उप राष्ट्रपति सचिवालय
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तेलंगाना के मेडक में ICAR-कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा आयोजित प्राकृतिक एवं जैविक कृषक सम्मेलन-2024 में उपराष्ट्रपति के संबोधन के मुख्य अंश

Posted On: 25 DEC 2024 6:58PM by PIB Delhi

सभी को मेरा नमस्कार और किसान भाइयों को मेरा प्रणाम।

दोनों संस्थाएं, जिनके बारे में आप देखे, एकलव्य ग्रामीण विकास फाउंडेशन और कृषि विज्ञान केंद्र, ज्यादा पुरानी नहीं हैं। एक दशक भी नहीं हुआ है, पर जो उत्साह मैंने देखा, मुझे एक बात समझ में आ गयी कि कृषि विज्ञान केंद्र यदि अगर सक्रिय होता है, तो जमीनी हालात बदलते हैं।

Therefore, I greet on this special day three former Prime Minister.  सबसे पहले लाल बहादुर शास्त्री, आज से 60 साल पहले, उन्होंने नारा दिया "जय जवान, जय किसान।" कितनी सार्थक बात कही, और हमारा परम कर्तव्य है कि हम दोनों को सुखी रखे, दोनों का आदर करें, दोनों को समस्याओं से घिरा नहीं रहने दें। किसान हो या जवान हो, उनकी समस्याओं का निवारण तीव्र गति से होना चाहिए क्योंकि वह भारतवर्ष की आत्मा हैं। और कुछ लोग मेरे सामने बैठे हैं। उसके बाद शताब्दी में बदलाव आया और एक नए प्रधानमंत्री देश में बने। भारतरत्न अटल बिहारी वाजपेयी जी, आज ही मैं उनको श्रद्धांजलि और नमन देकर आ रहा हूं। पूरे देश में आज उनकी बात हो रही है। उनकी जन्म शताब्दी है। उन्होंने एक बात add कर दी, "जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान।" और काफी बदलाव आया। और वर्तमान में जो प्रधानमंत्री हैं, आजादी के बाद और 6 दशक के पश्चात जिनको दूसरी बार कीर्तिमान मिला है लगातार तीसरी बार भारत का प्रधानमंत्री बनने का श्रीमान नरेंद्र मोदी जी ने, उन्होंने चौथी बात add की, "जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान, जय अनुसंधान।"

 I pay my respect to these leaders with vision और मेरी दृढ़ मान्यता है कि यदि हम किसान का ध्यान नहीं देंगे, ग्रामीण व्यवस्था का ध्यान नहीं देंगे, तो जो हमने बड़ी छलांग लगाई है दुनिया में और दुनिया भारत का लोहा मान चुका है, एक दशक में जो प्रगति हुई है वह अप्रत्याशित है, अविश्वसनीय है। कभी कल्पना नहीं की थी, कि हमारी अर्थव्यवस्था इस ऊंचाई तक जाएगी कि हम उनको पीछे छोड़ देंगे जिन्होंने सदियों तक हम पर राज किया। आने वाले 2 साल में हम दुनिया की तीसरी बड़ी महाशक्ति बनने जा रहे हैं, जापान और जर्मनी को पीछे छोड़कर। 

 विकसित भारत 2047 अब सपना नहीं है, यह लक्ष्य है। इस लक्ष्य में, इस हवन में सबसे बड़ी महत्वपूर्ण आहुति यदि किसी की है, तो वह ग्रामीण व्यवस्था की और किसान की है। हमारे सामने चुनौती है कि प्रति व्यक्ति आय 8 गुना बड़े और तभी विकसित भारत का लक्ष्य प्राप्त होगा। लक्ष्य अवश्य प्राप्त होगा, पर हमें खास ध्यान किसान की तरफ देना पड़ेगा। 23 दिसंबर को पूरे राष्ट्र ने किसान दिवस मनाया, भारत के पांचवें प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की जन्म जयंती है वह । यह दूरदर्शिता भी भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी जी ने दिखाई। उन्होंने इसकी शुरुआत 2001 में किसान दिवस के रूप में की। 

