बॉन्ड और बैटमैन की ज़बरदस्त कामयाबी के पीछे के एसएफएक्स के माहिर क्रिस कॉर्बोल्ड ने इफ्फी में अपनी कला के बारे में खुलकर बात की
डूबता पलाज़ो, हॉलवे फाइट और यादगार ट्रक फ्लिप को दर्शकों के लिए समझाया गया
कॉर्बोल्ड ने राजामौली की फिल्मों के बारे में बात की और उनकी फिल्मों के दृश्यों की खूबसूरती की प्रशंसा की
कला अकादमी के खचाखच भरे हॉल में, अकादमी पुरस्कार विजेता और स्पेशल इफेक्ट्स के माहिर क्रिस्टोफर चार्ल्स कॉर्बोल्ड ओबीई ने आज सिनेमाई दुनिया का सबसे अनोखा अनुभव पेश किया। एक साक्षात्कार सत्र में, कॉर्बोल्ड ने सिनेमा के दृश्यों की बारीकियों पर गहराई से बात की और दर्शकों को उस श्ख्सियत से रुबरू कराया, जिसने जेम्स बॉन्ड की दुनिया को पलट कर रख दिया, बैटमैन के ट्रक को ही पलट दिया और क्रिस्टोफर नोलन के लिए भौतिकी के नियमों को ही बदल दिया। ‘बॉन्ड से बैटमैन तक: एसएफएक्स, स्टंट और दृश्य’ शीर्षक वाले साक्षात्कार सत्र के दौरान दशकों की फिल्म निर्माण की कला का एक शानदार और रोमांच से भरा सफर देखने को मिला।
सत्र की शुरुआत फिल्म निर्माता रवि कोट्टाराक्कारा द्वारा अपने फ़ोन को मज़ाकिया अंदाज़ में उठाकर अचूक बॉन्ड थीम बजाने से हुई। उन्होंने कहा कि सिर्फ़ यह धुन ही 15 बॉन्ड फ़िल्मों की पहचान के लिए काफ़ी है। इसके बाद उन्होंने कॉर्बोल्ड, जिन्होंने तीन बैटमैन फ़िल्मों और अकादमी पुरस्कार विजेता 'इंसेप्शन' में स्पेशल इफेक्ट्स के पीछे अहम भूमिका निभाई थी, उन्हें सम्मानित किया। प्रसिद्ध आलोचक नमन रामचंद्रन द्वारा संचालित इस सत्र ने जल्द ही एक रोमांचक सा माहौल बना दिया, जो जिज्ञासु, ऊर्जावान और ब्लॉकबस्टर सिनेमा की अनूठी कहानियों भरपूर था।

अपनी कला के दर्शन के बारे में पूछे जाने पर, कॉर्बोल्ड ने बिना किसी हिचकिचाहट के जवाब दिया:
“मैं हमेशा जितना हो सके, व्यावहारिक रूप से काम करता हूँ।” उन्होंने व्यावहारिक और डिजिटल प्रभावों के बीच टकराव के शुरुआती दिनों को याद किया, लेकिन साथ ही यह भी बताया कि कैसे दोनों टीमें अब बेहद खूबसूरती से एक-दूसरे का पूरक बनना सीख गई हैं। उन्होंने कहा, “दोनों विभागों को एहसास हुआ कि वे एक-दूसरे की मदद कर सकते हैं।” साथ ही ये भी कहा कि आज के सिनेमा के बेहतरीन पल वो हैं, जो दोनों के सहज मिश्रण से बने हैं।
नोलन स्कूल ऑफ़ प्रिसिज़न के अंदर का यथार्थ
क्रिस्टोफर नोलन के साथ चार फ़िल्मों में काम कर चुके कॉर्बोल्ड ने निर्देशक के तौर पर नोलन के वास्तविक तत्वों के इस्तेमाल में अटूट विश्वास का ज़िक्र किया। जब भी संभव होता, नोलन व्यावहारिक क्रिया प्रणाली पर ही भरोसा जताते थे, जिनमें असली कारें, असली दुर्घटनाएँ, असली संरचनाएँ शामिल होती थीं। उन्होंने बताया, " पहले हम इसे वास्तविकता में शारीरिक तौर से शूट करते हैं। फिर डिजिटल टीम इसे बेहतर बनाने के लिए काम करती है।"

