहां बैठे हुए लोगों के गर्व का विषय सीमित नहीं है यह। यह सवा सौ करोड़ देशवासियों की शक्ति का परिचायक है। और मैं इस सदन को प्रार्थना करता हूं। राष्ट्रपति जी के उद्बोधन से प्रार्थना करता हूं, राष्ट्रपति जी के उद्बोाधन के माध्यम से प्रार्थना करना चाहता हूं और देश के राजनीतिक जीवन में निर्णायक की अवस्था में बैठे हुए निर्णय प्रक्रिया के भागीदारी सबको आह्वाहन करता हूं कि हम हमारे देश जनशक्ति को पहचाने, उस सामर्थ्य को पहचाने, हम भारत को नई ऊंचाईयों पर ले जाने के लिए जन-आंदोलन की अवधारणा लेते हुए एक सकारात्मक माहौल बना करके, देश को आगे बढ़ाने की दिशा में काम कर रहे हैं। देखिए पहले नहीं मिले उससे ज्यादा परिणाम मिलेंगे।
और उसके कारण अनेक गुना ताकत बढ़ जाएगी। देश की बढ़ने वाली है। इसमें से कोई ऐसा नहीं है कि जो आने वाला कल बुरा देखना चाहता था। इसमें से कोई ऐसा नहीं है जो हिन्दुस्तान का बुरा चाहता था, हर कोई चाहता है गरीब का भला हो। हर कोई चाहता है, गांव-गरीब किसान को कुछ मिले। पहले भी किसी ने प्रयास नहीं किया था ऐसा कहने वालों में से मैं नहीं हूं। मैं इस सदन में बार-बार कह चुका हूं। मैं लालकिले पर से बोल चुका हूं कि अब तब जितनी सरकारें आईं, जितने प्रधानमंत्री आएं, हर किसी का अपना-अपना योगदान है।
उस तरफ बैठे हुए लोगों से कभी सुनने को मिला नहीं है कि इस देश में कोई चापेकर बंधू भी हुआ करते थे, जिनकी शहादत थी आजादी में। इनके मुंह से सुनने को नहीं मिला है, कभी सावकर जी भी थे, जो कालापानी की सजा भुगत रहे थे, तब देश आजाद हुआ है। उनके मुंह से कभी सुनने को नहीं मिल रहा है, जो भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद भी थे कि जिन्होंने देश के लिए बलि चढ़ा दी। उनके तो लगता है कि आजादी सिर्फ एक परिवार ने दिलवाई है। समस्या की जड़ वहां है।
हम देश को उसकी पूर्णता में स्वीकार करें और इसलिए जनशक्ति को जोड़ करके। हमारे यहां शास्त्रों में कहा गया है –
अमंत्रम अक्षरम् नास्ति। नास्ति मूलम् अनौषिधम्, अयोग्य पुरूषोनास्ति योजक: तत्र दुर्लभ:।
कोई अक्षर ऐसा नहीं होता है, जिसको मंत्र में जगह पाने का potential न हो। कोर्ठ ऐसा मूल नहीं होता है, जिसकी औषध में जगह पाने का potential न हो। कोई इंसान ऐसा न होता है कि जो कुछ करके समाज और देश को दे न सके। जरूरत होती है योजक: तत्र दुर्लभ। योजक की जरूरत है। और इस संसार ने हर शक्ति को संवार करके जोड़ने का एक प्रयास किया है। और जनशक्ति के भरोसे उसके आगे बढ़ाने का प्रयास किया है।
स्वच्छता का अभियान, मैं हैरान हूं क्या इस बात के लिए हमें सोचना नहीं चाहिए कि आजादी के इतने साल हो गए हैं। महात्मा गांधी का नाम हम लेते हैं, गांधी के दो प्रिय चिन्ह् थे। गांधी कहते थे कि आजादी से पहले भी अगर मुझे कुछ पाना है, तो मुझे स्वच्छता पानी है। हम स्वच्छता की गांधी जी की बात को लेकर आपके सामने आए। देश के सामने आए। इतनी सरकारें आई, इतने संसद चले सत्र। क्या कभी संसद में स्वच्छता विषय पर चर्चा हुई है। और इसलिए पहली बार, यह सरकार आने के बाद, और इसलिए क्या स्वच्छता को भी हम राजनीकि के एजेंडा का हिस्सा बनाएंगे। आप में से कौन है जो गंदगी में जीना चहाता है? आपके इलाके में कौन है जो गंदगी चाहता है? आप भी नहीं चाहते हैं, यहां वाले भी नहीं चाहते हैं, यहां वाले भी नहीं चाहते हैं। कोई नहीं चाहता हैं। लेकिन क्या हम मिल करके एक स्वर में समाज को इस पवित्र कार्य में जोड़ने को, गांधी जी के सपने को पूरा करने के लिए आगे नहीं बढ़ सकते। कौन रोकता है?
और इसलिए माननीय अध्यक्षा जी, इस आपार जनशक्ति को आगे लेते हुए इस बार एक चर्चा अब यह तो सही है कि जब राष्ट्रपति जी के उद्बोधन पर चर्चा होती है और बजट भी आया होता है तो बजट की बातें भी आ जाती हैं और राष्ट्रपति जी के उद्बोधन की बातें भी आ जाती हैं। बजट पर जब चर्चा होगी तो वित्तमंत्री जी इसको विस्तार से कहेंगे, लेकिन एक चर्चा आई है, बजट जल्दी क्यों किया? भारत एक कृषि प्रधान देश है। हमारा पूरा आर्थिक कारोबार कृषि पर आधारित हैं। और ज्यादातर कृषि की स्थिति दिवाली तक पता चल जाती हैं। हमारे देश की एक कठिनाई है कि हम अंग्रेज जो विरासत छोड़ करके आए, उसको ले करके चल रहे हैं।
हम मई में करीब-करीब बजट की प्रक्रिया पार निकलते हैं। और एक जून के बाद हिन्दुस्तान में बारिश आना शुरू हो जाता है। तीन महीने तक बजट का उपयोग होना असंभव हो जाता है। एक प्रकार से हमारे पास कार्य करने का समय बहुत कम बच जाता है। और जब समय होता है, तब आखिरी दिनों की जो पूर्ति करने के लिए हम जानते हैं, सरकार जानती है कि दिसंबर से मार्च तक किस प्रकार से बिल कटते हैं और किस प्रकार से रुपये खर्च किए दिखाए जाते हैं। अब यह हमने सोचना चाहिए कि अब मैं किसी की आलोचना नहीं करता। अभी भी किसी को समझ में आता है कि क्या कारण था कि आजादी के कई वर्षों तक बजट शाम को पांच बजे आता था। किसी ने सोचा नहीं बस पांच बजे चल रहा है, चल रहा है। क्यों चल रहा है भई। पांच बजे इसलिए बजट चलता था कि UK की पार्लियामेंट के हिसाब से हिन्दुस्तान में अंग्रेजों के जमाने से शाम को पांच बजे बजट आया। अब हमने उसको ही चालू रखा। और बहुत कम लोगों को मालूम होगा। हम घड़ी ऐसे पकड़ते हैं, तो Indian Time है, लेकिन घड़ी ऐसे पकड़ते हैं तो London Time है। आपके पास घड़ी है तो देख लीजिए।
उसी प्रकार से... अब अटल जी की सरकार आई, तब समय बदला गया। हमारा भी प्रयास है और जब आपकी सरकार थी, तब आप लोगों ने भी बजट के समय के संबंध में एक कमिटी बनाई थी। उसका विस्तृत रिपोर्ट है। और आप भी चाहते थे कि अब यह समय बदलना चाहिए। और उन्होंने जो proposal दी है, हमने उसी को पकड़ा है, लेकिन आप लोग नहीं कर पाए। क्योंकि आपकी priority अलग है। आप चाहते नहीं थे, ऐसा नहीं है। लेकिन उस priority में नंबर कब लगेगा। तो इसलिए जो बातें आपके समय हुई हैं, उन बातों को यह बड़े गर्व से कहना चाहिए आपको, फायदा उठाइये न, यह तो हमारे समय हुआ था। अब यह भी आप भूल जाते हैं, चलों मैंने याद दिला दिया, आप इसका भी लाभ दीजिए।