 आने वाले 2 साल में किसान दिवस की रजत जयंती है। मेरा आग्रह रहेगा सभी से, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद से, इसकी सैकड़ों संस्थाओं से, विश्वविद्यालयों से, 700 से ज्यादा कृषि विज्ञान केंद्रों से कि अभी से वह अपने काम में जुट जाएं। किसान दिवस की रजत जयंती का मतलब है कि यह संस्थाएं जिवंत हो, यह संस्थाएं, किसान के हित को देखें, किसान के हित को पनपाये और यही मेरा आग्रह रहेगा। मैंने चौधरी चरण सिंह जी को अपनी श्रद्धांजलि देते हुए यह कहा था उस दिवस पर कि मुझे उम्मीद है, आशा है कि कृषि जगत से जुड़े हुए सभी संस्थान, जिनका जिक्र मैंने अभी किया है, वह सक्रियता में कोई कमी नहीं रखेंगे। जितनी सक्रियता की मुझे उम्मीद थी, उतनी तो नहीं हो पाई, पर देर आए दुरुस्त आए।

 Let us resolve on this day the Indian Council of Agriculture Research, its more than 150 institutes, several universities, and about 730 Krishi Vigyan Kendra will get fully involved to ensure that the silver jubilee of Kisan Divas next year turns out to be farmer-centric, rural-centric, making contributions in practical terms. 

 इसके साथ मेरा यह भी आवाहन रहेगा कि आज के दिन किसान के मन में बदलाव आना चाहिए। किसान और किसान परिवार को यह ध्यान देना पड़ेगा कि भारत जैसी विशाल अर्थव्यवस्था में उनकी भागीदारी कैसे बढ़े। At the moment, it is a cause of concern that our farming community is not involved with the marketing of its produce.  यह ठीक नहीं है। किसान को अपने उत्पादन का व्यापार करना चाहिए। किसान को अपने उत्पादन व्यापार में हिस्सेदारी लेनी चाहिए। किसान के बहुत-सी समस्याओं का निराकरण इस बात से हो जाएगा। It will motivate the younger members in Kisan families to act vigilant and participate in marketing of agricultural produce. आखिर, वह तो किसान का ही है। 

 Second, with these institutions like the Indian Council of Agriculture Research, कृषि विज्ञान केंद्र, Universities, they must engage into activities, how best the farmer can add value to its produce. बड़े उद्योग चलते हैं किसान के उत्पादन के ऊपर, पर यह चिंतन और मंथन का विषय है कि किसान परिवार उनमें मूल्य वृद्धि क्यों नहीं कर रहा है। सरकारी नीतियां सकारात्मक बनी हैं, पर हमें जमीनी हकीकत पर बदलाव देखना है। देश की अर्थव्यवस्था में ग्रामीण विकास किसान उत्थान से महत्वपूर्ण और कोई संकल्प नहीं हो सकता। 

 आज के दिन मैं देख रहा हूं, किसान कुछ बातों को लेकर चिंतित है। यह बहुत ही जरूरी है कि समाज का कोई भी वर्ग प्रजातांत्रिक व्यवस्था में यदि चिंतित होता है तो सकारात्मक रूप से, अविलंब रूप से उसका निराकरण होना चाहिए और  प्रजातंत्र में निराकरण का एक ही माध्यम है, और वह बातचीत का है।

I have said, friends, on a number of occasions, dialogue is the only way to find solutions to problems in democracy. और भारत के प्रधानमंत्री ने तो विश्व पटल पर कहा है कि दुनिया की जबरन समस्याएं और जो हम conflagration देख रहे हैं, युद्ध देख रहे हैं अंततः उनका निपटारा बातचीत से होता है। यह गांव मेरे लिए छोटा नहीं है, यह गांव मेरे लिए मार्गदर्शन है। इस गांव में अल्प समय में कृषि विज्ञान केंद्र ने कितना उत्साह लोगों में भर दिया है। यही काम यदि 730 कृषि विज्ञान केंद्र देश में करेंगे, तो निश्चित रूप से किसान की मानसिकता में बदलाव आएगा, वह कृषि व्यापार जुड़ेगा, कृषि उत्पादन में मूल वृद्धि करेगा, और अनुसंधान की ओर आगे जाएगा।

 देश इतनी गति से आगे बढ़ रहा है, जो सोचा नहीं वह हो रहा है। आज के दिन जल हो, थल हो, आकाश हो, अंतरिक्ष हो, भारत छलांग लगा रहा है। और ऐसी स्थिति में विश्व और देश में कुछ लोग हैं जो हमारी प्रगति को पचा नहीं पा रहे हैं। हथकंडे अपनाए जा रहे हैं। I see around, friends, sinister convergence of forces inimical to the progress of Bharat.