इस दौरान दर्शकों को 'कैसीनो रोयाल' में डूबते पलाज़ो से लेकर, 'इन्सेप्शन' में हॉलवे फाइट और 'द डार्क नाइट' में कभी ना भूलने वाला ट्रक फ्लिप तक, दृश्यों और परदे के पीछे की तैयारियों की वीडियो क्लिप दिखाई गईं। हर क्लिप ने विशाल रस्सियां डिज़ाइन करने, घूमने वाले गलियारे बनाने, हेलीकॉप्टरों को सटीक रास्तों पर चलने के लिए प्रोग्राम करने और बेहद खतरनाक स्टंट के लिए वाहनों की इंजीनियरिंग के विस्तृत किस्से बयां किए।
इन्सेप्शन हॉलवे फाइट के बारे में, कॉर्बोल्ड ने कहा: "मैंने पहले भी घूमने वाले कमरे बनाए थे, लेकिन इसके लिए लंबे गलियारे चाहिए थे। प्रति मिनट तीन चक्करों से ज़्यादा की कोई भी रफ्तार किसी को गिरा सकती थी। नोलन इसकी रफ्तार को बढ़ाना चाहते थे, और किसी तरह, हमने इसे कर दिखाया"। डार्क नाइट ट्रक फ्लिप के बारे में, उन्होंने हँसते हुए कहा: "मैंने उन्हें समझाने की कोशिश की, कि हम असली ट्रक नहीं पलट सकते। लेकिन नोलन नहीं माने और आखिरकार, हमने असली ट्रक ही पलट दिया।"
सटीकता, परीक्षण और सुरक्षा सर्वोपरि
कॉर्बोल्ड ने ज़ोर देकर कहा कि पर्दे पर दिखने वाले हर शानदार पल के पीछे अनगिनत घंटों की कड़ी तैयारी होती है। उन्होंने कहा, "हम अपने सिस्टम का कम से कम 25 बार परीक्षण करते हैं। हम हर संभावित खामी, हर आकस्मिकता पर विचार करते हैं।" अभिनेताओं की सुरक्षा के बारे में, वे अडिग थे: "मैं चाहता हूँ कि मेरे अभिनेता सहज और आत्मविश्वास से भरे हों। हम उनकी सुरक्षा और आराम के लिए अंदरूनी हिस्सों की व्यवस्था करते हैं, वाहनों में अग्नि-सुरक्षा प्रणालियाँ लगाते हैं।"
उन्होंने बताया कि उनके सेट पर कई विभागों के बीच समन्वय कितना ज़रूरी है। "सब लोग एक साथ बैठते हैं। किसी को कोई सरप्राइज़ नहीं मिलना चाहिए। सभी को एकदम सटीक तौर पर पता होना चाहिए कि क्या होने वाला है।" नियंत्रित विस्फोटों के बारे में बात करते हुए कॉर्बोल्ड की आँखें खिल उठीं, जो उनके लंबे वक्त की इच्छाओं में से एक है। "हर चीज़ को मिलीसेकंड के स्तर पर तय किया होता है। एक कम्प्यूटरीकृत विस्फोट प्रणाली हर विस्फोट को ठीक उसी समय ट्रिगर करती है, जब उसे ट्रिगर करना चाहिए।"
डिजिटल तकनीक, राजामौली और भविष्य पर
बेबाकी से बात करते हुए, कॉर्बोल्ड ने याद किया कि कैसे उन्हें भी एक बार डर लगा था, कि डिजिटल इफेक्ट के चलते उनके काम का मूल्य कम हो जाएगा। उन्होंने कहा, "ऐसा नहीं हुआ, क्योंकि डिजिटल एक साधन होना चाहिए, न कि पूरी प्रक्रिया"। उन्होंने भारतीय फिल्म निर्माता एस.एस. राजामौली की प्रशंसा की और उनकी फिल्मों को "देखने में अद्भुत" बताया और आगामी फिल्म 'वाराणसी' के बारे में भी उत्साह से पूछा।

उन्होंने यह भी बताया कि अब उन्होंने निर्देशन के लिए एसएफएक्स सुपरविज़न से दूरी बना ली है और वे भारत में आधारित कहानियाँ दर्शाना पसंद करेंगे। कॉर्बोल्ड ने महत्वाकांक्षी रचनाकारों के लिए एक संदेश के साथ अपनी बात खत्म की: "व्यावहारिक प्रभाव हमेशा रहेंगे। हर मुश्किल को पार करना और निर्देशक के नज़रिये को पर्दे पर लाना, वो भी तब जब परिस्थितियाँ आपके खिलाफ हों, एक सुखद अनुभव है।"
इस सत्र के ज़रिए जो उभर कर आया, वह न केवल जाने माने स्टंटों का मेला था, बल्कि एक गहरी बात भी थी कि कैसे सहज ज्ञान, यांत्रिकी, सहयोग और रचनात्मकता मिलकर कभी ना भूलने वाले सिनेमाई पलो को बुन देते हैं। इफ्फी के दर्शकों के लिए, यह एक दुर्लभ मौका था ये देखने का, कि किस तरह अपनी सीमाओं से आगे जाकर फिल्म इतिहास के कुछ सबसे यादगार दृश्यों को कैसे बुना गया।
इफ्फी के बारे में
1952 में शुरू हुआ भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (इफ्फी) दक्षिण एशिया के सबसे पुराने और सबसे बड़े सिनेमा उत्सव के रूप में आज भी प्रतिष्ठित स्थान रखता है। राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम (एनएफडीसी), सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार और गोवा मनोरंजन सोसायटी (ईएसजी), गोवा सरकार द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित, यह महोत्सव एक वैश्विक सिनेमाई शक्ति के रूप में विकसित हुआ है, जहाँ पुनर्स्थापित क्लासिक फ़िल्मों का साहसिक प्रयोगों के साथ मिलना होता है, और दिग्गज कलाकार, पहली बार आने वाले हुनरमंद कलाकारों के साथ मंच साझा करते हैं। इफ्फी को वास्तव में शानदार बनाने वाला इसका शानदार सिनेमा की विधाओं का सम्मिश्रण है- अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताएँ, सांस्कृतिक प्रदर्शनियाँ, मास्टरक्लास, श्रद्धांजलि और ऊर्जावान वेव्स फिल्म बाज़ार, जहाँ विचार, सौदे और सहयोग उड़ान भरते हैं। 20 से 28 नवंबर तक गोवा की शानदार झिलमिलाते तटीय इलाके में आयोजित, 56वाँ संस्करण भाषाओं, शैलियों, नवाचारों और आवाज़ों की एक चकाचौंध भरी श्रृंखला का वादा करता है, जहां विश्व मंच पर भारत की रचनात्मक प्रतिभा का एक शानदार उत्सव देखने को मिलता है।
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