रेलवे के संबंध में भी विस्तार से चर्चा जब बजट की होगी, लेकिन एक बात समझिये कि 90 साल पहले जब रेल बजट आता थाा, तब transportation का एक प्रमुख mode सिर्फ रेलवे था। आज transportation एक बहुत बड़ी अनिवार्यता बनी है और इकलौता रेलवे नहीं है कई प्रकार के transportation के mode है। जब तक हम comprehensively transport इस विषय को जोड़ करके नहीं चलेंगे, तो हम समस्याओ से जूझते रहेंगे। और इसलिए मुख्य धारा में रेवले व्यवस्था भी रहेगी। उसमें कोई privatization को कोई तकलीफ नहीं, उसके स्वतंत्रता को कोई तकलीफ नहीं है। लेकिन सोचने के लिए सरकार एक साथ comprehensive, हर प्रकार के mode of transport को देखना शुरू करे, यह आवश्यक है। और हमने, जबसे आए हैं, हमने रेलवे में, बजट में बदलाव किया है।
आप जानते हैं कि पहले बजट में हमारे गौड़ा जी ने बताया था कि करीब 1500 घोषणाएं हुई थी और कौन मजबूत है, कौन हाऊस में ज्यादा परेशान करता है, उसको ध्यान में रख करके, उसको खुश रख करके, एक-आध चीज बोल ही दी जाती थी। वो भी ताली बजा देता था, अपने इलाके में जा करके बता देता था, यह काम हो गया है। हमने देखा, 1500 ऐसी चीजें हुई थी, जिनका कागज़ पर भी मोक्ष हो गया था, तो यह ऐसा हम क्यों करते हैं। मैं जानता हूं, इससे राजनीकि दृष्टि से हमें नुकसान होता है। लेकिन किसी ने तो जिम्मा लेना पड़ेगा, देश में जो गलत चीजें develop हो चुकी हैं, उसको हम रोके। और Bureaucracy को suit करता है यह। ऐसी चीजें उनको suit करती है कि राजनेता ताली बजा दे, उनकी गाड़ी चला दे। मुझे नहीं चलानी है जी।
देश के सामान्य मानव की आशाओं-आकांक्षाओं के लिए फैसले लेने है, अच्छे फैसले लेने का प्रयास है। अच्छी तरह करने का प्रयास है। और इसलिए हम उस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं, हम इस काम को कर रहे हैं।
एक विषय नोटबंदी का आया है। पहले दिन से यह सरकार कह रही है हम नोटबंदी पर चर्चा करने के लिए तैयार है, लेकिन आप लोगों को लगता था कि टीवी पर कतार देखते हैं, तो कल कभी न कभी कुछ हो जाएगा, फिर देखेंगे। आपको लग रहा था कि इस समय चर्चा करने से शायद मोदी फायदा उठा जाएगा। और इसलिए चर्चा की बजाय, आपको TV bite देने में interest था। इसलिए चर्चा नहीं हुई। अच्छा है कि इस बार आपने थोड़ा बहुत सपर्श किया है और कितना बड़ा बदलाव आया है। और मुझे विश्वास है जो बारीकी से चीजों का अध्ययन करते हैं, अब तक उनका ध्यान नहीं गया है तो मैं चाहूंगा कि उनका ध्यान जाए। 2014 के पहले का वक्त देख लीजिए। 2014 मई के पहले का। वहां से आवाज़ उठती थी कि कोयले में कितना खाया? 2G में कितना गया, जल करप्शन में कितना गया, वायु करप्शन में कितना गया। आसमान के करप्शन में कितना गया। कितने लाख गए, यही वहां से आवाज़ आती थी। यह मेरे लिए खुशी की खबर है कि जब वहां से आवाज़ आती थी, मोदी जी कितना लाए, कितना लाए, कितना लाए। तब आवाज़ उठती थी कि कितना गया। अब आवाज़ उठ रही है कितना लाए, इससे बड़ा जीवन का संतोष क्या हो सकता है। यही तो सही कदम है।
दूसरा हमारे खड़गे जी ने कहा कि कालाधन हीरे-जवाहरात में है, सोने में है, चांदी में है, property में है। मैं आपकी बात से सहमत है लेकिन यह सदन जानना चाहता है, यह ज्ञान आपको कब हुआ। क्योंकि इस बात का कोई इंकार नहीं कर सकता है कि भ्रष्टाचार का प्रारंभ नकद से होता है। उसकी शुरूआत नकद से होती है। परिणाम में Property होती है, परिणाम में Jewelry होती है, परिणाम में Gold होता है। शुरूआत नकद से होती है। दूसरा आपको मालूम है कि यही बुराईयों के केंद्र में है। बेनामी Property है, जवाहरात है, Gold है, चांदी है, जरा आप लोग बताइये 1988 में जब श्रीमान राजीव गांधी देश के प्रधानमंत्री थे, पंडित नेहरू से भी ज्यादा बहुमत इस सदन में आपके पास था, दोनों सदन में आपके पास था। पंचायत से पार्लियामेंट तक सब कुछ आपके कब्जे में था। आप ही आप थे, कोई नहीं था।
1988 में आपने बेनामी संपत्ति का कानून बनाया। आपको जो ज्ञान आज हुआ है, क्या कारण था कि 26 साल तक उस कानून को notify नहीं किया गया? क्या कारण था, उसको दबोचकर रखने का। अगर उस समय notify किया होता, तो जो ज्ञान आज आपको हुआ है। 26 साल पहले की स्थिति थोड़ी ठीक थी। देश के बहुत जल्दी साफ-सुथरा होने की दिशा में, एक काम कम हो जाता। वो कौन लोग थे, जिनको कानून बनने के बाद ज्ञान हुआ कि अब कानून दबाने में फायदा है। वो किस परिवार.. आप इससे बच नहीं सकते, आप किसी का नाम दे करके आप बच नहीं सकते। आपको जवाब देना पड़ेगा देश को। जो ज्ञान आज हुआ है और यह सरकार है, जिसने नोटबंदी से पहले, पहला कदम उनके खिलाफ उठाया। और मैं आज इस सदन के माध्यम से भी देशवासियों को कहना चाहता हूं, आप कितने ही बड़े क्यों न हों, गरीब के हक का आपको लौटना पड़ेगा। और मैं इस रास्ते से पीछे लौटने वाला नहीं हूं। मैं गरीबों के लिए लड़ाई लड़ रहा हूं, और गरीबों के लिए लड़ाई लड़ता रहूंगा। इस देश के गरीबी के मूल में, इस देश में गरीबी के मूल में, देश की पाथ-पाथ प्राकृतिक सम्पदा की कमी नहीं थी, देश के पास मानव संसाधनों की कमी नहीं थी, लेकिन देश में एक ऐसा वर्ग पनपा, जिन्होंने लोगों के हक लूटते रहे, उसी का नतीजा है कि देश जिस ऊंचाई पर पहुंचना चाहिए था, नहीं पहुंच पाया।
एक बात मैं कहना चाहूंगा, हम यह जानते हैं कि अर्थव्यवस्था को इस बात को कोई इंकार नहीं कर सकता है, एक सामान्तर अर्थव्यवस्था develop हुई थी। और ऐसा नहीं है ये काम भी आपके संज्ञान में पहले भी आया था। ये विषय आप ही की सरकार की, आप की कमेटियों ने भी आपको सुझाया था। जब इंदिरा जी राज करती थी तब यसवंतराव जी चौहान यह विषय ले करके उनके पास गए थे। और तब जा करके उन्होंने कहा था कि क्यों भाई कांग्रेस को चुनाव नहीं लड़ने का। आपको निर्णय गलत नहीं था, चुनाव का डर था। हमें चुनाव की चिंता नहीं है, देश की चिंता है, इसलिए हम निर्णय लिए। इसलिए हम निर्णय लिए। और यह बात निश्चित है कोई इंकार नहीं कर सकता है, कि कोई भी व्यवस्था में ‘कैश कितना, cheque को ना’, यह कारोबार develop हो चुका है। और एक प्रकार से जीवन का हिस्सा बना है, जब तक आप उसको गहरी चोट नहीं लगाओगे तब तक स्थिति से बाहर नहीं आओगे और इसलिए हमने जो फैसले किए हैं।
आपने किस प्रकार से देश चलाया है, ऐसा लगता है कि कुछ दलों के दिलों-दिमाग में चार्वाक का मंत्र उनके जिंदगी में बहुत काम आ गया है। उन्होंने चार्वाक के ही मंत्र को लेकर ही शायद और तभी जा करके कोई देश अंग्रेजी कवि के उल्लेख करते हुए यह भी कह देते थे बड़े-बड़े व्यक्ति कि मरने के बाद क्या है! क्या देखा है! अभी तो चार्वाक का तत्व-ज्ञान है। मैं उस सदन में जाऊंगा तब इसका उल्लेख detail में करूंगा, लेकिन चार्वाक कहते थे:
यवज्जीवेत्, सुखम् जीवेत्।
ऋणम् ऋित्वा, घ्रितम् पिबेत्।।
भस्मिभूतस्य देहस्य।
पुनार्गमनम् कुत:?