 और उनकी शैली बड़ी विचित्र है। एक नैरेटिव की शुरुआत करते हैं, उसे नैरेटिव के पंख लग जाते हैं। फिर उस नैरेटिव से मुकदमे हो जाते हैं, फिर उस  नैरेटिव से आंदोलन हो जाते हैं। ऐसे मौके पर हर भारतीय का कर्तव्य है कि वह राष्ट्रवाद में अटूट विश्वास रखें। Nation First—मेरा देश पहले, इस भावना से कार्यरत रहें। 

मैं मेरी एक वेदना यहां प्रकट करना चाहूंगा। आप थोड़ा सा अंदाजा लगाइए, गांधी जी ने स्वदेशी का नारा क्यों दिया था? वर्तमान प्रधानमंत्री जी ने Vocal For Local क्यों कहा? आसपास में नजर कीजिए। हम विदेशी कपड़े पहनते हैं, विदेशी मोमबत्ती, विदेशी दिये, विदेशी काइट, विदेशी कारपेट, विदेशी फर्नीचर, विदेशी इलेक्ट्रॉनिक्स, हम उन चीजों का आयात करते हैं जो हमारे देश में निर्मित होती हैं। हम स्वदेशी की भावना का अनादर कर रहे हैं।

 We are not believing in being Vocal For Local. इसके तीन दुष्परिणाम हैं। 

  • पहल दुष्परिणाम, हमारे लोगों के हाथों से काम छीना जा रहा है। जब वह चीज आप आयात करते हो जो देश में बन सकती है, नुकसान हमारा है। 

  • दूसरा, प्रतिभा जिन लोगों में है, छोटा कारखाना शुरू करने की, वह कुंठित हो जाती है। और 

  • तीसरा, हमारा विदेशी मुद्रा भंडार खाली होता है। 

 

जब लोकसभा में आया था 1989 में, केंद्र में मंत्री बना था, तब भारत का सोना स्विट्जरलैंड के बैंक में गिरवी रखा गया था। मैं केंद्रीय परिषद का सदस्य था। कितना भयानक, कितना भयावह है, हालत दिख रहे थे। आज हालात यह हैं कि हमारा विदेशी मुद्रा भंडार उस समय से करीब 700 गुना ज्यादा है। और हम उसमें छेद क्यों करें? स्वदेशी में विश्वास, “Being Vocal for Local" यह हमारी राष्ट्र भावना होनी चाहिए।

 दूसरी जो मेरी पीड़ा है, कि हम धरती पर आए हैं। धरती पर कुछ संसाधन हैं। हम उनका मापदंड, नापतोल, आर्थिक ताकत से कर रहे हैं। जल हो, पेट्रोल हो, एनर्जी हो, इसलिए हम ज्यादा नहीं खर्च कर सकते की मैं तो afford कर सकता हूं। मेरी तो आर्थिक ताकत है। हमें संकल्प लेना होगा राष्ट्रीय के उत्थान के लिए। Optimal utilisation of natural resources, पेट्रोल हो, गैस हो या अन्य कोई resource हो, हम आवश्यकता अनुसार ही उनका उपयोग करें। क्योंकि आज के दिन यह चुनौती विश्व में एक भयानक चुनौती का रूप ले चुकी है, जिसको हम क्लाइमेट चेंज कहते हैं। हमारे शास्त्रों में तो कहा गया है कि हम कैसे अपना जीवन यापन करें, How we must seamlessly connect with nature, how we respect nature, how we learn to cohabit with living beings. पर क्योकि दुनिया में ही भटकाव आ गया और अचानक सबके मन में बड़ी भारी चिंता आ गई है उसमें भी मदद होगी।

