उप राष्ट्रपति सचिवालय
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कर्नाटक वैभव साहित्य एवं सांस्कृतिक महोत्सव के तृतीय संस्करण के उद्घाटन समारोह पर उपराष्ट्रपति के संबोधन का पाठ (अंश)

Posted On: 07 FEB 2025 6:41PM by PIB Delhi

नमस्कारा,

जया भारत जननीय तनुजाते, जया हे कर्नाटक मते।

वैभव, लिटरेचर और कल्चरल फेस्टिवल के द्वितीय संस्करण में आकर मैं अभिभूत हूँ। ऐसे कार्यक्रम हमें हमारी 5000 सांस्कृतिक विरासत का बोध कराते हैं। हमें प्रभावित करते हैं कि हम भारतीय हैं। भारतीयता हमारी पहचान है, राष्ट्रवाद हमारा प्रेम है, राष्ट्रहित सर्वोपरि है। राष्ट्रहित से ऊपर कोई हित नहीं है।

राष्ट्रवाद गंगा की तरह पवित्र, निर्मल जिसमें सब नदियों का संगम हो जाता है। राष्ट्रवाद मानव शरीर की तरह है, जिसका हर अंग महत्वपूर्ण है। राष्ट्रवाद में सभी समाहित हैं। हमारी संस्कृति, जो दुनिया में बेमिसाल है, 5000 साल पुरानी है। वह हमें एक ही संकेत देती है, इसमें सब कुछ समाहित है। ऐसी संस्कृति का सृजन करना हमारा परम कर्तव्य है।

आज के परिदृश्य में यह और भी बहुत जरूरत है। इसके दो कारण हैं—
एक, गत दशक में भारतवर्ष, जहाँ दुनिया की एक-छठी आबादी रहती है, ने अप्रत्याशित छलांग लगाई है। अर्थव्यवस्था में हम कहां थे और कहां आ गए! आज दुनिया की पांचवीं महाशक्ति हैं अर्थव्यवस्था में।  हम उनसे आगे निकल गए हैं, जिन्होंने हम पर सैकड़ों वर्ष राज किया। आने वाले दो वर्षों में हम दुनिया की तीसरी बड़ी महाशक्ति बन जाएंगे।

गत दशक में किसी भी देश ने दुनिया में इतनी बड़ी छलांग नहीं लगाई विकास यात्रा जो भारत ने लगायी है। दुनिया की संस्थाएँ भारत की प्रशंसा करते हुए अब थकती नहीं हैं। मुझे याद है, मुझे ज्ञान है। आज से करीब 35 साल पहले, मैं लोकसभा का सदस्य था, केंद्र में मंत्री था, तब के हालात मैंने देखे हैं। ये संस्थाएं हमें क्या कहती थीं, मैंने हालत देखे है।

तीन बातों की ओर आपका ध्यान आकर्षित करूंगा—
पहला, सोने की चिड़िया कहलाने वाले देश का सोना स्विट्जरलैंड के दो बैंकों में हवाई जहाज से लेकर गिरवी रखा गया। कारण उस समय हमारा विदेशी धन का जो भंडार था वह बहुत सुकुड़ गया था। आज मुझे प्रसन्नता है कि जो विदेशी मुद्रा भंडार तब था, आज उससे 700 गुना ज्यादा है।

मैंने देखा कि केंद्रीय परिषद में प्रधानमंत्री जी के साथ जब मैं जम्मू-कश्मीर गया, श्रीनगर की सड़कों पर मात्र कुछ ही लोग दिख रहे थे। सीना फूल जाता है, मन प्रफुल्लित हो जाता है। भारत की गौरव गाथा अब दिखने लगी है। गत वर्ष कश्मीर में 2 करोड़ से ज्यादा टूरिस्ट गए थे।

मैं यह इसलिए बता रहा हूं कि जो विकास हुआ है, जो मौलिक बदलाव हुआ है अनुच्छेद 370 को समाप्त किया गया है, महिलाओं का सशक्तिकरण किया गया है। ऐसे अनेक कार्यक्रम किए गए हैं जो सकारात्मक हैं, मौलिक हैं उससे हमारी चुनौतियां बड़ी हुई हैं। कहते हैं न कि, कोई व्यक्ति बहुत आगे बढ़ता है, तो माँ और नानी काला टीका लगाती हैं, ताकि नज़र न लग जाए। भारत माँ को नज़र न लग जाए, इसलिए बहुत ज़रूरी है कि हम काला टीका लगाएं। और काला टीका लगाने का प्रथम संकल्प है, राष्ट्रीय एकता, राष्ट्रीय भावना, राष्ट्रीय चेतना, भारतीयता कूट-कूट में हममें भरी जानी चाहिए। राष्ट्र सर्वोपरि है, सब कुछ राष्ट्र में समाहित है, और यही हमारी सांस्कृतिक विरासत का निचोड़ है।