जब तक जियो मौज करो। जियो, जब तक जियो मौज करो। चिंता किस बात की कर्ज करो, और घी उस जमाने में यह संस्कार थे इसलिए घी कहा, भाई भगवंत मान नहीं तो और कुछ पीनो को कहते। लेकिन उस समय ऋषियों ने, महा-संस्कार थे, उन्होंने घी कि शायद आज का जमाना होता तो कुछ और पीने की चर्चा करनी पड़ती। लेकिन इस प्रकार की philosophy से कुछ लोगों को लगता है कि जब अर्थव्यवस्था अच्छी चल रही थी तो आपने ऐसे समय, ऐसा निर्णय क्यों किया? यह बात सही है। आप जानते हैं अगर आपको कोई बीमारी हो और डॉक्टर कहता है कि operation करना है, operation बहुत जरूरी है फिर भी वह कहता है, पहले भाई आपको शरीर ठीक करना पड़ेगा। Diabetes control करना पड़ेगा, ठिगना control करना पड़ेगा, सात-आठ-बीस और मशवरा, फिर बाद में operation करेगा। जब तक वह स्वस्थ नहीं होता है, operation करना पसंद नहीं करता है डॉक्टर, कितनी भी गंभीर स्थिति हो। Demonetisation के लिए यह समय इतना पर्याप्त था कि देश की अर्थव्यवस्था तंदुरुस्त थी। अगर दुर्बल होती, हम यह कतई सफलतापूर्वक नहीं कर पाते। यह तब सफल होता है, ताकि अर्थव्यवस्था मजबूत थी और इसी समय।
दूसरा इसका समय, ऐसा मत सोचिए कि हड़बड़ी में होता है। इसके लिए मोदी का अध्ययन करना पड़ेगा आपको। और आप देखिए हमारे देश में साल भर में जितना व्यापार होता है, करीब-करीब उतना ही व्यपार दीवाली के दिनों में हो जाता है। यानी 50% दीवाली के दिनों में, 50% साल भर में। एक प्रकार से पूरा उद्योग व्यापार, किसानी सब काम दिवाली के पास उसकी Peek पर पहुंच जाता है। उसके बाद natural lull period हमारे देश में हमेशा होता है। दीवाली के बाद दुकानदार भी 15-15 दिन बंद रख करके बाहर चले जाते हैं, लोग भी अपने आप घूमने जाते हैं। यह proper time था कि जबकि सामान्य कारोबार ऊंचाई पर पहुंच गया है उसके बाद अगर 15-20 दिन दिक्कत होती है और फिर 50 दिन में ठीक-ठाक हो जाएगा और मैं देख रहा हूं जो मैंने हिसाब-किताब कहा था, उसी प्रकार से गाड़ी चल रही है।
और इसलिए आप यह भी जानते हैं, आप यह जानते हैं, एक जमाना था, Income Tax Department की मन-मर्जी पर..एक समय था जब देश में Income Tax अधिकारी मन-मर्जी पड़े वहां जा करके धमकते थे और बाकी क्या होता था पुराना इतिहास कुछ भी दोहराने की जरूरत नहीं है।
नोटबंदी के बाद सारी चीजें record पर है। कहां से आया, किसने लाया, कहां रखा। अब उसमें से top नामों को technology के द्वारा, data-mining के द्वारा निकाल दिए गए हैं। अब Income Tax Office को जाना नहीं है सिर्फ SMS करके पूछना है भाई कि जरा बताई कि detail क्या है? आप देखिए किसी भी प्रकार का अफसर-शाही के बिना जिसको भी मुख्य धारा में आना है, उसके लिए एक अवसर प्राप्त हो चुका है। और में मानता हूं इससे बहुत Clean India, जैसे ‘स्वच्छ भारत’ का मेरा अभियान चल रहा है, वैसा ही आर्थिक जीवन में ‘स्वच्छ भारत अभियान’ भी बहुत तेजी से आगे बढ़ रहा है।
और बेनामी संपत्ति का कानून पास हो चुका है, notify हो चुका है। और जैसा खड्गे जी ने कहा वहीं पर सबकुछ है। अच्छा सुझाव आपने दिया है। हम भी कुछ करके दिखाएंगे। और जो भी सुन रहे हैं वो भी समझें और उसके प्रावधान बढ़ लें कि कितना बड़ा कठोर कानून है, जिसके पास भी बेनामी संपत्ति है उनसे मेरा आग्रह है अपने Charted Accountant से जरा पूछ लें कि आखिर के प्रावधान क्या है? और इसलिए मेरा सबसे आग्रह है कि मुख्यधारा में आईये देश के गरीबों का भला करने के लिए आप भी कुछ contribute कीजिए।
जहां-जहां कभी-कभी लगता है कि यह निर्णय अचानक हुआ क्या। मैं जरा जानकारी देना चाहता हूं, जिस दिन हमारी सरकार बनी, सबसे पहला काम किया कैबिनेट में, SIT बनाई। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था लंबे अरसे तक लटका पड़ा था कि विदेश के कालेधन के लिए SIT बनाओ। हमने बनाई, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था उस प्रकार बनाई। और सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा था: 26 March, 2014, Since 1947 for 65 Years nobody thought of bringing the money stays away in the Foreign Banks to the country. The Government has failed in its role for 65 Years. This Court feels that you have failed in your duty. So is the given order for the appointment of committee headed by the former judges of this Court. Three years have passed, but you have not done anything to implement the order. What have you done? Except for filing one report you have done nothing.
