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जहां जंगल अपनी जगह बनाए हुए है: ‘वन्या’ शब्दों से परे प्यार की दास्तान


‘चौक यूनिवर्सिटी का वाइस चांसलर’ प्रसिद्ध लेखक अमृतलाल नागर की ज़िंदगी और विरासत का उत्सव

“ज़िंदगी लैला है, उसे मजनू की तरह प्यार करो…”

यह लाइन किसी क्लासिक हिंदी नाटक के शुरुआती संवाद की तरह कमरे में गूंजती है जो बोल्ड, काव्यमय और लार्जर दैन लाइफ़ नाटक है। यह 20वीं सदी के सबसे प्रसिद्ध हिंदी लेखकों में से एक, पद्मभूषण अमृतलाल नागर की मशहूर कहावत है। वे ऐसे इंसान थे जिन्होंने ज़िंदगी को सिर्फ़ जिया ही नहीं बल्कि उन्होंने उसे निभाया, उसे संजोया और उसे हमेशा उत्सव में बदल दिया।

और आज IFFI-2025 में, वह उत्सव दो ज़बरदस्त कहानियों के साथ सामने आया, जब पद्मभूषण अमृतलाल नागर’ की ‘वन्या’ और ‘चौक यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर – टीमें एक ज़बरदस्त, दिल को छू लेने वाले संवाददाता सम्मेलन  के लिए एक साथ आईं, तो ऐसा लगा जैसे दो अलग-अलग दुनिया एक सिनेमाई मंच पर मिल रही हों।

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एक तरफ था भावुक, प्रकृति से भरा ड्रामा ‘वन्या’ , जिसमें निर्देशक बदिगर देवेंद्र और अभिनेत्री मेघना बेलावाड़ी जंगल के साथ एक मानव  के अटूट रिश्ते को दिखाने के अपने सफ़र को साझा कर रहे थे। दूसरी तरफ, निर्देशक सविता शर्मा नागर और राजेश अमरोही ने नागर जी की विरासत में जान डाल दी। नागर जी ऐसे साहित्यकार थे जिनके हास्य, इंसानियत और सांस्कृतिक गहराई ने पीढ़ियों को प्रभावित किया।

महान साहित्यकार स्क्रीन पर जीवित हो रहा है

निर्देशक सविता शर्मा नागर और राजेश अमरोही ने प्रसिद्ध लेखक अमृतलाल नागर पर बनी वृत्त चित्र शैली की अपनी फ़िल्म के बारे में जोश से बात की। उन्होंने कहा कि अमृतलाल नागर ऐसे साहित्यकार थे जो “अपने आप में एक उत्सव” थे।

सविता शर्मा नागर ने बताया, “यह फ़िल्म ज़िंदगी की कभी न खत्म होने वाली खुशियों को, नागर जी के जीने के तरीके को – बहुत ही बारीक और मनमोहक तरीके से सेलिब्रेट करती है। उनका ह्यूमर, उनकी सादगी, उनकी गहराई… सब कुछ स्क्रीन पर दिखाने लायक था।”

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उन्होंने बताया कि टीम ने नागर जी की ज़िंदगी के पलों पर शोध करने और उन्हें फिर से जीवंत करने में पाँच वर्ष लगाए। बहुत कम फ़ोटोग्राफ़ होने के कारण, उन्होंने यादों, साक्षात्कार और साहित्यिक अभिलेखागारों  पर भरोसा किया और कहानी के सात मसौदे बनाए। उन्होंने कहा, “हम अपने लेखक को उतना सेलिब्रेट नहीं करते। यह फ़िल्म महान साहित्यकार को हमारी श्रद्धांजलि है।”

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सह- निर्देशक राजेश अमरोही ने कहा, “अमृतलाल नागर ने सिर्फ़ मनोरंजन के लिए नहीं लिखा। उन्होंने हमारे देश के सांस्कृतिक और सामाजिक इतिहास को प्रलेखित किया। वे आधुनिक भारतीय साहित्य में सबसे अधिक बहुपक्षीय लोगों में से एक हैं।”

उनकी फ़िल्म में रीक्रिएटेड घटनाओं और क्रिटिक्स, राइटर्स और नागर के अपने परिवार के साथ बड़े साक्षात्कार का इस्तेमाल करके एक ऐसे आदमी की ज़िंदगी को दिखाया गया है, जिसका साहित्य आज भी समाज को हैरान करने वाली अहमियत के साथ दिखाता है।

वन्या: जंगल और दुनिया के बीच एक लड़ाईऔर उनके बीच का प्यार

मंच साझा करते हुए निर्देशक बदिगर देवेंद्र ने अपनी कन्नड़ फीचर फिल्म वन्या पेश की—यह एक बुज़ुर्ग आदमी की कहानी है जो जंगल की झोपड़ी छोड़ने से मना कर देता है, लेकिन सिस्टम झोपड़ी खाली कराने की कोशिश कर रहा है। देवेंद्र ने फिल्म को “शहर की ज़िंदगी की शोर-शराबे वाली चिंताओं और जंगल की खामोश, दिल को छू लेने वाली सच्चाइयों के बीच का फर्क” बताया।

 

बूढ़े आदमी की बेटी की भूमिका निभाने वाली अभिनेत्री मेघना बेलावाड़ी ने अपने किरदार की भावुक मुश्किलों के बारे में बताया। उन्होंने कहा, “वह एक्सप्रेसिव नहीं है। वह चिड़चिड़ी, उलझी हुई है, और अपने पिता को मनाने के लिए भावुक जाल में फंस जाती है। भले ही वह कभी नहीं कहता कि वह उससे प्यार करता है, लेकिन वह दिखाता है—और उस शांत कोमलता ने मुझे बहुत छू लिया।”

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अपने युवा सह-अभिनेता के साथ काम करने के बारे में बात करते हुए, उन्होंने कहा:

“पर्दे के पीछे, मैंने यह सुनिश्चित किया कि वह सुरक्षित महसूस करे—उसे गुदगुदाया, उसके बालों से खेला—ताकि ऑन-स्क्रीन बॉन्ड नेचुरल और आसान लगे।”

टीम ने जंगल के अंदर अपने चैलेंजिंग लेकिन रोमांचक शूट के बारे में बताया, जो केवल तभी होती थी जब दिन में धूप खिली हो। जंगल जंगली जानवरों से घिरा हुआ था। मेघना ने बताया, “लेकिन स्थानीय  समुदाय ने हमें अपनाया। महीनों के प्री-प्रोडक्शन विज़िट से बना उनका भरोसा, फिल्म की रीढ़ बन गया।”

मेघना ने आखिर में कहा, “मैं खुद को कोई बड़ी  अभिनेत्री नहीं मानती। मैंने बस निर्देशक के विज़न पर भरोसा किया—उनकी स्पष्टता, उनके इमोशनल मैप पर—और उनकी बनाई दुनिया में कदम रखा।”

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पीके/केसी/पीके


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