मैंने दुनिया का परिदृश्य देखा है। वे अचंभित हैं, भारत जैसे देश में, जहाँ 140 करोड़ लोग हैं, कैसे इतना विकास हो गया! चमत्कारी, अकल्पनीय प्रभावी सुविधाएं अंतिम छोर तक पहुँच रही हैं — चाहे घर में शौचालय हो, चाहे भोजनालय में गैस कनेक्शन हो, और तीव्र गति से हर घर में पानी की व्यवस्था भी की जा रही है। बिजली और सड़क हर गाँव तक पहुँच रही है। दुनिया ने पहले यह अजूबा पहले कभी किसी देश में नहीं देखा, ऐसी बातें मुझे हमारे विदेशी मेहमान कहते हैं। वे भारत के इस मॉडल को adopt करना चाहते हैं और क्यों नहीं! आज से 10 साल पहले क्या हालात थे? आज हमारी तकनीक कितनी दूर तक है, पैनेपन तक है। पारदर्शिता, उत्तरदायित्व, सरलता हमारी व्यवस्था का हिस्सा बन गई।

एक जमाना था जब देश के अंदर वातावरण हताशा का था, निराशा का था, अब हालात बदल गए हैं। There is an atmosphere of hope and possibility. आज के दिन सरकार की सकारात्मक नीतियों का नतीजा है कि हर व्यक्ति प्रतिभानुशार हिस्सा ले सकता है। जब ऐसे हालात हैं और दुनिया कहती है—दुनिया की श्रेष्ठतम संस्थाएँ कहती है, International Monetary Fund, World Bank, क्या कहती हैं कि यदि दुनिया में अगर  कोई चमकता सितारा है, जहाँ निवेश कर सकते हो , जहाँ आपको अवसर मिल सकता निवेश का, जहाँ आप अपनी प्रतिभा चमका सकते हो तो वह भारत है। India is reckoned as a global favourite destination of investment and opportunity.

जब यह सब कुछ हो रहा है, तो कुछ लोग को देश में या दुनिया में संख्या कम है, वे पचा नहीं पा रहे हैं और चुनौती प्रस्तुत करते हैं। चुनौती का माध्यम क्या है? हमारी संस्थाओं को धूमिल करना, हमारी प्रगति को नजरअंदाज करना, जमीनी हकीकत की ओर न देखना और यह कुप्रयास संगठित तरीके से हो रहा है। इसमें  कुछ चुनौतियां लंबे समय से प्रवेश कर चुकी हैं। 

सबसे बड़ी और भयावह स्थिति यह है कि हमारे भारतवर्ष में करोड़ों की संख्या में वे लोग हैं, जिनकी उपस्थिति का कोई विधिक आधार नहीं है। आज के दिन, संयोग है कि पूरी दुनिया में एक ऐसा वातावरण बन गया है, जो ऐसे लोग है वो आपकी सांस्कृतिक विरासत को चुनौती देते हैं, आपकी संस्कृति पर प्रहार करते हैं, आपका जो अधिकार है उसमें कटौती करते हैं।

शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी सेवाओं का वे लाभ लेते हैं, जनता को मानस बनाना पड़ेगा,जनता की सोच में आना पड़ेगा कि हमारे राष्ट्रवाद को पनपने के लिए, इस प्रकार के नासूर हमारे देश में नहीं पनपने देंगे। हमें दृढ़ संकल्प होना पड़ेगा, क्योंकि दुनिया का कोई देश नहीं है जो ऐसी चर्चा कर सके जो हम कर सकते हैं।

आप देखिए, हम कौन से देश के वासी हैं! हम उस देश के वासी हैं, जहाँ एक समय था नालंदा, तक्षशिला जैसी अनेक संस्थाएं पनप रही थीं। आपके यहां भी एक महत्वपूर्ण संस्था पनपी है - नागवी। जब मैं अतीत में झांकता हूँ, तो ओदंतपुरी, तक्षशिला, विक्रमशिला, सोमपुरा , नालंदा, वल्लभी और नागवी। आज वह नए स्वरूप में उभर रही है देश में।