यह 24 मार्च, 2014 को सुप्रीम कोर्ट ने उस सरकार को कहा है। वहीं तो मैं कह रहा था वो जमाना तब आवाज उठती थी कि कितना गया। अब आवाज उठ रही है कि कितना आया और आते रहेगा। आप देखिए एक के बाद एक, एक बाद एक देखिए विदेश में जमा कालेधन के खिलाफ नया कठोर कानून बनाया। प्रोपर्टी जब्त करने की बात कही। इस बार भी बजट में एक नया कानून कही गई है। सजा भी 7 साल से 10 साल कर दी। Tax Havens जो थे मॉरीशस, सिंगापुर वगैरा उस पुराने जो नियम आप बना करके गये थे, उसको हमने बातचीत की। उनको समझाया, हमारी परिस्थितियां समझायी। उसको हम ले आये। हमने स्विटजरलैंड से समझौता किया। वो real-time information देंगे। कोई भी हिन्दुस्तानी नागरिक पैसा रखेगा तो उसका पता चल जाएगा। हमने अमेरिका सहित कई देशों के साथ इस प्रकार के समझौते किए हैं, जहां पर हमारा कोई भी भारतीय नागरिक, भारतीय मूल का व्यक्ति पैसे रखेगा, तो उसकी जानकारी भारत को मिलेगी।
उसी प्रकार से प्रोपर्टी बिक्री, 20 हजार से ज्यादा नकद नहीं, इसके चलते हमने नियम किया। Real-Estate Bill को पास किया। ज्वैलरी के मार्केट में भी 1% Excise डाली ताकि चीजों को streamline करना था। किसी को परेशान नहीं करना था।
और आप ही लोग हैं। इस देश सदन में इधर हो या उधर हो। मुझे चिट्ठियां आई हैं, जब हमने कहा कि दो लाख से ज्यादा कोई अगर Jewelry purchase करता है, तो उसके PAN Number देना होगा। मैं हैरान हूं, कालेधन और भ्रष्टाचार के खिलाफ भाषण देने वाले लोग मुझे चिट्ठियां लिखते थे कि PAN Number मांगने का नियम रद्द कर दीजिए, ताकि लोग cash money से सोना लेते रहें, गहने लेते रहें और काला बाजार चलता रहे। हम टिके रहे, उसको करके दिखाया, एक-एक कदम उठाया। मैं जानता हूं राजनीतिक फायदे के लिए कोई काम ऐसा नहीं कर सकता, वरना तो आप पहले कर लेते। यह कठिनाई है, लेकिन देश का भला करने के लिए निणर्य करने दे और गरीबों का भला करना था, इसलिए निर्णय किया।
दो लाख से ज्यादा किसी सामान पर, दस लाख से ज्यादा महंगी गाड़ी पर 1% अतिरिक्त टैक्स लगा दिया। हमने Income Text declaration scheme भी लाई। और अब तक इस scheme में सबसे ज्यादा पैसा लोगों ने declare किया। 1100 से ज्यादा पुराने काननू हमने खत्म किये। और यहां बताया गया कि आपने नोटबंदी के संबंध में कोई कहता है 150 बार, कोई कहता है 130 बार, वह सब अलग-अलग आंकड़े बोल रहे हैं, इतने नियम बदले। बहुत अच्छा याद रखते हैं।
अब मैं आपको बताना चाहता हूं यह तो ऐसा काम था, जिसमें हम जनता की कोई तकलीफ तुरंत समझने के बाद रास्ता खोजने का प्रयास करते थे। दूसरा, जिन लोगों को सालों से लूटने की आदत लगी है, वो रास्ता खोजते थे, तो हमें बंद करने के लिए कुछ न कुछ करना पड़ता था। लड़ाई का मौसम था। एक तरफ देश को लूटने वाले थे, और एक तरफ देश को ईमानदारी की तरफ ले जाने की तरफ ले जाने का मोर्चा लगा हुआ था। लड़ाई पल-पल चल रही थी। वो एक तू डाल-डाल मैं पात-पात इस प्रकार से लड़ाई चल रही थी। लेकिन जो आप लोगों का बड़ा प्रिय कार्यक्रम है, जिसको ले करके आप बड़ी पीठ थपथपा रहे हैं। वैसे उसके लिए आपको हक नहीं हैं, क्योंकि जब इस देश पर राजा-रजवाड़ों का शासन था, तब भी गरीबों के लिए राहत नाम से योजनाएं चलती थीं। उसके बाद भी हिन्दुस्तान में Food for work के नाम से कई योजनाएं। देश आजाद होने के बाद नौ प्रकार से अलग-अलग नामों से चली हुई योजना चलते-चलते-चलते उसने एक नाम लिया, जिसको MGNREGA कहते हैं। कई यात्रा करके आया हूं और हर राज्य में जहां कम्युनिस्टों की सरकार थी उन्होंने भी पश्चिम बंगाल में किया था, जहां शरद पवार की सरकार थी, महाराष्ट्र में किया था। गुजरात में भी जो कांग्रेस की सरकार थी.. हर देश में किसी न किसी ने आजादी के बाद इस प्रकार के काम किए ही किए थे। हर किसी ने किए थे, तो वो कोई नई चीज नहीं थी, लेकिन नाम नया था। लेकिन देश को और आपको खुद को भी जान करके आशचर्य होगा कि शांत रूप से इतने सालों से चली हुई योजना के बाद भी MGNREGA में 1035 बार परिवर्तन किए हैं। 1035 बार, नियम बदले गए। आप कभी अपने तो आइने में झांक करके तो देखिए। और उसमें तो लड़ाई नहीं थी। इतने बड़े दबाव में काम करना नहीं था। क्या कारण था कि MGNREGA जैसा एक, जो लम्बे अर्से से चल रहा था। उसको भी आपको आने के बाद 1035 बार परिवर्तन करना पड़ा। और इसलिए नियमों में परिवर्तन किया। Act एक बार हो गया। Act 1035 बार परिवर्तित नहीं हुआ है।
और इसलिए मैं कहना चाहूंगा, आज मुझे आपको काका हाथरसी की कविता के शब्द सुनाता हूं और मैं काका हाथरसी को याद करता हूं, तो कोई उत्तर प्रदेश के चुनाव के साथ न जोड़े। क्योंकि उनके हर चुनाव में काका हाथरसी की बातें चलती रहती थी। काका हाथरसी ने कहा था –
अंतर पट्ट में खोजिये, छिपा हुआ है खोट और काका हाथरसी ने आगे कहा है ‘मिल जायेगी आपको, बिल्कुल सत्य रिपोर्ट।’
आदरणीय अध्यक्षा जी, मैं एक बात की ओर भी ध्यान देना चाहता हूं, सरकार नियमों से चलती है, संविधानिक जिम्मेदारियों के साथ चलती है। जो नियम आपके लिए थे, वो नियम हमारे लिए भी हैं। लेकिन फर्क कार्य संस्कृति का होता है। नीतियों की ताकत भी नियत से जुड़ी हुई होती है। अगर नियत में खोट है तो नीतियों की ताकत माइनस में चली जाती है, जीरो छोड़ो, माइनस में चली जाती है और इसलिए हमारे देश में उस कार्य संस्कृति को भी समझने की जरूरत है। जब भी हम कुछ बोलते हैं यहां से यह तो हमारे समय था, यह तो हमारे समय था। तो मुझे लग रहा है मैं ही उसी पर खेलूं थोड़ा। आपके मैदान में खेलने आना पसंद करूंगा मैं। और इसलिए ऐसा क्यों हुआ। ऐसा तो नहीं है कि आपको ज्ञान नहीं था। आपको ज्ञान कल ही हुआ ऐसा थोड़ा हुआ। आपको जानकारी थी, लेकिन महाभारत में कहा इस प्रकार से–
‘जानामि धर्मम् न च मे प्रवृति: ‘जानामि अधर्मम् न च मे निवृत्ति: ।