 आज आपके प्रांगण में आते ही माँ के नाम मैंने एक पेड़ लगाया। यह आवाहन भारत के प्रधानमंत्री ने किया। बल्कि on a lighter note, मैंने तो  मेरी मां के नाम भी पेड़ लगाया और वह मेरी धर्मपत्नी की सास भी है तो मैंने दो काम किया एक साथ पर मेरा आपसे आवाहन है, यह जन आंदोलन बन चुका है। ग्रामीण परिप्रेक्ष्य में बड़ा आंदोलन होना चाहिए हम अवश्य एक पेड़ लगाएं, उससे ज्यादा भी लगाएं और उनका सृजन भी करे उनका  संरक्षण भी करें। मैं देखता हूं, ग्रामीण व्यवस्था में सब्जी बाहर से आती है, फल बाहर से आते हैं। ऐसा क्यों? कृषि विज्ञान केंद्र और ऐसी संस्थाओं को किसान को प्रोत्साहित करना चाहिए कि Village must act as a unit when it comes to consumption of agricultural produce, vegetables, fruits, milk products. किसान दूध भेज देता है, उसमें मूल्य वृद्धि नहीं करता। थोड़ी बहुत करता है तो छाछ, कौन सी वह बाधाएं है  आज के दिन कि गांव और गांव का समूह कृषि विज्ञान केंद्र की सहायता से उद्योग स्थापित नहीं करें, ताकि कम से कम स्थानीय आवश्यकताओं की तो पूर्ति हो जाए। There you will find quality also. इकोनॉमी में बदलाव आएगा। 

मुझे यहां आकर बड़ी प्रसन्नता हुई है और मेरी दृढ़ मान्यता है कि जितना ध्यान हमको कृषि और कृषि विकास को देना चाहिए, उतना हम अब तक दे नहीं पाए। कुछ बदलाव आया है। इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चर रिसर्च में पर आप देखिए क्या बजट है उनका। हजारों की संख्या में साइंटिस्ट हैं, 5000 के करीब हैं, 25000 लोग कार्यरत हैं और बजट 8000 करोड़ से अधिक है। अनुसंधान किसके लिए कर रहे हैं? किसके जीवन को बदलने के लिए कर रहे हैं? क्या उसके जीवन में बदलाव आ रहा है?

 Friends, time has come to audit these institutions, and the best way to audit an institutions is self-audit. हर संस्थान को यह संकल्प लेना होगा कि we will perform and outperform. हम किसान को राहत देने वाला कार्य करेंगे हम किसान को जागरूक करेंगे। यदि इन संस्थानों में प्रतिदिन 100 किसानों के भी फुटफॉल हो जाते हैं, बड़ा भारी बदलाव आएगा। यह सकारात्मक आंदोलन का रूप लेगा। 

 मेरा पुरजोर निवेदन है शासन से भी, संस्थानों में कार्यरत लोगों से भी, जनप्रतिनिधियों से भी, और ऐसी संस्थाओं से भी “एकलव्य ग्रामीण विकास” ऐसी संस्थाओं से भी कि वह किसान कल्याण के लिए ऐसी व्यवस्था करें कि भारत का किसान दुनिया के सर्वश्रेष्ठ किसानों में एक हो। हम किसानों की मदद करते हैं। साल में तीन बार किसान को मिलता है “प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि” उसमें बदलाव की आवश्यकता इसलिए है की वह तो स्थाई है, और अर्थव्यवस्था में इन्फ्लेशन है। स्वाभाविक है, हमें सोचना पड़ेगा कि उर्वरक की सब्सिडी का सही फायदा किसानों तक पहुंच रहा है।

 I will strongly appeal to these institutes and Krishi Vigyan Kendras to come out with a formula, ताकि यह सब्सिडी किसान को सीधी पहुंचे, क्योंकि तकनीकी रूप से भारत ने दुनिया में झंडा गाड़ दिया है। 10 करोड़ से ज्यादा या इसके आसपास किसान, जब साल में तीन बार यह लाभ प्राप्त कर सकते हैं, सब्सिडी का लाभ भी प्राप्त कर सकते हैं। और जब उसको वह सब्सिडी मिलेगी सीधे अपने अकाउंट में, वह नेचुरल फार्मिंग और ऑर्गेनिक फार्मिंग की तरफ प्रभावित होगा, वह उत्साहित होगा। और यही मेरा दृष्टिकोण है सोलर घर के लिए भी। सोलर घर के बारे में भी, जो की ग्रामीण व्यवस्था से ज्यादा जुड़ा हुआ है, इसमें बहुत लंबा अर्थ लग रहा है। पर गांव के आदमी की भी आर्थिक भागीदारी है, गहन अध्ययन होना चाहिए।

बहुत-बहुत धन्यवाद। नमस्कार!

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JK/RC/SM


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