गत 10 वर्षों में देश का परिदृश्य इतना बदल चुका है कि ऐसी संस्थाओं का निर्माण हो रहा है। एक प्रकार से कहूँ, तो नालंदा नए सिरे से जीवित हो रही है। अपने इतिहास पर देखिये और धोड़ा गौर कीजिये, आज से  1200 साल पहले हम कहाँ थे उसके बाद आक्रमणकारी आए, विदेशी शासन आया, और क्या किया बेरहमी से षड्यंत्रकारी तरीके से हमारे धार्मिक स्थानो पर प्रहार किया कुठाराघात किया हमारी संस्कृति को मिटाने की कोसिस की गयी, हमारी सांस्कृतिक विरासत के जो मूल मंत्रों थे उनको चुनौती दी गई।

लेकिन समय बदल गया। समय इतना बदल गया कि जिसकी हम कल्पना भी नहीं की थी, कानून के जरिये, विधि सम्मत तरीके से रामलला विराजमान हैं—यह दुनिया का सबसे बड़ा अजूबा है!

हमें हमारी सांस्कृतिक धरोहर का सृजन करना चाहिए, संकल्पित होकर करना पड़ेगा, और यह करने के लिए मेरा आग्रह रहेगा सभी से कि इसमें हर व्यक्ति का योगदान हो। भारत में आज के दिन एक बहुत बड़ा महायज्ञ हो रहा है। महायज्ञ का लक्ष्य है। वह आज के दिन हमारा सपना नहीं है। विकसित भारत अब सपना नहीं है, विकसित भारत लक्ष्य है। उसकी प्राप्ति निश्चित है। मेरा व्यक्तिगत मानना है कि जब आज़ादी के शताब्दी 2047 में मना रहे होंगे, तब भारत निश्चित रूप से एक विकसित राष्ट्र होगा, उससे पहले भी हो सकता है।

यह जो इतना बड़ा महायज्ञ हो रहा है देश में, उसमें हर वर्ग को कोई आहुति देनी होगी। आहुति देने का पहला प्रण है—राष्ट्रवाद के प्रति समर्पण, राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखना, राष्ट्र में सब कुछ समाहित है यह भावना हमारे शरीर में संचालित होनी चाहिए। मैं नवयुवकों से कहूंगा, विकसित भारत की एक मैराथन मार्च है। उस मैराथन मार्च के आप लोग सारथी हो, आप लोग इसको सार्थक बनाएं। आज के दिन दुनिया की नज़र भारत पर है, तो हमें इस पर गर्व महसूस होना चाहिए।

मुझे बड़ा अचंभा होता है आज के दिन सब कुछ नज़रअंदाज कर कर। भारतीयता को तिलांजलि देकर, राष्ट्रहित को दरकिनार कर, कैसे-कैसे लोग बयान देते हैं! We have to be ready, very alert!

मुझे कहने में कोई संकोच नहीं है कि हमें जो चुनौती मिल रही है, वह जलवायु परिवर्तन से भी ज्यादा गंभीर चुनौती है। और चुनौती हम स्वीकार कर, उसको निष्प्रभावी करेंगे, इसमें कोई दो राय नहीं है। पर सबसे पहले जरूरी है, किसी भी बीमारी का इलाज तभी होता है जब बीमारी का डायग्नोसिस आता है। बीमारी क्या है? तकनीकी इतनी आगे जा चुकी है कि आज किसी को पता लग गया कि मुझे टीबी है, तो दवाई वाला ही दवाई दे देगा, डॉक्टर की आवश्यकता नहीं है। आपको इस बीमारी का डायग्नोसिस करना है, इसका इलाज मुश्किल नहीं है।

इन लोगों के काम करने की शैली घिनौने तरीके से विभाजन पैदा करती है। विभाजन के कई आधार हैं – जाति, क्षेत्रीयता। मुझे समझ में नहीं आता कि इस देश में Regional versus National की चर्चा कैसे हो सकती है! कितनी बेतुकी है, कितनी आधारहीन है! यदि इसकी जड़ में आप देखोगे, तो राष्ट्र-विरोधी ताकतों का हाथ मिलेगा, और ये ताकतें अलग-अलग तरीके से काम करती हैं।  बहुत से मुद्दों पर आप देखोगे कि वे न्यायपालिका की शरण में जाते हैं।