धर्म क्या है? यह तो आप जानते हैं, लेकिन वो आपकी प्रवृत्ति नहीं थी। अधर्म क्या है वो भी जानते थे, लेकिन उसे छोड़ने का आपको सामर्थ्य नहीं था। मैं बताता हूं जी, अब मुझे कहिए – National Optical Fiber Network अगर मैं उसके लिए कुछ भी कहूंगा, तो वहां से आवाज़ उठ आई यह तो हमने शुरू किया था। मैं हमने शुरू किया था, उसी से शुरू करना चाहता हूं। अब देखिए National Optical Fiber Network, 2011 से 14 तीन साल सिर्फ 59 गांव में यह Optical Fiber Network लगा और उसमें भी last mile connectivity का प्रावधान नहीं था। Procurement भी पूरी तरह centralized था, वो तो क्या कारण है सब जानते हैं। अब आप देखिए, हमने ..पूरी कार्य संस्कृति कैसे बदलती हैं, approach कैसे बदलता है। सबसे सब राज्यों को पहले साथ लिया। Last mile connectivity मतलब स्कूल में Optical Fiber Network मिलना चाहिए, अस्पताल में मिलना चाहिए, पंचायत घर में मिलना चाहिए। इन प्राथमिकताओं को तय किया। Procurement क्या था, वो भारत सरकार के हाथ से रख करके हमने उसको decentralized कर दिया। और परिणाम यह आया कि इतने कम समय में अब तक 76000 गांवो में Optical Fiber Network, last mile connectivity के साथ पूरा हो गया।
दूसरा, अभी यहां बताया जा रहा था कल कि आप less-cash society या cash-less society के लिए बोल रहे हैं। लोगों के पास क्या हैं? मोबाइल.. मैं हैरान हूं, मैं तो 2007 के बाद से जितनी चुनाव सभाएं सुनी हैं आपके नेता गांव-गावं जा करके कहते हैं कि राजीव गांधी computer revolution लाएं, राजीव गांधी mobile phone लाए, राजीव गांधी ने गांव-गांव connectivity कर दी। आप ही का भाषण है और जब मैं आज कह रहा हूं कि उस मोबाइल का उपयोग bank में भी convert किया जा सकता है, तो कह रहे हैं कि mobile phone ही कहां हैं। यह समझ नहीं आ रहा है भई। आप कह रहे हैं कि हमने इतना कर दिया और जब मैं उसमें कुछ अच्छा जोड़ रहा हूं, तो कह रहे हैं कि वो तो है ही नहीं भई। तो यह क्या समझा रहे थे आपको जी। क्यों ऐसा कर रहे हो ? दूसरी बात है कि आप भी मानते हैं, मैं भी मानता हूं कि पूरे देश के पास सब नहीं हैं। लेकिन मान लो कि अगर 40% के पास है, तो क्या उन 40% लोगों को इस आधुनिक व्यवस्था से जोड़ने की दिशा हम सबका सामूहिक प्रयत्न रहना चाहिए कि नहीं रहना चाहिए? 60% का चलो बाद में देखेंगे। कहीं तो शुरू करें और इसका लाभ है digital currency को हम कम न आंके। आज हमारा एक-एक ATM, उसका संभालने के लिए average पांच पुलिस वाले लगते हैं। Currency को एक से दूसरे जगह ले जाने के लिए सब्जी और दूध के mobilization के लिए जितना खर्चा होता है, उससे ज्यादा उसके mobilization से खर्चा होता है। अगर हम इस बातों को समझें तो, जो कर सकते हैं, सब नहीं कर पाएंगे, हम समझ सकते हैं, लेकिन जो कर सकते हैं, उनको करने के लिए प्रोत्साहित करना यह नेतृत्व का काम होता है, किसी भी दल का हो, उससे लोगों का भला होने वाला है। अभी मुझे कोई बता रहा था एक सब्जी वाले ने शुरू किया। कल कोई मुझे रिपोर्ट दे करके गया। उसको पूछा तेरा क्या फायदा है। बोले साहब पहले क्या होता था एक तो मेरे ग्राहक Permanent थे। सबको मैं जानता था। अब मान लीजिए 52 Rupees का सब्जी लिया तो फिर वो मैडम कहती थी कि चल जेबों में पैसे नहीं है, 50 रूपये का नोट है ले लो, तो मेरे दो रूपये चले जाते थे। अब मैं भी बोल नहीं पाता था और बोलने में लगाता था हिसाब तो साल भर में मेरा आठ सौ, हजार रूपया, ये रूपया दो रूपया न देने में ही हो जाता था। बोले इसके बाद BHIM App लगाने के बाद 52 रूपया है तो 52 रूपया मिलता है। 53 रूपया है तो 53 मिलता है। 48 Rupees, 45 पैसा है तो पूरा मिलता है। बोले मेरा तो आठ सौ हजार रूपया बच गया।
देखिए चीजें कैसे बदलती हैं और इसलिए हम कम से कम आप मोदी का विरोध करें, कोई बात नहीं आपका काम भी है, करना भी चाहिए। लेकिन जो अच्छी चीजें है उसको आगे बढ़ाएं। जहां मान लीजिए गांव में नहीं है। शहरों में है तो आगे तो बढ़ाओं, उसको योगदान करो, देश का भला होगा। हमको और किसी व्यक्ति का भला नहीं है और इसलिए मैं आग्रह करूंगा कि ऐसी चीजों में हम मदद कर सकते हैं, तो करनी चाहिए।
कार्य और संस्कृति कैसे बदलती है। अब ये रोड बनाना क्या हमारे आने के बाद हुआ क्या। ये टोडरमल्ल के जमाने से चल रहा है। शेरशाह सूरी के जमाने से चल रहा है, तो यह कहना कि ये तो हमारे जवाने से था, हमारे जमाने से था। अब कहां-कहां जाओगे भाई। फर्क क्या है पिछली सरकार में प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना प्रति दिन 69 किलोमीटर होती थी। हमारे आने के बाद 111 किलोमीटर हो गयी है, यह फर्क होता है।
और और हमने रोड बनाने में Space Technology का उपयोग किया है। Space Technology से photography होती है, monitoring होता है। हमने रेलवे में Drone का उपयोग किया है। photography करते हैं, काम का हिसाब लेते हैं। कार्य संस्कृति Technology की मदद से कैसे बदलाव लाया जा सकता है।
आवास योजना, ग्रामीण आवास योजना, राजनीतिक फायदा उठाने के लिए नामों को जोड़ करके उसका जो उपयोग हुआ, वो हुआ। लेकिन फिर भी आपके समय में एक साल में, 1083000 घर बनते थे। इस सरकार में एक वर्ष में 2227000 घर बने। National Urban Renewal Mission एक महीने में 8017 घर बने। हमारी योजना से 13530 घर बने हैं।
रेलवे- पहले Broad Gauge Railway का commissioning एक साल में 1500 किलोमीटर हुआ करता था। पिछले साल यह बढ़ करके 1500 किलोमीटर से सामने 3000 किलोमीटर, double और हम 3500 किलोमीटर तक और इसलिए यह परिणाम अचानक नहीं आए। योजनाबद्ध तरीके से, हर पल, हर चीज का monitor करते-करते यही लोग, यही कानून, यही मुलाजि़म, यही फाइल, यही माहौल उसके बाद भी बदलाव लाने में तेज गति से आगे बढ़ रहें हैं। और यह अचानक नहीं होता है।
इसके लिए पुरूषार्थ करना पड़ता है और इसलिए हमारे शास्त्रों में कहा गया है –
उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः ।
न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः ।।
उद्यम से ही कार्य सिद्ध हाते हैं, न कि मनोरथो से, सोये हुए सिंह के मुख में हिरण आ करके प्रवेश नहीं करता है, उसको भी शिकार करना पड़ता है।
