पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय
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भारत ने असम में पहली बार गंगा नदी डॉल्फिन टैगिंग का आयोजन किया

यह ऐतिहासिक सफलता हमारे राष्ट्रीय जलीय पशु के संरक्षण की समझ को और बढ़ाएगा : श्री भूपेंद्र यादव

Posted On: 18 DEC 2024 9:07PM by PIB Delhi

आज वन्यजीव संरक्षण में एक ऐतिहासिक उपलब्धि है क्योंकि असम में पहली बार गंगा नदी डॉल्फिन (प्लैटनिस्टा गैंगेटिका) को टैग किया गया है। पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफसीसी) के तत्वावधान में आयोजित इस पहल को भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) द्वारा असम वन विभाग और अरण्यक के सहयोग से राष्ट्रीय सीएएमपीए प्राधिकरण के वित्त पोषण से लागू किया गया। यह न केवल भारत में बल्कि इस प्रजाति के लिए भी पहली टैगिंग है। यह ऐतिहासिक सफलता प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के दूरदर्शी नेतृत्व में प्रोजेक्ट डॉल्फिन की एक महत्वपूर्ण प्रगति है।

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गंगा नदी डॉल्फिन के निवास स्थान की जरूरतों, आवाजाही के पैटर्न या घर-सीमा की जानकारी की कमी को देखते हुए इसके फैलाव सीमा में डॉल्फिन की उपग्रह टैगिंग करने का निर्णय लिया गया। टैगिंग का पहला काम असम में हुआ, जहां एक स्वस्थ नर नदी डॉल्फिन को टैग किया गया और अत्यधिक पशु चिकित्सा देखभाल और निगरानी में उसे छोड़ दिया गया। टैगिंग अभ्यास से उनके मौसमी और प्रवासी पैटर्न, सीमा, फैलाव और आवास उपयोग को समझने में मदद मिलेगी, विशेष रूप से वहां जहां मानव गतिविधि द्वारा नदी का स्वरूप बदल दिया गया है, जो प्रजातियों की आवाजाही को बाधित करती है।

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सोशल मीडिया पर एक पोस्ट में केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री श्री भूपेन्द्र यादव ने कहा कि असम में गंगा नदी डॉल्फिन की पहली टैगिंग की खबर साझा करते हुए खुशी हो रही है - जो इस प्रजाति और भारत के लिए एक ऐतिहासिक उपलब्धि है! असम वन विभाग और आरण्यक के सहयोग से भारतीय वन्यजीव संस्थान के नेतृत्व में यह एमओईएफसीसी और राष्ट्रीय सीएएमपीए- वित्त पोषित परियोजना हमारे राष्ट्रीय जलीय पशु के संरक्षण की हमारी समझ को और बढ़ाएगा।

गंगा नदी डॉल्फिन भारत का राष्ट्रीय जलीय पशु है जो अपनी पारिस्थितिकी में अद्वितीय है, जो लगभग अंधा है। यह अपनी जैविक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए इकोलोकेशन (प्रतिध्वनि निर्धारण) पर निर्भर है। प्रजातियों की लगभग 90% आबादी भारत में रहती है, जो ऐतिहासिक रूप से गंगा-ब्रह्मपुत्र-मेघना और कर्णफुली नदी में वितरित है। हालांकि, पिछली शताब्दी में इसके वितरण में भारी गिरावट आई है। इसकी व्यापक सीमा के बावजूद इसके मायावी व्यवहार के कारण इस प्रजाति के बारे में जो ज्ञात है और जिसे जानने की आवश्यकता है, उसके बीच बड़ा अंतर है। यह एक समय में केवल 5-30 सेकंड के लिए सतह पर आता है, जो प्रजातियों की पारिस्थितिक आवश्यकताओं को समझने और उसके जीवन की सुरक्षा और संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण चुनौती पेश करता है।

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डॉल्फिन परियोजना के तहत एमओईएफसीसी ने राष्ट्रीय सीएएमपीए प्राधिकरण, भारतीय वन्यजीव संस्थान के माध्यम से संरक्षण कार्य योजना विकसित करने और प्रजातियों के दीर्घकालिक संरक्षण के लिए मौजूदा जानकारी के अभाव को दूर करने को लेकर व्यापक अनुसंधान करने के लिए वित्त पोषित किया है। यह देखते हुए कि गंगा नदी डॉल्फिन शीर्ष शिकारी हैं और नदी व्यवस्था के लिए व्यापक प्रजाति के रूप में काम करती हैं, उनके कल्याण को सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह पूरे नदी पारिस्थितिकी तंत्र के पोषण को सुनिश्चित करेगा।

डब्ल्यूआईआई के निदेशक श्री वीरेंद्र आर. तिवारी ने कहा कि नदी डॉल्फिन को टैग करने से साक्ष्य-आधारित संरक्षण रणनीतियों में योगदान मिलेगा, जिनकी इस प्रजाति के लिए तत्काल आवश्यकता है। मुझे खुशी है कि यह ऐतिहासिक कदम उठाया गया है।

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परियोजना अन्वेषक डॉ. विष्णुप्रिया कोलिपकम ने कहा कि यह नदी डॉल्फिन की पारिस्थितिक आवश्यकताओं को समझने में एक महत्वपूर्ण प्रगति है, जो इन विशाल नदी पारिस्थितिकी प्रणालियों के भीतर महत्वपूर्ण आवासों को संरक्षित करने में मदद करेगी। यह न केवल जलीय जैव विविधता के लिए बल्कि इन संसाधनों पर निर्भर हजारों लोगों के भरण-पोषण के लिए भी महत्वपूर्ण है।

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प्रौद्योगिकी में प्रगति के कारण टैगिंग संभव हो पाई; हल्के टैग सीमित सरफेसिंग समय के साथ भी आर्गोस उपग्रह प्रणालियों के साथ संगत सिग्नल उत्सर्जित करते हैं और डॉल्फिन की आवाजाही में किसी प्रकार की बाधा को कम करने के लिए डिजाइन किए गए हैं। उनकी आबादी की गतिशीलता और आवास आवश्यकताओं की व्यापक समझ बनाने के लिए गंगा नदी डॉल्फिन वाले अन्य राज्यों में इस पहल का विस्तार करने की योजना पर काम चल रहा है। यह महत्वपूर्ण प्रयास वन्यजीव संरक्षण के प्रति भारत की अटूट प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है और लुप्तप्राय प्रजातियों के संरक्षण में एक नया मानक स्थापित करता है।


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