मैं चिंतित हूं क्योंकि हमारे देश के संविधान और न्यायिक व्यवस्था ने हर व्यक्ति को अधिकार दिया है। वह अधिकार क्या है? वह न्यायालय की शरण में जा सकता है। हाल के वर्षों में, धन’ का उपयोग कर राष्ट्र-विरोधी भावना भड़काने के लिए Access to judiciary has been weaponized. और यह इस तरीके से हो रहा है जो  दुनिया के किसी भी देश नहीं है।

आज के दिन, जब मैं एक तरफ देखता हूं तो भारत की प्रगति को दुनिया की नजर से देखो, राष्ट्र के अंदर बसने वाले लोगों की नजर से देखो तो बरसात में मोर के नाचते हुए उसके पंख उसका स्वरूप, लेकिन जब मोर के पांव की ओर देखता हूं तो चिंता होती है, चिंतन के लिए विवश हो जाता हु। मुझे लगता है कि हमें अपने सांस्कृतिक दर्शन की आवश्यकता है, क्योंकि हम खुद ही उस टहनी को काटने की कोशिश कर रहे हैं, जिस पर हम पनप रहे हैं, जिस पर हम बैठे हैं।

देश के अंदर जो सबसे पुराना लोकतंत्र है, सबसे मजबूत लोकतंत्र है, सबसे प्रगतिशील लोकतंत्र है, सबसे जीवंत लोकतंत्र है—वह संवैधानिक दृष्टि से दुनिया का अकेला देश है, जो हर स्तर पर लोकतांत्रिक व्यवस्था रखता है, चाहे वह गांव हो, शहर हो, प्रांत हो, या राष्ट्र हो। संवैधानिक व्यवस्था है, ऐसे देश में हमारी चुनावी प्रक्रिया को कुप्रभावित करने की चेष्टा है। इस चेष्टा के पीछे वे लोग हैं, जिनकी इसमें भागीदारी नहीं होनी चाहिए पर उनकी भागीदारी है। हमें संकल्प लेना होगा और एक नई मानसिकता का विकास करना होगा। इसमें हर भारतीय का योगदान होना चाहिए। दुनिया सजग हो चुकी है, अपने यहां अभी अपने उतने सजग नहीं हुए हैं। 

आज मैं पढ़ा था आपके प्रांत के बारे में भी यह समस्या कितना गहरा रूप ले चुकी है, कितनी भयावह हो चुकी है! हमें इसे जड़ से खत्म करना होगा, वैसे ही खत्म करना होगा जिस तरीके से चाणक्य को पैर में एक शूल लगी थी। चाणक्य अपने घर गए, हांडी के अंदर दूध और गुड़ डालकर गर्म किया, कीकर के पास आए और कीकर की जड़ में डाल दिया, ताकि दीमक इसको जड़ से खत्म कर दे।

देश को चुनौती देने वाली ताकतें, जो राष्ट्रवाद और क्षेत्रवाद में टकराव करने की कोशिश कर रही हैं, उनको करारा जवाब मिलना चाहिए। वे हमारी सांस्कृतिक विरासत को हिलाना चाहती हैं, अब तो हम संभाल रहे हैं। जो 1200 साल पहले हुआ, जो उन्होंने किया, क्रूरता से किया, भेदभाव तरीके से किया। हमारी संस्कृति को समाप्त किया हम झेल गए, लेकिन अब हम तीव्र गति से आगे बढ़ रहे हैं।

आज का भारत प्रगति की दृष्टि से देखें तो समुद्र हो, भूमि हो, आकाश हो या अंतरिक्ष हो हमारी चमत्कारी छलांग दुनिया को अचंभित कर रही है। कर्नाटक में जब-जब मुझे आना पड़ा और सौभाग्य मिला, मैं यहां से ऊर्जावान होकर गया हूं, क्योंकि मेरे कार्यक्रम संस्कृति, धर्म, शिक्षा और स्वास्थ्य से जुड़े हुए थे। और यही वे बातें हैं जिनकी ओर सकारात्मक नीतियां बड़ी छलांग हासिल करवा रही हैं।

मैंने देखा है कि यदि कर्नाटक की बात करूं, तो Karnataka is cradle of civilization. Karnataka cradle of civilization, किस देश में है जो spirituality का epicenter है। Karnataka is a thriving epicenter of art, literature, philosophy. It is testament to India's cultural, intellectual tapestry यदि मैं थोड़ा आपको आप की याद दिलाऊ —कदम्बा , चालुक्य और विजयनगर की यात्रा कीजिए, तो आपको क्या नजर आएगा? Intellectual brilliance began with cultural values.
 