आदरणीय अध्यक्षा महोदया, कुछ मूलभूत परिवर्तन कैसे आते हैं। हम जानते हैं कि राज्यों के Electricity Board- DISCOM सारे राज्य संकट में हैं। तभी तो हिन्दुस्तान में लालकिले पर से इसकी चिंता की गई थी प्रधानमंत्री के द्वारा। इतनी हद तक यह हालत बिगड़ी हुई थी। पिछले दो साल में बिजली उत्पादन में क्षमता बढ़ी। Conventional Energy उसको जोड़ा गया। Transmission line उसको बढ़ाया गया, Solar Energy को लाया गया। 2014 में 2700 मेगावाट थी, आज हम उसको 9100 मेगावाट पहुंचा दिए हैं। सबसे बड़ी बात, DISCOM योजना के कारण, उदय योजना के तहत राज्यों को उस योजना जब वो सफल कर पाएंगे करीब-करीब 1 करोड़ 60 हजार से ज्यादा रकम राज्यों की तिजौरी में बचने वाली है और राज्यों के साथ जोड़ करके अगर भारत सरकार ने 1 करोड़ 60 हजार की घोषणा कर दी होती, तो चारों तरफ कहते कि वाह, मोदी सरकार ने इतना पैसा दिया। हमने योजना ऐसी बनाई कि राज्यों के खजानों में 1 लाख 60 हजार करोड़ रुपया DISCOM के द्वारा, उदय योजना के द्वारा बचत होने वाली है, जो उनके लिए विकास के काम आने वाली है और ऊर्जा क्षेत्र का जो बोझ है उस बोझ से वो बचने वाले हैं।
कोयला- आप जानते हैं कोयला जहां से निकलता है, उसके नज़दीक नहीं दिया जाता था। दूर-दूर से देखा, क्यों? तो बोले रेलवे को थोड़ा कमाई हो जाए। हमने कहा कमाल हो भई, रेलवे की कमाई के लिए इतना सारा बोलते हैं, हमने rationalize कर दिया, जहां नजदीक है उसी को वहां से कोयला मिलेगा, कोयले का खर्चा हो, उस दिशा में प्रयास किया और उसके कारण करीब-करीब कायेले में 1300 करोड़ रुपये transportation खर्च कम हुआ है।
LED Bulb- अब यह तो हम नहीं कहते कि हम LED Bulb लाए। वैज्ञानिक शोध हुई, आपने भी शुरू किया। लेकिन आपके समय वो LED Bulb करीब तीन सौ, साढ़े तीन सौ, तीन सौ अस्सी उस रुपये में चलते थे। LED Bulb से energy saving होता है हमने बड़ा mission रूप में काम उठाया और करीब-करीब इतने कम समय में पिछले आठ-नौ महीने में इस योजना को बल दिया है। इतने कम समय में 21 करोड़ LED Bulb लगाने में हमने सफलता पाई है और तेज गति से आगे बढ़ रहे हैं। और अब तक जो LED Bulb लगे हैं उसके कारण परिवारों में जो बिजली का बिल आता था, वो जो बिजली का बिल कम हुआ है, वो परिवारों में करीब-करीब 11000 करोड़ रुपयों की बचत हुई है। अगर किसी सरकार ने बजट में 11000 करोड़ बिजली उपभोक्ताओं को देने का तय किया होता, तो अखबारों में Head-Line बनती। हमने LED Bulb लगाने मात्र से 11000 करोड़ बिजली का बिल सामान्य मानव के घर में कम किया है। कार्य संस्कृति अलग होती है, तो कैसा परिवर्तन आता है इसका यह नमूना है।
यहां पर हमारे विपक्ष के नेता Scheduled Casts के बजट को ले करके भाषण कर रहे थे। लेकिन बड़ी चतुराई पूर्वक 13-14 के आंकड़ों को उन्होंने बोलना अच्छा नहीं माना। तुक्का लगाते थे 13-14 आता था अटक जाते थे। Scheduled Casts Sub-Plan कुल आवंटन 2012-13- 37113; 13-14- 41561; 16-17- 38833; 16-17 – 40920, 33.7% Increase और इस साल के बजट में 52393; और इसलिए सत्य सुनने के लिए हिम्मत चाहिए एक और मैं काम बताना चाहता हूं, ये सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाली सरकार है। भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ने के समय किस प्रकार से काम किए जाते हैं।
17 मंत्रालय के 84 योजनाएं, हमने Direct Benefit Transfer AADHAR योजना के साथ जोड़ करके उसको आगे किया और 32 करोड़ लोगों को 1 लाख 56 हजार करोड़ रूपया Direct Benefit Transfer स्कीम में दिया गया। अब उससे क्या लाभ हुआ है, और इसको समझना होगा कि किस प्रकार से हर गली-मौहल्ले में चोरी लूट की व्यवस्था रही थी। और मैं जानता हूं इतनी बारीकी से हर जगह पर चोरी लूट को रोकूंगा तो मेरे पर कितना तूफान होगा। और तब जा करके मैंने गोवा में बोला था कि मैं जानता हूं मैं ऐसे निर्णय करता हूं। मेरे पर क्या बीतेगी। मेरे को मालूम है। आज भी मालूम है। और इसमें दोबारा कहता हूं ऐसे-ऐसे बड़े लोगों को तकलीफ हो रही है और ज्यादा होने वाली है। उसके कारण मुझे अंदाजा है मुझ पर क्या जुल्म होने वाले हैं। उसके लिए तैयार हूं। क्योंकि देश के लिए, मैंने यह प्रण ले करके निकला हुआ इंसान हूं और इसलिए मैं कदम उठा रहा हूं।
PAHAL योजना हमारे यहां गैस सिलेंडर जाते थे, सब्सिडी मिलती थी, जब उसको आप AADHAR योजना से जोड़ा तो उसका leakage करीब-करीब 26 हजार करोड़ रूपये से ज्यादा leakages रूका, जिसका परिणाम यह आया कि डेढ़ करोड़ गरीब परिवारों को गैस का कनेक्शन देने हम सफल हुए हैं। आप जरा अध्ययन कर लीजिए मैं जब सदन में बोलता हूं तो जिम्मेवारी के साथ बोलता हूं। पिछले ढाई वर्षों में, फर्जी राशनकार्ड, गरीब आदमी के हक छीनने का काम, फर्जी राशनकार्ड वाले करते थे। गरीब को जो मिलना चाहिए उसको बिचौलिए अपने यहॉं फर्जी राशन कार्ड के ठप्पे रखते थे और माल चुरा लेते थे और कालेबाजारी में बेचते थे जब से हमने Technology का उपयोग किया AADHAR का उपयोग किया करीब-करीब 4 करोड़, 3 करोड़ 95 लाख, करीब-करीब चार करोड़ फर्जी राशन कार्ड पकड़े गए, उससे करीब-करीब 14 हजार करोड़, 14 हजार करोड़ इतनी रकम बिचौलिए मार खाते थे, गरीब के हक का मार खाते थे, वो मुख्य धारा में आया और गरीबों की तरफ गया।
MGNREGA- MGNREGA में AADHAR से payment दिया जाता है, direct transfer पैसा होता है करीब 94% success मिली है। और उसका परिणाम ये हुआ है कि leakages 7633 Crore Rupees, उसका leakage अब तक बच पाया है और ये हर वर्ष एक का वर्ष नहीं आने वाले हर वर्ष में बचने वाला है।
और आगे भी जो है National Social Assisting Programme (NSAP) करीब-करीब 400 करोड़ रूपया है जिसका कोई लेनदार नहीं मिल रहा है, लेकिन पैसे जाते थे कुछ तो ऐसी चीजें पायी गयीं जिस बेटी का जन्म नहीं हु,आ वो बेटी विधवा भी हो गयी और खजाने से धन भी जा रहा है। इन सब को रोकने की कार्य संस्कृति को ले करके हम चले हैं। Scholarship, ऐसे कई चीजें हैं एक मोटा-मोटा अंदाज लगाता हूँ। एक वर्ष में और हर वर्ष अभी तो मैं कह रहा हूँ शुरूआत है 49500 Crore Rupees, ये बिचौलिए के पास जाते हुए रूक गए। आप कल्पना कर सकते हैं करीब-करीब 50 हजार करोड़ रूपया जो गरीबों के हक का था वो बिचौलिए खा जाते थे corruption के नाम पर लूट के नाम पर उनको रोकने का काम उसके लिए एक बड़ी हिम्मत लगती है और वो करके दिखया है।