भारत सरकार ने हमारी भाषाओं को बहुत ऊपर ले गई, और जब कर्नाटक की तरफ मैं देखता हूं, भरतनाट्यम, यक्षगान—कितने मेस्मेरिजिंग हैं, कितने केप्टिवेटिंग हैं! आदमी देखकर आश्चर्यचकित हो जाता है। और सूक्ष्म से आप अध्ययन करोगे, तो इनमें आपको आध्यात्मिकता झलक आएगी। आर्किटेक्चर के मार्बल्स—हंपी, वेल्लूर इनसे दुनिया अचंभित है। ऐसे प्रदेश के अंदर मेरा आग्रह है कि देश को संदेश जाना चाहिए राष्ट्रीयता का, राष्ट्रीय एकता का, भारतीयता का। प्रजातंत्र की सबसे खासियत है अभिव्यक्ति, अनंतवात—यदि आपके पास अभिव्यक्ति का अधिकार नहीं है, तो आप देश को प्रजातांत्रिक व्यवस्था नहीं कह सकते। अनंतवात नहीं है, वाद-विवाद नहीं है, विचार-विमर्श नहीं है, तो कोई अर्थ नहीं है।

मेरे सामने एक परिदृश्य है, क्योंकि संविधान ग्रहण करने की शताब्दी की अंतिम चौथाई में हम पहुंच रहे हैं। संविधान सभा ने 18 सेशन में, तीन साल से कुछ दिन कम जो विचार-विमर्श हुआ, सार्थक किया। उनके सामने चुनौतियां थीं, जटिल समस्याएं थीं। There were highly divisive situations उन्होंने सबको बातचीत के माध्यम से, They negotiated the tough terrain by dialogue, debate, discussion and deliberation. आज मैं देखता हूं कि वह प्रजातंत्र का मंदिर अक्सर अखाड़ा बन जाता है। संवाद, अशांति में बदल जाता है। पर इन सब में आपका भी एक दायित्व है। जिनका काम संविधान के अंतर्गत कार्य करना है, उनको मजबूत कीजिए। दायित्व निर्माण कीजिए। यही राष्ट्र की भावना को जागृत करेगी।

साथियों, Karnataka has been a crucible जहां मैं expression की बात कर रहा था—devotion meats expression। अब देखिए, पुरन्दर दास के  chanting और भारत रत्न, भीमसेन जोशी..... जहां मैंने हजारों लोगों को एक साथ मंत्र उच्चारण करते देखा है। ऐसा मंत्र उच्चारण देखा है, ऐसी rhythm देखी है, जो संकेत देती है कि हम एक हैं। हमारी एकता impregnable, undefeatable हमारी आत्मा से inseparable है। आज के दिन, मैं आपको एक message देने आया हूं। अक्सर लोग मुझसे कहते हैं "हम क्या करें? व्यक्ति क्या कर सकता है?" मेरा मानना है कि जब एक छोटी सी बात प्रधानमंत्री जी ने कही—"मां के नाम एक पेड़" क्रांतिकारी आंदोलन हो गया।

जब COVID को challenge देने के लिए आह्वान किया, जनता का कर्फ्यू नतीजे सामने आ गए। जब Swachh Bharat Abhiyan की बात की, तो नतीजे सामने आ गए। यह सब individual-centric बातें हैं। समय आ गया है हमें दायित्व को अधिकारों से ऊपर रखना होगा। देश की प्रगति में योगदान भी देना पड़ेगा और गौरवान्वित भी होना पड़ेगा।

ज्यादा समय न लेते हुए, मैं आपको मेरी तरफ से कहता हूं लंबे समय से मैं प्रयासरत हूं, और लोगों को मैंने देखा है, युवा शक्ति को देखा है। युवा शक्ति को एक सन्देश दूंगा चारों तरफ नजर घुमाइए। आपके लिए जो भावनाएं हैं, वे आपकी सभी आकांक्षाओं की पूर्ति करने वाली हैं। सरकारी नौकरी के अलावा भी सोचिए।

आप सबके प्रति मैं हार्दिक धन्यवाद व्यक्त करता हूं और आयोजकों के प्रति आप साधुवाद के पात्र हैं। आपने मुझे Karnataka जैसे प्रांत में, जिसकी पृष्ठभूमि में यह सब कुछ हजारों साल तक पनपा है, आपको थोड़ा याद दिलाने का मौका मिला है।

आपके साथ मैं भी राष्ट्रधर्म का निर्वहन करने के लिए शत-प्रतिशत संकल्पित होकर जा रहा हूं।

बहुत-बहुत धन्यवाद!

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JK/RC/SM


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