आदरणीय अध्यक्षा जी, मैं कार्य संस्कृति का एक उदाहरण भी देना चाहता हूँ किसानों की बड़ी-बड़ी बातें करते हैं। हर वर्ष राज्यों के मुख्यमंत्री भारत सरकार को इस बात की चिट्ठी लिखते थे कि हमें यूरिया मिलना चाहिए जब मैं मुख्यमंत्री था तब यह लिखता रहता था और यूरिया पाने में बहुत बड़ी दिक्कत होती थी। मैं आज बड़े संतोष के साथ कहता हूँ कि पिछले दो साल से किसी मुख्यमंत्री को यूरिया के लिए चिट्ठी नहीं लिखनी पड़ी। कहीं यूरिया के लिए कतार नहीं लगी है, कहीं यूरिया के लिए लाठीचार्ज नहीं हुआ है, लेकिन ये बात हम भूले नहीं पुराने अख़बार निकाल दीजिए, किसानों को यूरिया पाने के लिए कितनी तकलीफ होती थी। अब मुझे बताइए नीम-कोटिंग, नीम-कोटिंग इसका ज्ञान सिर्फ हमी को है क्या ? क्या आप को नहीं था क्या ? आपको था, आपने 5 अक्टूबर 2007 यूरिया नीम-कोटिंग की चर्चा आपके Group of Ministers के द्वारा principally approved हुई है, 5 अक्टूबर 2007 से ले करके क्या हुआ? करीब-करीब छह साल! एक आपने cap लगाई 35%, उससे ज्यादा नहीं नीम-कोटिंग करना, आप 100% नहीं करते हैं उसका कोई लाभ ही नहीं होता है क्योंकि यूरिया चोरी होता है कारखानों में चला जाता है किसान के नाम पर subsidy के bill कटते हैं लेकिन किसान को लाभ नहीं मिलता था। यूरिया का दूसरा दुरूपयोग होता था synthetic-milk बनाने में और उसके कारण गरीब बच्चों की जिंदगी के साथ खेला जाता था। यूरिया को 100% नीम कोटिंग किया आपने निर्णय किया था, छह साल में आपने सिर्फ 20%, 35% cap लगाने के बाद 35% भी नहीं पहुँच पाए, सिर्फ 20%, नीम-कोटिंग किया। हमने आ करके इस बात को हात में लिया और 188 देश, आपका छह साल, मेरा छह महीना हिंदुस्तान में 100% नीम कोटिंग यूरिया कर दिया, imported यूरिया को भी नीम-कोटिंग कर दिया और उस नीम-कोटिंग का लाभ, इसका हमने सर्वे करवाया यानि की आप की कार्य संस्कृति और हमारी कार्य संस्कृति में फर्क इतना है नीम-कोटिंग की बात आती है आप खड़े हो जाते हो कि ये तो हमारे जमाने का है तो ये आप के जमाने को आपके मैदान में मैंने खेलना तय किया है इसलिए मैं खेल करके दिखाता हूँ कि आप का हाल क्या है? नीम कोटिंग का अध्ययन हमने करवाया। Agriculture Development and Rural Transformation Centre उन्होंने तो analysis करके Report दिया है, किसानों का कितना भला हो रहा है देखिए। धान के उत्पादन में 5 प्रतिशत वृद्धि, गन्ने के उत्पादन में 15 प्रतिशत वृद्धि, आप कल्पना कर सकते हैं कि किसानों को इसके कारण कितना खर्चा बच रहा है।
किस प्रकार से आदरणीय राष्ट्रपति जी ने हम सबसे एक आह्वान किया है कि लोक सभा और विधान सभा के चुनाव साथ-साथ होने की दिशा में सोचने का समय आ गया है। इसको राजनीतिक तराजू से न तौला जाए, तत्कालीन हर किसी को थोड़ा बहुत नुकसान होगा हर किसी को थोड़ा बहुत होगा, लेकिन इस विषय पर गंभीरता से सोचन की आवश्यकता है। आज हर वर्ष, पॉंच-सात, राज्यों में चुनाव होते ही रहते हैं। एक करोड़ से ज्यादा सरकारी मुलाजि़म कभी न कभी चुनावों में लगे रहते हैं। सबसे ज्यादा नुकसान शिक्षा क्षेत्र से जुड़े हुए हमारे अध्यापकों प्रध्यापकों को चुनाव के कामों में जाना पड़ता है। भविष्य के पीढि़यों का नुकसान हो रहा है, बार-बार चुनाव के कारण हो रहा है और उसके कारण खर्च में भी बहुत बड़ी वृद्धि हो रही है। और इसलिए 2009 का जो लोक सभा चुनाव हुआ तो 1100 करोड़ रूपये का खर्च हुआ और 2014 का लोक सभा का चुनाव हुआ 4000 करोड़ से भी ज्यादा का हुआ। आप कल्पना कर सकते हैं इस गरीब देश पर ये गरीब देश पर कितना बोझ पड़ रहा है। आज कानून व्यवस्था की दृष्टि से अनेक नई-नई चुनौतियॉं आ रही हैं। प्राकृतिक संकटों के कारण भी security force की मदद लगती है, दुनिया भर में फैल रहा आतंकवाद और दुश्मन देश जिस प्रकार से हरकते कर रहे हैं हमारी security force को उसमें ताकत लगानी पड़ रही है। इतना बड़ा काम बढ़ता जा रहा है। दूसरी तरफ security forces की ज्यादातर शक्ति चुनावी प्रबंधों में लगानी पड़ रही है उनको भेजना पड़ रहा है। इन संकट को हम समझें और एक दीर्घ दृष्टा के रूप में कोई एक दल इसका निर्णय नहीं कर सकता है। सरकार इसका निर्णय कतई नहीं कर सकती है, लेकिन अनुभव के आधार पर जिम्मेवार लोगों ने मिल करके इस समस्या का समाधान हमने खोजना होगा, हमें रास्ता खोजना होगा और राष्ट्रपति जी ने जो चर्चा निकाली है उस चर्चा को हमने आगे बढ़ाना चाहिए। उनका धन्यवाद करते हुए उनके धन्यवाद के लिए हम लोगों ने प्रयास करना चाहिए।
आदरणीय अध्यक्षा जी, हमारे देश की ग्रामीण अर्थ-कारण को मजबूत किए बिना देश का अर्थ-कारण आगे नहीं बढ़ता है। मैं हैरान हूँ हमारे विपक्षी नेता को राष्ट्रपति जी के संबोधन में दलित, पीडि़त, शोषित, वंचित, युवा मजदूर इनके उल्लेख से भी परेशानी हुई है क्या इस देश में दलित, पीडि़त, शोषित, वंचित इन लोगों को इन लोगों का क्या उन लोगों का राष्ट्रपति के भाषण में स्थान नहीं होना चाहिए। उससे पीड़ा होनी चाहिए मैं हैरान हूँ कि ऐसी पीड़ा क्यों होनी चाहिए। हमने कृषि सिंचाई योजना पर बल दिया है क्योंकि मैं मानता हूँ कि अब आप देखिए MGNREGA में कैसा मूलभूत परिवर्तन आया है आपने तीन साल में सिर्फ 600 करोड़ रूपया बढ़ाया था। हमने आ करके दो साल में 11000 करोड़ रूपया बढ़ा दिया है। क्यों हमने उसमें space technology का उपयोग किया है, हमने उसके अंदर zero taking की व्यवस्था की है और हमने बल दिया है बल दिया है कि तालाब तालाब पर बल दिया जाएगा कि सिंचाई चाहिए सबसे बड़ी बात है मत्स्य पालन के लिए भी छोटे-छोटे तालाब चाहिए। गरीब व्यक्ति कता सकता है और उसके कारण करीब 10 लाख से ज्यादा तालाब बनाने का संकल्प ले करके हम चल रहे हैं और पिछले बार भी हमने तालाब की ओर बल दिया था। उसी से हमारे जो किसान हैं उनको एक बहुत बड़ा लाभ होने की संभावना है। monitoring की व्यवस्था है zero taking के कारण monitoring की व्यवस्था है उसका भी लाभ होगा। और space technology सेटेलाइट के अंदर बहुत चीजें होने के कारण भी हम उसका उपयोग नहीं किए हमने सेटेलाइट छोड़ करके अख़बारों सुरखियों में जगह बना लिया। ये सरकार है जिसने लगातार भरपूर प्रयास किया है और उसको भी आगे बढ़ाने के लिए काम करें।
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना- फसल बीमा पहले भी थी लेकिन फसल बीमा लेने के लिए किसान पहले तैयार नहीं था। फसल बीमा पहले भी थी लेकिन किसान के हकों की रक्षा नहीं होती थी। मैं चाहुँगा हम सब सार्वजनिक जीवन में काम करने वाले लोग हैं। राजनीतिक दल के सिवाय भी समाज के प्रति हमारी एक जिम्मेवारी है। इस सदन के सभी लोग प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का अध्ययन करें और हमारे इलाके के किसानों को कैसे मदद मिल सकती है इसके लिए इसका फायदा पहुँचाएं। पहली बार बुआई न हुई हो तो प्राकृतिक आपदा के कारण तो भी वो बीमा का हकदार बना है और फसल काटने के बाद भी अगर 15 दिन के अन्दर-अन्दर कोई और आपदा आयी तो भी वो फसल बीमा का हकदार बने, ये निर्णय छोटा नहीं है और इसलिए ये हम सब का दायित्व बनता है कि हम हमारे किसानों को ये जो लाभ मिला है उस राज्य को हम पहुँचाएं।
Soil Health Card- राजनीतिक मदभेद हो सकता है लेकिन अपने इलाके के किसानों को Soil Health Card समझाइए। उनका फायदा होगा उनकी लागत कम हो जाएगी। सही भूमि पर सही फसल से उपयुक्त लाभ होगा। ये सीधा-सीधा विज्ञान है, उसमें राजनीति करने की कोई जरूरत नहीं है। इसको हमें आगे बढ़ाना चाहिए और उसमें मैं तो चाहुँगा छोटे-छोटे Entrepreneur आगे आएं खुद अपनी Private Lab बनाएं और वे खुद Certify Labs के द्वारा धीरे-धीरे गॉंवों में भी एक नए रोजगार का क्षेत्र भी खुले उस दिशा में हमें काम करना चाहिए।
आदरणीय अध्यक्षा महोदया, हमने और भी अनेक विषयों यहॉं पर युवाओं के लिए चर्चा हुई रोजगार के अवसर। मुद्रा योजना से करीब-करीब दो करोड़ से ज्यादा लोगों को बिना कोई गारंटी जो धन दिया गया है या तो वह खुद अपने पैरों पर खड़ा हुआ है या पहले से था तो ये एक से अधिक व्यक्ति को रोजगार देने की ताकत आयी है। हम लोग, हम लोगों की यही सोच रही, जब तक हम देश में रोजगार के अवसर नहीं बढ़ाएगें हमारी नीतियॉं वो होनी चाहिए कि हर जगह पर उसके रोजगार की संभावना बढ़े और हमने उस नीति को अपनाया, Skill Development पर बल दिया है और उसका लाभ है कि हमारे यहॉं कृषि क्षेत्र...ये प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना ये प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना जब लागू कर रहे हैं तो उस काम में लोगों को रोजगार मिलेगा की नहीं मिलेगा? हम लोगों को ऊर्जा गंगा योजना के साथ पूर्वी भारत को गैस पाइप लाइन से जोड़ने का एक बड़ा अभियान चलाया है। सैकड़ों किलोमीटर का गैस पाइप लाइन लगने वाला है क्या उसमें नौ जवानों के रोजगार की संभावना पड़ी है की नहीं पड़ी है?
और इसलिए विकास का वह दिशा हो जिसमें नौजवानों को रोजगार मिले हमने अभी Textile में, जूतों के क्षेत्र में अनेक Initiative लिए हैं, जिसके कारण अनेक लोगों को नये रोजगार और नये-नये क्षेत्रों में रोजगार की संभावना हुई है । देश के छोटे उद्योगों को बढ़ावा देना बहुत जरूरी है, इस बजट में भी बहुत महत्त्वपूर्ण फैसले किए हैं और छोटे-छोटे उद्योगों को जितना बल मिलेगा उसके कारण हमारे देश में रोजगार की संभावनाएं बढेगी।
‘Zero Defect Zero Effect’ ये हमारे Production का criteria रखें तो हम दुनिया के Market को भी capture कर सकते हैं और हमारे छोटे उद्योग-कारों की export करने की ताकत होती है बड़े-बड़े उद्योग-कारों को छोटे-छोटे पूरजे लगते हैं वो छोटे-छोटे कारखानों से मिलते हैं और बहुत बड़ा Engineering की दुनिया में हम miracle कर सकते हैं। और इसलिए सरकार ने और अभी बजट में जो योजना लाए हैं, नए बजट में उसका लाभ 96% उद्योगकारों को मिलने वाला है, 96%, 4% जो बड़े लोग हैं वो बाहर रह गये, लेकिन 50 करोड़ से कम वाले करीब 96% हैं उन सबको फायदा मिल रहा है और बहुत बड़ा फायदा मिल रहा है। उसके कारण रोजगार के लिए बहुत बड़ी संभावनाएं बढ़ने वाली है।
Surgical Strike- मैं हैरान हॅूं अपने सीने पर हाथ रख करके पूछिए Surgical Strike के पहले 24 घंटे राजनेताओं ने कैसे-कैसे बयान दिए थे, कैसी भाषा का प्रयोग किया था लेकिन जब देखा कि देश का मिज़ाज अलग है, उनको अपनी भाषा बदलनी पड़ी और मैं आज आपसे आग्रह करता हॅूं, ये बहुत बड़ा निर्णय था और उस निर्णय को कोई मुझे पूछता नहीं है, नोटबंदी में तो पूछता है कि मोदी जी secret क्यों रखा? Cabinet को क्यों नहीं बताया! ऐसा पूछते हैं। Cabinet को भी नहीं बताया! Surgical Strike के संबंध में कोई नहीं पूछ रहा है। भाइयों और बहनों! हमारे देश की सेना का, हमारे देश की सेना उसके जितने गुणगान करें, हमारे देश की सेना का जितना गुणगान करें उतना ही कम है और इतने बड़े फलक में इतनी सफल Surgical Strike की है surgical strike आपको परेशान कर रही है मैं जानता हूँ। Surgical Strike आप को परेशान कर रहीं है और इसलिए Surgical Strike आप की मुसीबत ये है कि Public में जाकर बोल नहीं पाते हो अंदर पीड़ा अनुभव कर रहे हो, ये आप की मुसीबत है। लेकिन आप मान के चलिए ये देश ये देश, हमारी सेना इस राष्ट्र की रक्षा के लिए पूरी सामर्थ्यवान है पूरी शक्तिवान है।
आदरणीय अध्यक्षा महोदया, मुझे विश्वास है कि हम इस सदन में संवाद हो नए-नए शोध हो, नए-नए विचारों को रखा जाए क्योंकि हम लोग तो ज्ञान के पुजारी हैं विचारों को स्वागत करने वाले लोग हैं, जितने नए विचार मिलेगें किसी भी दिशा में से विचार आएं जरूरी नहीं की विचार इसी दिशा में आएं, इसी दिशा में विचार आए उत्तम विचारों का स्वागत है क्योंकि हमने सब मिल करके ultimately हम सब का उद्देश्य है हमारे देश को आगे बढ़ाना, ultimately हम सब का उद्देश्य है देश को बुराइयों से मुक्त कराना, ultimately हमारा उद्देश्य है इस देश को नयी ऊँचाइयों पर ले जाना। और विश्व के अंदर एक अवसर आया है ऐसे अवसर बहुत कम आते हैं। आज की जो विश्व की व्यवस्था है उसमें भारत के लिए एक अवसर आया है इस अवसर का अगर हम फायदा उठाएं और एक स्वर से एक ताकत के साथ हम दुनिया के सामने प्रस्तुत होगें। मुझे विश्वास है विश्व में भी जो सपना देख करके हमारे पूर्वज चले थे उसको हम पूरा कर सकते हैं।
आदरणीय अध्यक्ष महोदया, आपने मुझे समय दिया सदन ने मुझे सुना इसके लिए मैं आपका आभारी हूँ और मैं फिर एक बार आदरणीय राष्ट्रपति जी को हृदय से अभिनंदन करते हुए मेरी बात को विराम देता हूँ, बहुत-बहुत धन्यवाद!
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अतुल तिवारी/ अमित कुमार / तारा / सोनिका / प्रजापति
(Release ID: 1482081)
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